अनामी शरण बबल
मुख्यमंत्री का सपना दुश्वार बना नयी दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सबसे करीबी और प्रियजनों में शुमार राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और माधव राव सिंधिया के सांसद पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया परेशान चल रहे हैं। दोनों सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कमलनाथ के सामने इनकी एक नही चल रही है। अपने अपने स्टेट में त्रस्त प्रिय साथियों को लेकर कांग्रेस सुप्रीमो संकट में है। इनकी रक्षा के लिए लालयित राहुल गांधी फिलहाल संकटमोचन की भूमिका में उतरना नहीं चाह रहे हैं। ग्वालियर प्रिंस सिंधिया जूनियर को पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जिम्मा सौंप कर अपने साथ प्रमोट करने का मन बनाया है। उधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ पर अंकुश रखने के लिए दिग्विजय सिंह को सलाहकार बनाकर राहुल गांधी ने उनको कमल का महावत बना दिया है। दिग्गी के प्रति कांग्रेस सुप्रीमो का नजरिया भी बदल चुका है। यंग और अविवाहित सुप्रीमो द्वारा क्षमा कर दिए जाने के बाद से दिग्गी राजा पूरे मनोयोग से पार्टी के साथ कनेक्ट है। दिग्गी के तिकड़मों के चलते भाजपा और तोड़फोड़ में शिवराज सिंह कामयाब नही हो पा रहे हैं। आने वाले समय में फिर से सीएम की कुर्सी का सपना पाले बैठे शिवराज अपनी तोड़क नीति में एकल पड़ते जा रहे हैं। वहीं कांग्रेस के लिए सूबे में तिकड़ी को हटाना जरूरी हो गया था। जिसमें अनफिट बैठ रहे जूनियर सिंधिया को मौके के साथ प्रियंका गांधी के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कार्यभार दे दिया। प्रियंका और सिंधिया के साथ मिलकर राज बब्बर को यूपी में सबल किया जा रहा है। मगर राज बब्बर को फतेहपुर सीकरी से चुनाव लडना है। प्रियंका का पत्ता तो तुरूप का पत्ता है, जिसका राज अभी गोपनीय रखा गया है। उधर संभावना है कि सिंधिया को सीधे मैदान में न उतारकर उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया को चुनाव मैदान में उतारने का प्रयास हो रहा है। जूनियर सिंधिया को राज्यसभा में भेजने की रणनीति है। ताकि ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव में पूरा समय यूपी पर और एमपी में केवल गुना पर ध्यान दें। अपने अधयक्ष से सहमत होकर भी सिंधिया अपनी पत्नी को लेकर दुविधा में हैं।[: उधर राजस्थान की गद्दी पाते ही अशोक गहलोत ने अपने जूनियर पायलट को नजर अंदाज करना चालू कर दिया। राहुल गांधी को राज्य की हालात को सम्हालने के लिए पायलट पर भारी साबित हुए।: हालांकि चुनाव को लेकर अभी दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता है। पुलवामा आतंकी आत्मघाती हमले के बाद देश का पूरा तापमान और नजरिया ही बदल गया है। इस नरसंहार के 10 दिन के बाद भी चुनाव को लेकर कुछ भी संभव है। मगरअप्रैल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कमलनाथ और अशोक गहलोत को छह- छह माह के लिए सूबे की कमान दी गई थी। समझा जा रहा था कि यदि यूपीए गठबंधन की सरकार बनती है तो दोनों मुख्यमंत्री को भूत करके केंद्र सरकार में शिफ्ट करके दोनों यंग को कमान थमा दी जाएगी।, मगर चस्का कुर्सी का आसान नहीं होता। इसके तहत यंग एंड ओल्ड टीम में सामंजस्य बैठाने के लिए संभव है कि ढाई ढाई साल का कमान देकर भी सबों को संतुष्ट किया जाएगा। कमलनाथ की अपेक्षा अशोक गहलोत अपने राज्य में ज्यादा आजाद हैं। जबकि कांग्रेस सुप्रीमो राहुल गांधी के आश्वासन पर लोकसभा चुनाव तक के लिए सचिन पायलट को खामोश रहने के लिए कहा गया है। यानी आग को बुझाने की बजाय राख डालकर मामले को टालने की कोशिश की जा रही है। यानी दोनों युवा कमांडरो का मौजुदा हाल ठीक नहीं है। |