भारतीय जनता पार्टी के साथ संबंधों की पाट चौड़ी होने के साथ ही शिवसेना अपने प्रांतीय खोल महाराष्ट्र से बाहर निकलकर उतर भारत में आकर हूंकार भरने लगी है। अयोध्या में 25 नवम्बर को विश्व हिंदू परिषद् का धर्म सभा में शिवसेना की भागीदारी भाजपा के लिए भी संकट का सबब बनता दिख रहा है। धर्म सभा के आयोजन संयोजन ओर निष्पादन को लेकर लाखों की उन्मादी भीड़ और मंदिर को लेकर बावलापन से लोग आशंकित है। धर्मसभा अपनी ताकत प्रदर्शन का एक बहाना बनता जा रहा है। उन्मादी तेवर से पहले फूले ना समा रही भाजपा भी किसी उबाल से चुनावी परिणाम पर प्रतिकूल असर की आशंका से भी परेशान दिख रही है। == == = समय समय पर अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण को लेकर हो हल्ला हंगामा शपथ जान देने की कसम खाने-पीने का कसरत चलता रहा है। चूंकि चुनाव सामने है तो एक जलसा तो जरूरी सामानों होता है। और यही सालाना जलसा सबको सांसत में डाल दिया है। भाजपा इसके बहाने कोर्ट कचहरी और संविधान के चक्रव्यूह में ही रखना चाहती थी मगर शिवसेना की इंट्री के साथ ही पूरी पिक्चर बदल गयी है। लोकसभा चुनाव में सीटों के तालमेल नहीं बनने के साथ ही शिवसेना भाजपा के राजनीतिक रास्ते अलग थलग हो गये हों, मगर अयोध्या मंदिर का रास्ता एक ही है। भले ही शिवसेना के नुकीले तीरों से भाजपा आहत हो। शिवसेना ने मंदिर मुद्दे को भाजपा के लिए केवल जुमला कहकर सबको अचंभित कर दिया है।
==भाजपा पर तीखे वाणों के साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या पहुंचने वाले हैं। शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की तरह ही उद्धव ठाकरे भी पार्टी की बागडोर संभालने के बाद केवल अपने निवास मातोश्री से ही पार्टी चलाते रहे। मगर केवल महाराष्ट्र की सीमा ही शिवसेना के लिए लक्ष्मण रेखा बन गयी है। और अब इसी रेखा को फांदने के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे बेताब हैं। 25 नवम्बर के लिए उद्धव ठाकरे का दस्ता निकलने वाला है, मगर शिवसेना सांसद संजय राउत पिछले तीन सप्ताह से पूरी व्यवस्था करने में लगे हैं। महाराष्ट्र से अयोध्या कूच के लिए निकले हजारों साधु-संतों का दस्ता भी कल शनिवार को पहुंच जाएगा। शिवसेना के हजारों कार्यकर्ता भी अयोध्या में दाखिल हो चुके हैं और कोई पचास हजार शिवसैनिकों के साथ 24 नवम्बर को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या पहुंचने वाले हैं । जहां पर सभी धार्मिक नेताओं के साथ मिलकर श्री राम मंदिर के निर्माण की योजना पर विचार विमर्श किया जाएगा। रणनीति और ठोस फैसले पर सहमति की रूपरेखा तय होगी। और अयोध्या के साथ साथ मथुरा बनारस आदि मुद्दों को भी हवा देने की भावी योजनाओं पर भी अमली जामा पहनाने के एक्शन प्लान पर भी विचार किया जाएगा। कुलमिलाकर यहां पर भावी रणनीति पर फाईनल एक्शन पर ठोस कदम की योजना पर विचार विमर्श किया जाएगा ।= ==== खासकर शिवसेना की अयोध्या क्रांति में इंट्री के बाद भाजपा खेमे में बेचैनी है। दबंगई और समर्पित कार्यकर्ता जिसे शिवसैनिक कहा जाता है पूरे उमंग उत्साह के साथ हिंदी बेल्ट में पांव फैलाने के लिए तैयार है। यूपी बिहार झारखंड उत्तराखंड पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश छतीसगढ और दिल्ली में जमीनी स्तर पर पहुंचने की संभावना तलाश रही है। अगले दो साल के भीतर होने वाले स्थानीय निकायों ग्राम पंचायतों से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में शिरकत की योजना है जिसके लिए सभी दलों के बागी असंतुष्ट नाराज और उपेक्षित नेताओं के साथ मिलकर राजनीतिक ठोस धरातल की तलाश की जाएगी हालांकि शिवसेना सांसद संजय राउत भी खुलकर अपनी भावी रणनीति पर नहीं बोल रहे हैं। बकौल सांसद राउत अभी यह सही समय नहीं है। अयोध्या में सबकुछ निपटने दीजिए। लोकसभा चुनाव और शिवसेना के भविष्य पर इसके बाद ही योजना बनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि शिवसेना महीनों तक जमीनी स्तर पर काम करके ही अब आमने-सामने है। भाजपा के धोखे से लोगों साधु संतों को इस फरेब से बचाना होगा। क्या आपको नहीं लगता कि इससे पूरे देश में सांप्रदायिक हिंसा तनाव उग्र रूप ले सकता है? के जवाब में राउत ने कहा कि नहीं हमें इससे बचना होगा। बहरहाल अयोध्या में आहूत धर्मसभा में अंतत: क्या होगा? इसपर अभी कुछ भी कहना बेकार है। मगर विहिप और शिवसेना की तेजी से भाजपा टेंशन में है, क्योंकि शिवसेना की दिलचस्पी के बाद भाजपा के हाथों से यह मुद्दा भी संकट में पड़ सकता है। यानी तमाम धार्मिक शहरों स्थलों विवादों को हवा देने के लिए जब एक ही सोच की दो-दो राजनीतिक संगठन के लोग आपस में ही उलझने लगेंगे तो कुछ हो या न हो पर आपसी तनातनी में सामाजिक समरसता के खत्म होने की आशंका है। जिसे अपनी अपनी-अपनी जगह जमीन तलाशने की लालसा में सबके समाज के लोगों की चिंता इस धार्मिक उन्माद में किसी को नहीं है। राम जाने अयोध्या में क्या होगा आगे?