1 / अमृतसर रेल हादसा में गाजर मूली की तरह कट कर 60 से भी अधिक लोग बेमौत मारे गए। करीब 70 से भी अधिक घायलों में ज्यादातर की हालत नाजुक बनी हुई है। वहीं हादसे के बाद लापता हो गए एक दर्जन के परिजन अपनों की तलाश में भटक रहे हैं। जोडा रेलवे फाटक के पास धोबी घाट रावण दहन मैदान के पास यह दुर्घटना हुई। रेलवे ट्रैक के निकट धोबी घाट मैदान पर पुतला दहन हो रहा था। तभी हावड़ा अमृतसर ट्रेन एक ट्रैक पर आयी तो ट्रैक पर खड़े होकर पुतला दहन देखने में तल्लीन लोग तो इसकी चपेट में आने से बच गये। मगर दूसरे ट्रैक पर आ रही अमृतसर जालंधर एक्सप्रेस के आने से पल भर में ही 60 से अधिक लोगों की मौत हो गयी। पूरी घटना कोई एक मिनट के भीतर ही हो गयी। ट्रेनों के गुजरने के बाद ही लोगो को यह अहसास हुआ कि एक मिनट में अंदर ही एक और जलियांवालाबाग नरसंहार हो गया।
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चारो तरफ चीख पुकार के शोर का मातम में कैसे बदल गया। छोटे से धोबी घाट की क्षमता मात्र दो हजार लोगों की थी, मगर रावण पुतला दहन के समय कोई पांच हजार की भीड़ जमा थी। अमृतसर शहर से मात्र डेढ किलोमीटर दूर इस फाटक ट्रैक पर रोजाना कोई एक सौ रेलों का परिचालन होता था। रावण दहन के समय भीड़ से ज्यादा शोर कोलाहल और पटाखे की आवाज थी कि रेल ट्रैक पर खड़े होकर जलते रावण को देखते ही देखते सैकड़ों लोग इसके शिकार बन गये। शहर के भिन्न-भिन्न अस्पताल में दाखिल घायलों में अभी भी 30 से अधिक की हालत नाजुक बनी हुई है। इस हादसे की चपेट में आने के बाद करीब दो दर्जन से अधिक लोग लापता हैं। लापता लोगों की मौत होने या अस्पताल में भर्ती का भी पता नहीं चल पाया है। इनकी तलाश में उनके परिजन भटक रहे हैं फिर भी सभी लापता लोगों की कोई खबर नहीं है। मारे गए सभी लोगों का डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम कर दिया ताकि उनके परिजनों को शव दिया जा सके। अभी तक 22 मृतकों की पहचान, नहीं हुई है। इनके शव को फिलहाल पहचान के लिए अस्पताल में रखा गया है।। इस हादसे के बाद राज्य सरकार की उपेक्षा से नागरिकों में रोष है। उल्लेखनीय है कि इस हादसे के 17 घंटे के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और नागरिकों के भारी विरोध को देखते हुए किसी भी मृतक परिवार से मिले बगैर ही वापस लौट गये। अलबत्ता मृतकों के परिजनों को पांच पांच लाख की राशि का भुगतान करने के लिए इस राशि को जारी कर दी गयी है। घायलों के लिए किसी भी सरकार ने कोई सांत्वना राशि देने की घोषणा नहीं की है। घायलों की इस उपेक्षा से नागरिकों और परिजनों में नाराजगी है।
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: इस हादसे के होते ही राजनीति आरंभ हो गयी। स्थानीय विधायक और राज्य सरकार में मंत्री रहे क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू के झूठ के साथ ही रेल नरसंहार पर राजनीति शुरू हो गयी। एकाएक इस नरसंहार के बाद श्रीमती सिद्धू फौरन घर भाग गयी। और बाद में यह सफाई देती रहीं कि इस घटना से पहले ही चली गयी थी और सूचना मिलने पर अस्पतालों में जाकर चिकित्सा में मदद करती रही। आज सुबह मौके पर पहुंचकर क्रिकेटर सिद्धू अपनी पत्नी की बचाव में सफाई देते घूमते रहे। श्रीमती नवजोत के दावे को गलत साबित करने वाले विडियो के वायरल होने से झूठ जगजाहिर हो गया है। लोगों में भारी असंतोष के बावजूद सिद्धू दंपति का बेशर्म दौरा जारी है। तो इजराइल जाने के लिए इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली