2019 के लोकसभा चुनाव में चंद महीने ही रह गए हैं। विकास को अपना चाल, चरित्र और चेहरा बताने वाली बीजेपी की मोदी सरकार तुष्टिकरण की राजनीति पर उतर आई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए भाजपा सरकार ने एससी/एसटी एक्ट संशोधन बिल लोकसभा में पेश कर दिया है। तुष्टिकरण की राजनीति कितनी सफल होती इसकी शिक्षा बीजेपी को राजीव गांधी की सरकार से लेनी चाहिए। राजीव के हाथ खाली रह गए थे, नरेन्द्र मोदी इस राजनीति से अपनी मुट्ठी में वोट की रेत कितनी समेटते हैं, देखना दिलचस्प होगा।
23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए आदेश दिया था कि आईपीसी की धारा 125 जो तलाकशुदा महिला को पति से भत्ते का हकदार बनाता है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है। मगर तब मुस्लिम संगठनों ने शरिया हस्तक्षेप को मुद्दा बनाकर जमकर विरोध शुरू किया। इसी का ख्याल करते हुए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला अधिनियम पारित कर दिया। इसके आधार पर शाहबानो के पक्ष में सुनाया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया गया। अगले साल 1987 में हिन्दू वोट बैंक को खुश करने के लिए बाबरी मस्जिद के ताले खोल दिए गए। लेकिन नतीजा क्या निकला। 1989 में कांग्रेस बुरी तरह हार गई।
दलितों और पिछड़े वर्ग को लुभाने के लिए हाल ही में बीजेपी सरकार ने जो कदम उठाये हैं उससे साफ़ पता चलता है कि वो अपने वोटबैंक का दायरा बढ़ाना चाहती है। ब्राह्मण और बनिया की पार्टी कही जाने वाली पार्टी का अब सारा केंद्र दलित और पिछड़ा वर्ग हो गया है। मोदी सरकार की तुष्कटिरण के कुछ कदम देखिये-पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाला बिल लोकसभा में पास, सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए एससी/एसटी एक्ट संशोधन बिल लाना, ओबीसी आयोग को सवैंधानिक दर्ज़ा दिलाने के लिए लोकसभा में बिल पास, संसद को विश्वास दिलाया कि अगले साल मार्च तक दलित छात्रों के लिए 8,000 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति की बकाया राशि जारी कर दी जाएगी।
आखिर क्यों दलितों और पिछड़ों पर मेहरबान हो रही है मोदी सरकार। अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो दलित और ओबीसी की जनसंख्या 75 करोड़ से ज़्यादा है। एससी: 19.7%, एसटी: 8.5%, ओबीसी: 41.1%, सामान्य/अन्य: 30.8%। अगर बीजेपी को 75 करोड़ का आंकड़ा कुछ ज़्यादा ही लुभावना लग रहा है तो उसे समझना चाहिए कि 29% दलितों में इस समय पकड़ किसी पार्टी की है तो वो बसपा की है। 2014 में बसपा को भले ही कोई सीट न मिली हो लेकिन उसे 2.29 करोड़ वोट ज़रूर मिले थे और अगर पिछड़ों की बात करें तो कहते हैं जो संख्या में ज़्यादा होते हैं उन्हें एकजुट करना मुश्किल होता है। ओबीसी की पांच हज़ार से ज़्यादा जातियां हैं। समाजवादी पार्टी और लालू यादव के वोटबैंक के किले में सेंध लगाना भी मुश्किल होगा। चुनाव में संख्या बल अहम् होता है। सामान्य वर्ग की 31 करोड़ की जनसंख्या कम नहीं है। कहीं दलितों और पिछड़ों को लुभाने के चक्कर में भाजपा अपना जो सामान्य वर्ग का वोट बैंक है वो भी न खो दे।