शहीदे-ए – आजम भगत सिंह की जयंती पर शत शत नमन – गिरीश पाण्डे

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देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले शहीदों को कोटि कोटि नमन।

लेकिन ज़रा गहरायी से विचार करिए –

1. क्या मात्र उनको नमन करना या याद करना ही काफ़ी है ?

2. उनके सपने क्या थे जिनके पूरा होने की आशा में वे ख़ुशी ख़ुशी फाँसी के फंदों पर झूल गए थे ?

3. उनके वे सपने कहाँ रखे या लिखे हैं ?

4. क्या उन्होंने कल्पना की थी कि उनकी क़ुर्बानी से प्राप्त आज़ाद व्यवस्था में 6 लाख से अधिक किसानों को आत्महत्या करनी पड़ेगी ?

5. बहुसंख्यक बच्चों और लोगों के शिक्षा और स्वास्थ्य की ये दुर्दशा होगी ?

6. आरक्षण इस तरह से लागू होगा कि आरक्षित वर्ग के सबल ही अपने वर्ग के दुर्बलों का हक़ छीनते रहेंगे और वास्तविक दुर्बलों , अनाथों को वंचित ही रहना पड़ेगा ?

7. जनता को पता ही नहीं होगा की देश की असली मालिक वही है । अगर किसी के पास कोई प्रॉपर्टी है जिसका उसके पास न तो दस्तावेज़ है, न ही क़ब्ज़ा है और न ही उसे पता है कि यह प्रॉपर्टी उसकी है,तो क्या होगा ?
जिसे उस प्रॉपर्टी की जानकारी होगी और जिसका क़ब्ज़ा होगा वही उसका उपभोग करेगा ।
यही हाल आज आम जनता का है। सत्ता जनता के पास है लेकिन जनता ने उस दस्तावेज़ का नाम नहीं सुना जिसके द्वारा जनता को सत्ता मिली है ,वह जानती है भी नहीं कि सत्ता उसके पास है और न ही जनता का सत्ता पर क़ब्ज़ा है। इसीलिए सत्ता कुछ चालाक लोगों ने हथिया लिया है और जनता अपने को आज भी प्रजा समझे हुई है । संविधान ही वह दस्तावेज़ है जो सत्ता जनता को सौंपती है लेकिन दुर्भाग्य ये है के अधिकांश जनता ने तो संविधान का नाम ही नहीं सुना है और आप गांव में जाकर हज़ारों लोगों से पूछ डालिए कि सत्ता किसके पास है तो डी एम , सी एम और पी एम के अलावा और कोई उत्तर नहीं मिलेगा और यह जनता की ग़ैर जानकारी का परिणाम है कि हिंदुस्तान दुनिया के उन 260 से अधिक देशों में अकेला देश है जहाँ जनता का रास्ता रोक कर उसके सेवकों को गुज़ारा जाता है। आज़ादी के बाद उसी छलावे की मानसिकता की वजह से देश को प्रजातंत्र कहा गया और आज भी जब किसी पी एम ,सी एम का शपथ ग्रहण होता है तो मीडिया कहती है फ़लाँ फ़लाँ का राजतिलक ?
ये निहित स्वार्थ के सत्ता लोलुप लोग नहीं चाहते कि जनता को अपनी शक्ति का एहसास हो ।
8. यह भी है विचित्र किंतु सत्य!अविश्वसनीय!! देश में अभी तक संविधान व लोकतंत्र लागू ही नहीं हुआ इसलिए शहीदों के सपने नहीं पूरे हुए और अभी तक नहीं पूरे हो पा रहे हैं ।!! संविधान किसको लागू करना है? देश के मालिक को!देश का मालिक कौन है?’हम भारत के लोग’ देश की जनता.जब 95% से अधिक हम भारत के लोगों ने संविधान का नाम नहीं सुना और 99% लोग संविधान के बारे में जानते ही नहीं, फिर संविधान कैसे लागू हुआ?किसने लागू किया??यह कुछ लोगों द्वारा हथियाया जाता रहा है और यहाँ भीड़तंत्र चल रहा है।आइए संविधान जानें और जनायें ताकि लोकतंत्र स्थापित हो और जनता जाने कि सत्ता उसके पास है और शहीदों के सपने पूरे हों ।