में विमान की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस घटना के 17 घंटा गुजर जाने के बाद कैप्टन धोबी मैदान पर पहुंचे। स्थानीय लोगों में मुख्यमंत्री का बेसब्री से इंतजार हो रहा था। यहां आने के बाद भी कैप्टन ने बार बार यह उल्लेख किया। इस घटना पर शोक जाहिर करने से ज्यादा कैप्टन ने यह दोहराया कि वे तो हवाई अड्डे पर थे और विदेश जा रहे थे। यानी 17 घंटे के बाद भी मुख्यमंत्री मौके पर आकर मानों लोगों पर अहसान सा दिखा दिया है। नागरिकों के भारी असंतोष पर कैप्टन ने इसपर राजनीति नहीं करने और तू-तू मैं मैं नहीं करने का उपदेश भी दिया। तो अमरीका के सरकारी यात्रा पर गये केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस हादसे की खबर पाते ही फौरन सरकारी कार्यक्रम को निरस्त कर स्वदेश लौटने की घोषणा की। तो रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने रेलवे को इस घटना के लिए बेकसूर करार दिया। रेलवे के तमाम बड़े अधिकारी भी इस घटना के लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं है का दिन भर राग अलापने में लगे रहे। उधर अमृतसर प्रशासन पुलिस ने रामलीला आयोजन समिति पर कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं लेने का आरोप लगाया। मगर समिति द्वारा अनापत्ति प्रमाणपत्र सामने रख दिए जाने के बाद प्रशासन मूक हैं। तो अपनी आंखों के सामने घंटो से इकठ्ठा हजारो की भीड़ और रेलवे ट्रैक के पास के मजमे को देखकर भी रेलवे कर्मचारियों और प्रशासन को सूचना या जानकारी की जरूरत होती है। अपने स्तर पर सजग सतर्क और सावधानी से दूर रहने वाले रेलवे की महिमा धन्य है।
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: इस हादसे की सूचना पाते ही मानो शहर उमड़ पड़ा। अस्पतालों में सैकड़ों लोग आ गये और जनसेवा और मदद का एक बेमिसाल उदाहरण प्रस्तुत किया। घायलों की तिमारदारी में सैकड़ों लोग रात भर लगे रहे। गमगीन माहौल में भी खून देने के लिए लंबी-लंबी कतार लगी थी तो रात भर चाय दूध की बेशुमार व्यवस्था रही। अस्पताल में डॉक्टरों नर्सो और मेडिकल स्टाफ रातभर सक्रिय रहे। तो रातभर पोस्टमार्टम होते रहे। तो शहर के सैकड़ों लोग और संगठनों की मेहनत से लोगों को काफी सुविधा हुई। तो रात में रेल राज्य मंत्री का दौरा भी हालात का जायजा लिया। संवेदना प्रकट करने में सबों ने काफी फुर्ती दिखाई मगर मामला केंद्रीय सरकार की सजगता की हो या असंवेदनशीलता की तो इस मामले में सब सहोदर निकले। कांग्रेस के युवराज सुप्रीमो राहुल गांधी भी जुबानी तेजी दिखाने के बाद सूबे की सरकार की निष्क्रियता को रोक नहीं पाये। एक पल की यह घटना अब एक खूनी कालखंड की तरह हमेशा जीवित रहेगी। धोबी घाट को खूनी घाट में बदल डालने की यह घटना धीरे-धीरे लोगों की यादों से विलीन भी हो जाएगा, मगर इससे पीडि़त करीब दो सौ परिवारों के लिए यह घटना इतना गहरा जख्म दे गया है जो कभी भर नहीं सकता। हर साल की तरह अगले साल भी रावण दहन होगा मगर इन परिवारों के लिए कौन पीड़ा कम करेगा। इस मामले की जांच के आदेश दे दिए गये हैं। जांच की रिपोर्ट चार सप्ताह में आएगी। मगर पांच दर्जन लोगों की मौत की जिम्मेदारी से भाग रही संगठनों विभागों और सरकारों के लिए यह एक बेशर्म हादसा है कि वह किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा पा रही है। यह खूनी हादसा मानवीय तरीके से की जाने की जरूरत है। देखना है कि राजनीति की अग्नि में यह मुद्दा किस रास्ते पर किस तरह आगे जाएगा ?