अनामी शरण बबल
नयी दिल्ली। लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के साथ ही सभी दलों की तैयारियों का अंतिम दौर परवान पर है। एक तरफ़ भाजपा इस लोकसभा चुनाव में भी पिछली बार की तरह ही पूर्ण बहुमत पाने के लिए जी तोड कोशिशों में जी जान से जुटी है, तो विपक्ष भी एक साथ एक होकर एक चेहरा एक आवाज और एकदम संगठित एकजुट होकर एनडीए और बीजेपी से भी बड़े से हो गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्तासे बेदखल करने की जी-तोड़ कोशिश और मेहनत में जुटा हुआ है। कुल मिलाकर यह चुनाव बीजेपी या एनडीए सहित नरेन्द्र मोदी बनाम यूपीए गठबंधन विपक्ष नजर आ रहा है। एक तरफ़ दबंग वाचाल और धमकी के अंदाज में चुनौतियां उछालने वाले भाजपा इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को लेकर केवल मोदी के भरोसे ही मैदान में उतर रही है। इसके सांसदों से लेकर कार्यकर्ताओं के पास काम से भी बड़ा नाम कर्म और धर्म मोदी बने हुए हैं। सबको अपने उपर से ज्यादा भरोसा केवल मोदी के नाम की महिमा का सहारा प्रतीत हो रहा है।
तो विपक्ष एकजुट तो दिखने की कोशिश कर रही है, मगर एकता एक आवाज एक नेता और एकताल का अभाव है। ढेरों नेताओं के अपाहिज सपनों को पूरा करने की एक कोशिश है। एनडीए के मुकाबले के लिए यूपीए कोई चेहरा पेश नहीं कर पाया है। मोदी बनाम कोई एक चेहरा सामने पेश नहीं करने से भी आम जनता के बीच एकता का संदेश नहीं जा रहा है।
लोकसभा चुनाव की हालत पिछले चुनाव से एकदम अलग हैं। वर्ष 2014 में लोकसभा का चुनाव के समय यूपीए सत्ता में थी और मनमोहन सिंह सरकार का दस साल भी पूरे हो रहे थे। भ्रष्टाचार एवं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गूंगापन से भी पूरा देश नेताविहीन सरकार महसूस करने लगी थी। जनता बिना लहर के ही एक सत्ता विरोधी लहर के साथ राष्ट्रीय स्तर पर एकदम नये चेहरे के रुप में प्रकट हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की लच्छेदार बातों जुमलों और मोहक सपनों में खो गपी।
भाजपा को 2014 में यूपीए के प्रति नाराजगी और सत्ता से बाहर होने की सहानुभूति का भी पूरा लाभ मिला। उसने राष्ट्रीय स्तर पर उभर रही नरेंद्र मोदी की छवि को भी पूरे देश में भुनाया। जिससे 30 साल के बाद कोई पार्टी (भाजपा) स्पष्ट बहुमत के साथ सबको लेकर मोदी बतौर प्रधानमंत्री सरकार बनाने में सफल रहे। लेकिन अब 2019 में राजनीतिक स्थितियां काफी बदली हुई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि गुजरात, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में सारी सीटें जीतना भी आसान नहीं है।
मोदी का लोकलुभावन चेहरे का आकर्षण भी खंडित हुआ है। मंदिर मुद्दे में विफलता से भी एक वर्ग भी नाराज था। एकदम ईमानदार बेदाग दिखने दिखाने की कोई भी कोशिश नही छोड़ने वाले मोदी जी यानी राफेल मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा चौकीदार चोर है के आरोप का भी प्रधानमंत्री जवाब नहीं दे पा रहे हैं। तभी कोर्ट में सरकार का यह कहना बहुत कि राफेल फाइल गायब हो गयी है, ने इस उपेक्षित आरोपों में नयी जान फूंक दी। एकाएक फाईलों के लापता होने की खबर की तीखी प्रतिक्रिया और अविश्वास को देखकर अगले ही दिन कोर्ट में यह कहकर अपनी नाक बचाने की कोशिश की कि फाईल लापता नहीं हुआ है केवल फोटोकॉपी नहीं मिल रहा था। मोदी सरकार के बचकानी तर्क से पहली बार जनमानस में राफेल को लेकर राहुल गांधी के आरोपों पर यकीन सा होने लगा है। हालांकि तमाम विरोधाभाषी ताकतों और सपनों और हसरतों के बीच विपक्ष की एकता कितना टिकाऊ का संदेह गहराया प्रतीत हो रहा है। तो मोदी सरकार को बाहरी ताकतों से भी अधिक खतरा अंदरूनी ताकतों से सावधान रहने की जरूरत है। मोदी और भाजपा सुप्रीमो अमित शाह ने मिलकर पूरी पार्टी को ही चंद हाथों की पार्टी बनाकर सबको दरकिनार करके हाशिए पर कर दिया है। इन अंदरूनी ताकतों का इरादा सता पाना तो है, मगर मोदी को दरकिनार करने की सामूहिक योजना भी परदे के पीछे सक्रिय हैं। इनसे निपटना मोदी और शाह के लिए सबसे कठिन है,। सबसे बड़ी चुनौती भी है, भले ही पाकिस्तान पर पुलवामा आतंकी आत्मघाती हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करके देश में एक राष्ट्रीयता की नौका पर सवार एनडीए को सबकुछ सरल आसान और सुरक्षित क्यों ना लग रहा हो। ।।