अनामी शरण बबल
नयी दिल्ली। बेहतरीन जुमलेबाजी शब्दों की तुकबंदी और मुहाबरेदार लच्छेदार शब्दों की फंतासी परोसने में भारत के अबतक हुए 15 प्रधानमंत्रियों में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई दामोदर मोदी का कोई जवाब नहीं है। भारत के सबसे कम बोलने वाले गूंगे प्रधानमंत्री के रुप में कांग्रेस के मनमोहन सिंह का नाम सबसे अव्वल रहेगा, तो सबसे अधिक और लगातार अनथक बोलने वाले वाचाल प्रधानमंत्री की कतार में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सब पर भारी पड़ते हैं। दिन हो या रात कोई भी मौसम हो या मौका प्रधानमंत्री मोदी जी की वाणी में सरस्वती का वास है। जब वे शुरु हो गए तो फिर गंगा की तरह अविरल शब्दधार प्रवाहित रहता है।
ऐसे ही लाजवाब 15 प्रधानमंत्रियों में सबसे अनूठे मोदी जी ने अपने पंचवर्षीय कार्यकाल ने एक दुर्लभ रिकॅार्ड बनाया है। रिकॅार्ड भी ऐसा कि चाहकर भी कोई दूसरा प्रधानमंत्री इसकी बराबरी करना या तोड़ने की हिमाकत नहीं तक सकता है। कोई भी प्रधानमंत्री इस मामले में तो कम से कम कोई भी प्रधानमंत्री मोदीजी का सखा बनना नहीं चाहेगा।
जी हां प्रचार पाने और सुर्खियां बटोरने मीडिया की पहली खबर बनने के मामले में उस्तादों के उस्ताद साबित हुए मोदीजी मूलतः मीडिया से नफ़रत करने वाले पीएम हैं। मीडिया का पूरा का पूरा इस्तेमाल करने के बावजूद 60 महीने या 1830 दिवसीय शासन ने एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस या संवाददाता सम्मेलन नहीं करना पीएम के कार्यकाल की सबसे शर्मनाक उदाहरण या उपलब्धि है। देश में आपातकाल लगाकर मीडिया का गला घोंटने में सबसे बदनाम प्रधानमंत्री श्री मती इंदिरा गांधी ने अपने कई बार के शासनकाल में निरंतर संवाददाता सम्मेलन करती रही है। सबसे कम बोलने वाले गूंगे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपने कार्यकाल में संवाददाताओं से मिलने का क्रम नहीं तोडा। कवि ह्रदय हरदिल अज़ीज़ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मीडिया को सिर पर संभालकर रखा। मीडिया से दोस्ताना भाव रखने वालों में इंद्र कुमार गुजराल एचके देवेगौड़ा और अपनी जगत विख्यात ईमानदार छवि की इमेज स्थापित करने वाले तोपची प्रधानमंत्री राजा मांडा उर्फ विश्वनाथ प्रताप सिंह मंडल कमंडल के सबसे अशांत और अस्थिर शासनकाल में भी मीडिया को एक अौजार की तरह मीडिया का जमकर अपने हित के लिए यूज किया। गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के इस अध्याय में चंद दिनों के लिए पीएम बनकर अपने नाम को दुर्लभ और कालजयी बनाने वाले प्रधानमंत्रियों में किसानों के जाट नेता चौधरी चरण सिंह और समाजवादी समतावादी प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जिक्र होना न होना एक समान है। अल्पजीवी प्रधानमंत्री चरण सिंह ने तो कभी भी एक प्रधानमंत्री के रूप में संसद का मुंह तक नहीं देखा, तो मात्र चार माह के कार्यकाल की उपलब्धियों को 40 साल के समान मानने वाले आत्ममुग्ध चंद्रशेखर इसके बावजूद संवाददाताओं से बात करने और प्रेस कॉन्फ्रेंस करना नहीं भूले।
