विकास रंजन
टोक्यो, जापान: पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पंचतत्व में विलीन होने के बाद आज देश अपने एक और सुपुत्र को याद कर रहा है जो आज से 73 साल पहले देश हित के लिए शहीद हुआ था। 18 अगस्त 1945 को ताइवान में सुभाष चंद्र बोस का प्लेन दुर्घटना का शिकार हो गया था। जिसमें देश का लाल वीरगति को प्राप्त हुआ, हालांकि उनकी मौत आज भी काफी रहस्यों से भरी है। लोगों का मानना है की बोस उस दुर्घटना में नही मरे थे।
‘नेता जी’ जैसा की उन्हें लोग पुकारा करते थे और ‘अटल जी’ ऐसी दो शख्सियत हैं जिसके ऊपर हर किसी को नाज है। भारत के इन दोनों वीरों ने देश को तरक्की की राह में लाने के लिए भरसक प्रयास किए। ‘नेता जी’ ने आजादी से पहले देश को अंग्रेजी हुक्मारानों से आजाद करने को लेकर काफी संघर्ष किया तो वहीं ‘अटल जी’ ने आजादी के बाद से भारत को विश्य व्यापी पटल पर मजबूत करने की कोशिश की। आज धरती अपने इन दोनों सपूतों को बहुत याद कर रही होगी।
आज ‘नेता जी’ की 73 वीं की जयंती के मौके पर भारत के लोग उनकी रहस्यमय मौत की वास्तविकता जानना चाहते हैं। आज एक जापानी अनुयायियों ने बहुत ही वैध सवाल उठाया है: “अगर भारत सरकार का मानना है कि रेन्कोजी मंदिर में राख नेताजी की नही है तो वे आधिकारिक तौर पर रेन्कोजी मंदिर के पुजारी को क्यों नहीं बताते?”
नेताजी ने अपने ऐशो-आराम का त्याग किया है और बहुत दर्द का सामना किया है, ताकि हम “आजाद भारत” में जन्म ले सकें। क्या हम नेताजी को भूल जाएं? क्या हमें नहीं पूछना चाहिये की “नेताजी के साथ क्या हुआ?”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने टोक्यो स्थित रेन्कोजी मंदिर का कई बार दौरा किया। उन्होनें देश के उस लाल को कई बार श्रद्धाजंलि अर्पित की जिसने आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था।
नेता जी अभी भी न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी एक अध्ययन का विषय बने हुए हैं। नेता जी के जापान से गहरे संबंध थे। उन्होंने जापान की सरकार से बात कर द्वितीय विश्व युद्ध के आखिरी समय में जापानी सेना के साथ भारत में मार्च करने की कोशिश की। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ का सहयोग लेने के लिए नेता जी जापानी जहाज में ताईवान जा रहे थे जो की अचानक उनका विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया। विमान का इस तरह से दुर्घटना ग्रस्त हो जाना आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
निन्चरेन संप्रदाय का बौद्ध मंदिर रेन्कोजी, सुगिनामी-कु टोक्यो में स्थित है, जहां ‘नेता जी’ की राख रखी गई है। मंदिर हर साल 18 अगस्त को नेताजी के लिए एक विशेष सेवा रखता है जिसमें कई लोग उनकी याद में यहां आते हैं। ‘नेता जी’ की राख पर विवाद आज भी उतना ही गहरा है जितना पहले था, क्या वो राख वास्तव में उनकी है?
रेन्कोजी मंदिर में भारत के तीन प्रधान मंत्री और भारतीय समुदाय के कई लोग दौरा कर चुके हैं। मंदिर पर्यटकों से भरा रहता है जो नेता जी के संघर्ष को जानते हैं।
जापान और भारत न केवल सांस्कृतिक पहलुओं से जुड़े हैं अपितु राजनीतिक परिदृश्य से भी एक डोर से बंधे हैं। सुभाष चंद्र बोस जो 19वीं शताब्दी के अंत में पैदा हुए थे ने अंग्रेजी हुकमरानो को कई समय तक परेशान किया । वे भारत की आजादी को लेकर जापान जा रहे थे जब 48 साल की आयु में उनका विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया था।