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विधायकों की खरीद फरोख्त को रोकने के लिए लोकतंत्र नेस्तनाबूद / अनामी शरण बबल नयी दिल्ली।
लोकतंत्र की वकालत करते करते राज्यपाल सतपाल मलिक ने ही लोकतंत्र को आकार लेने से रोकते हुए विधानसभा ही अचानक भंग कर दी एकदम ज्योतिषियों की तरह रातोंरात इस आशंका से बचने बचाने के लिए कि विधायकों की खरीद फरोख्त होगी। इस तरह 19 दिसम्बर तक राज्य में सजीव राष्ट्रपति शासन का कार्यकाल समाप्त हो रहा था विधानसभा भंग होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती हैं या लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा का भी चुनाव कराया जाएगा। जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग करने की एकाग्रता कारवाई की चारो तरफ आलोचना हो रही है। इसे केंद्र के इशारे पर किया गया अलोकतांत्रिक कार्यवाही की तरह देखा जा रहा है। =विदित हो कि जून 2018 में राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद से ही जम्मू कश्मीर की सभी राजनीतिक दलों ने विधानसभा भंग करने की मांग की थी तब निष्पक्ष चुनाव की मांग को ठुकराते हुए राज्यपाल ने विधानसभा को भंग करने की बजाय निरस्त कर रखा था। राज्यपाल सतपाल मलिक बारम्बार सरकार के गठन की संभावनाएं तलाश रहे थे और जब राजनीतिक गतिविधियों के तेज होने के साथ ही राजनिवास की कलई खुल गयी। अभी राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ते ही राज्यपाल ने फौरन आदेश जारी करते हुए विधानसभा को भंग कर दिया।। विधानसभा भंग करने के साथ ही राज्यपाल ने आशंका प्रकट की थी कि स्थायी सरकार की उम्मीद नहीं थी। इस बाबत पीडीपी के महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को पत्र भेजकर 53 विधायकों की संख्या का दावा की थी। 87 विधायकों की विधानसभा में बहुमत के लिए 44 विधायकों का समर्थन चाहिए। पीडीपी प्रवक्ता अभिषेक सिंह ने राज्यपाल पर केंद्र के हितों की रक्षा के लिए जम्मू कश्मीर से छल करने का आरोप लगाया है। नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने भी राज्यपाल मलिक की हडबडा को गलत करार दिया है महबूबा मुफ्ती ने भी राज्यपाल पर जम्मू कश्मीर के जनमानस की भावनाओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है। जबकि कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने कहा कि राज्यपाल ने विचार विमर्श तक ना करके तानाशाही अंदाज में विधानसभा की बलि चढा दी। बहरहाल राज्यपाल चाहें कोई भी तर्क दे मगर एकाएक विधानसभा भंग करने की जरूरत को वे तर्क की कसौटी पर उतार नहीं पाएंगे। यानी मौसम में भले ही ठंडक हो मगर जम्मू कश्मीर की राजनीति में गर्माहट तेज हो गयी है और इसकी आंच से केंद्र सरकार की नीयत और अभी चार राज्यों में विधानसभा चुनाव में होने वाले मतदान पर भी चाल चरित्र चेहरा और चालबाजी का असर देखा जा सकता है।।