अपनी अधिक उम्र, स्वमूत्रपान और सनकपन के लिए विख्यात मोरारजी भाई देसाई ने अपने कार्यकाल में कोई छाप नहीं छोड़ी। इसके बावजूद अपने लगभग दो सालों के कार्यकाल में उठापटक राजनीति के अशांत दौर में भी अपने कार्यकाल पर संवाददाताओं को चीरफाड़ करने का मौका दिया। मगर सबके लिए मोहक आत्मीय अपने सहोदर बनने लगने और दिखने के लिए सदैव लालयित रहने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी मीडिया के लिए सहोदर छवि नहीं बन बना सके। अपनी आक्रामकता और अपने खिलाफ उठती आवाज को नापंसद करने वाले मोदी युग में मीडिया को गोदी मीडिया कहा जाने लगा। अपने खिलाफ एक आवाज को भी बर्दाश्त नहीं करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी इस मीडिया विरोधी छवि को अद्भुत आकार दिया। इसके बावजूद मीडिया कर्मियों के कंधे पर हाथ रखकर उनको अभिभूत रखा। जबकि कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में सबसे उदारछवि प्रदर्शित करने वाले पीएम अपने मंत्रियों को भी मीडिया के दायरे में लाया। हमेशा प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसके बावजूद मानहानि बिल लाकर मीडिया विरोधी छवि को प्रबल किया। भारी विरोध के बाद मानहानि बिल वापस भी ले लीं, नगर उदारवादी नजरिए के बाद भी मीडिया को लेकर इनकी दुविधा इनको कटघरे में ही रखा। भारी विद्वान पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में अयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा के साथ साथ उग्र हिन्दुत्व के उभार ने समाज को नया धार्मिक उग्रता में रंग डाला। मंदिर मंडल कमंडल के इस दौर में आरक्षण की लपटों के बावजूद प्रधानमंत्री राव ने मीडिया से नैतिक जिम्मेदारी का सदा आदर सम्मान जताया।
आपातकालीन दौर के लिए आज भी बदनाम मानी जाने वाली इंदिरा गांधी ने मीडिया के समुचित विकास के लिए भी काम किया। जबकि प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी ने अपने अल्प कार्यकाल को उच्चाई दी। किसान खेती को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की, मगर असामयिक मृत्यु पर से आज़ भी रहस्य का पर्दा बरकरार है। उस समय मीडिया के नाम पर केवल दो चार अखबार और न्यूज़ एजेंसी भर ही थे। जिसके सम्मान में शास्त्री जी ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के सम्मान को अपना दायित्व माना। जबकि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने मीडिया अभिभूत था। लगभग एक दशक तक नेहरू युग में मीडिया का चारण वंदना का दौर रहा। एक तरफ़ आजादी का नशा और उसके बाद देश और नागरिकों के संसाधनों के प्रति नेता सता की बेरूखी से देश का सर्वागिण विकास बाधित रहा। मात्र एक दशक में ही जवाहर का तिलिस्म टूटने लगा। इसके बावजूद मीडिया के साथ नेहरू का लगाव उनकी आधुनिक छवि को विस्तार देता रहा है।
सभी प्रधानमंत्रियों से अलग नरेन्द्र मोदी का मीडिया मैनेजमेंट सबसे अलग और बेहतर होने के बाद भी मीडिया से अपने लगाव को चर्चे से परे रखा। यही वजह है कि मोदी युग में मीडिया पर अप्रत्यक्ष शिकंजा होने के बाद भी मीडिया को चीखने की आजादी नहीं दी। अपने कामकाज के आगे मीडिया की परवाह नही करने की छवि को इस तरह विकसित किया कि जनता के बीच लोगों के मन में मीडिया की इमेज ही काम विरोधी करार कर दिया। और इसी छवि को पुष्ट करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पांच साल तक मीडिया का अपने लिए जमकर इस्तेमाल किया। संभवत मीडिया का अपना गुलाम बना लेने का यही कौशल पीएम मोदी का सबसे प्रबल पक्ष है। जिसका न कोई तोड़ है और ना ही कोई जोड़ है।।।।