और ये सब इसीलिए हो रहा है क्योंकि –

1. हम शहीदों के सपनों को नहीं जानते ।

2. हम नहीं जानते कि भारतीय संविधान ही शहीदों के सपनों का कलश है ।

3. संविधान जन जन तक गया ही नहीं , जबकि संविधान में पहला मूल कर्तव्यहै कि हर नागरिक को संविधान का पालन और उसके आदर्शों का आदर करना है.जिसके लिए जानना ज़रूरी है।जो संविधान नहीं जानता; नागरिक नहीं,महज़ भीड़ का हिस्सा है

4. हम भूल गए संविधान सभा की उन महान विभूतियों राजेंद्र बाबू और अम्बेडकर साहब के शब्दों को ।भारत का संविधान पारित करते समय बाबू राजेंद्र प्रसाद (लगभग 4०० सदस्यों की संविधान सभा के अध्यक्ष) और डॉक्टर अम्बेडकर (संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष) दोनों ने 26नवम्बर 1949 को कहा था की अगर अच्छे चरित्रवान संवेदन शील ईमानदार और चरित्रवान लोग चुनकर नहीं आएँगे तो अच्छा संविधान भी देश को ख़ुशहाल नहीं कर पाएगा । उन्होंने दुहरी ज़िम्मेदारी दी थी : अच्छे लोगों को , कि वे चुनाव में प्रत्याशी बनें और भारत के लोगों को कि वह ऐसे लोगों को जिताए । इसके लिए जरूरी है कि चुनाव जाति, धर्म , शराब , बाहुबल , बड़े बड़े कट आउट , सैकड़ों हज़ारों गाड़ियों के क़ाफ़िलों , मीडिया द्वारा बनायी गयी इमेज के आधार पर या अति खर्चीला न हो। जो भी बहुत अधिक धन, करोड़ों रूपये खर्च करके चुनाव जीतेगा, चाहे वह रूपया व्यक्ति का हो या पार्टी का हो नम्बर एक का हो या दो का, वह कई गुना कमाएगा और उसी में लगा रहेगा। जनता और उसकी सेवा और समस्यायें सुलझाना और शहीदों के सपनों के अनुसार व्यवस्था चलाना उसके लिए गौड़ हो जाएगा।

तो आइए क्रांति के अग्रदूत , मां भारती के वीर सपूत , अमर शहीद ,शहीदे-ए – आजम भगत सिंह की जयंती पर अपने अंतस्तल से ये प्रतिज्ञा करें, प्रण करें कि-

1.मात्र शहीदों को श्र्द्धांजलि देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं मान लेंगे बल्कि उनके सपनों को पूरा करने के लिए जी जान से लग जाएँगे ।

2.भगीरथ बन कर उनके सपनों की गंगा , संविधान गंगा को जन जन तक ले जाएँगे ,

3.हर चुनाव में , चाहे वह लोकसभा , विधान सभा , नगर निकायों या गाँव पंचायतों का हो , अच्छे , चरित्रवान , ईमानदार , संवेदनशील लोगों को ही प्रत्याशी बनाने के लिए उत्साहित करेंगे और जिताएँगे ।
शहीदों के सपनों को पूरा करने वालों को जिताएँगे न कि पैसे , शराब ,जाति , धर्म , बाहुबल , अति प्रचार , मीडिया में बड़े बड़े विज्ञापन और प्रचार , भौकाल बनाने या जिताऊपन के आधार पर ।

और अंत में –
अच्छे और संवेदनशील व्यक्ति को चुनकर अपना प्रतिनिधि बनाएँ.
आओ हम सब मिल जुल-कर शहीदों के सपनों को साकार कराएँ

 

गिरीश पाण्डे

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