सुनील अग्रवाल।
भारत में हर एक आन्दोलन कुछ बयां करता है। देश में कुछ ऐसे विकृत मानसिकतावादी तत्व हावी होते जा रहे हैं,जिनका मकसद देश में अराजकता फैलाना रहा है। सीएए के नाम पर आन्दोलन का हश्र क्या हुआ। आन्दोलन के नाम पर दिल्ली को दंगे की आग में झोंक दिया गया। वहीं किसान आन्दोलन के नाम पर देश की राजधानी दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के बहाने कुछ शरारती तत्वों ने लालकिले पर चढ़ाई कर तिरंगे का अपमान किया। क्या इन हालातों में होगा देश का विकास।
देश को प्रगति के पथ पर लाने वास्ते ऐसे हिंसात्मक गतिविधियों व आन्दोलनों पर रोक लगाना निहायत जरूरी है। जरूरत पड़ने पर कानून में संशोधन करने की जरूरत पड़े तो ऐसा करना समय की मांग है। वरना देश को दीमक की तरह चाट खाने वालों की कमी नहीं है।
कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने वाले हैं, मगर मुठ्ठी भर अराजकतावादी ताकतों के रहते क्या ऐसा हो पाना मुमकिन है।एक ओर जहां कोरोना वैक्सीन की सफलता से पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है और दर्जनों देश भारत की ओर उम्मीद की टकटकी लगाए बैठे हैं, वहीं इस देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो देश में निर्मित वैक्सीन पर हीं अपनी सियासत को हवा देने में लगे हुए हैं। जहां ब्राजील के शासक ने भारत में निर्मित वैक्सीन को संजीवनी बूटी करार देकर भारत के मान सम्मान में चार चांद लगाने का काम किया है वहीं भारत की इस उपलब्धि पर कुछ राजनैतिक दलों द्वारा सवालिया निशान लगाते हुए देश के मान सम्मान को कलंकित करने पर आमादा हैं। जाहिरा तौर पर ऐसे लोगों को भारत की यह उपलब्धि रास नहीं आने वाली, कारण उन्हें महज सत्ता सुख भोगने से वास्ता है ना कि देश के मान और सम्मान से कोई सरोकार। ऐसे लोगों की घटिया मानसिकता और सोंच का तो कहना हीं क्या। देश को भगवान बचाए ऐसे लोगों से।
जहां तक कांग्रेस,वाम दल,आम आदमी पार्टी समेत तमाम विपक्षी पार्टियों का सवाल है तो ये हमेशा से इस प्रयास में लगे रहते हैं कि किसी प्रकार आन्दोलन को हवा देकर भड़काऊ बनाया जाए,भले हीं देश जाय भाड़ में। देश की सुरक्षा व अस्मिता से इन्हें कोई सरोकार नहीं। रंग बदलने के मामले में तो गिरगिट भी इनसे पनाह मांगती है। दिल्ली वालों को सुहावने सपने दिखाकर सत्ता की सियासत पर काबिज केजरीवाल और उनकी टीम ने दिल्ली का दिवाला तो पहले हीं निकाल दिया, अब कथित किसानों को हर प्रकार का सहयोग पहुंचाकर खुलें रूप से अराजकतावादी ताकतों को समर्थन देने पर आमादा हैं। यह वही केजरीवाल है जिसने इस तीनों कृषि बिल का सबसे पहले समर्थन कर विधानसभा में पारित करवाया और अब अपना असली चेहरा उजागर कर औकात दिखाने पर उतारू है।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो यह वही कांग्रेस है जो अपने कार्यकाल में किसान आन्दोलन पर गोलियां बरसाने से भी बाज नहीं आई और अब कथित किसानों की हिमायती बनने का ढोंग कर रही है। बेशर्मी की भी एक हद होती है, लेकिन इसने तो उसे भी पार कर दिया। कारण कल तक किसानों के लिए खुले बाजार का समर्थन करने तथा अपने घोषणापत्र में इसका उल्लेख करने के बावजूद अब उससे मुकरने से भी उसे परहेज नहीं। प्रधानमंत्री को तानाशाह घोषित करने पर उतारू कांग्रेस के शहजादे कथित किसानों के बीच भड़काऊ बयानबाजी कर फुर्र हो जाना इनकी नियति बन गई है। यह वही कांग्रेस है, जिसने दिल्ली को दहलाने वालों को बचाने वास्ते वकीलों की एक लम्बी फौज खड़ी कर रखी है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने ऐसे मामलातों से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं, जिससे कांग्रेस के बीच छटपटाहट साफ देखी जा सकती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस कथित किसान आन्दोलन का स्वरूप तिरंगे के अपमान के बाद बिल्कुल बदल गया है। तभी तो कई अन्य किसान नेताओं ने इस आंदोलन से खुद को किनारा कर लिया है। अब महज किसानों का दोहन करने वाले कुछ स्वार्थी तत्वों का जमावड़ा भर रह गया है,जो अपना सियासत चमकाने में लगे हुए हैं। इसी में एक चेहरा है राकेश टिकैत का, जिसे खालिस्तानी समर्थकों का भरपूर सहयोग प्राप्त है। किसान आन्दोलन से अलग हुए किसान नेता भानुप्रताप ने तो उसे लूटेरा तक करार दे दिया है। सैकड़ों बीघा जमीन का मालिक खुद को किसानों का नेता साबित करने पर आमादा है। इसकी मंशा रही है कि किसी प्रकार सरकार इन किसानों पर गोलियां चलाये, ताकि लहुलुहान किसान उग्र रूप धारण कर सकें और यह साबित किया जा सके कि देश की मोदी सरकार किसान विरोधी है।
बहरहाल देश की जनता सब जानती और समझती है, जिसे अब ओर मुर्ख नहीं बनाया जा सकता। पिछले 60-65 वर्षों तक मुर्ख बनकर हश्र देख चुकी है। अब हिन्दुस्तान की जनता हर पहलू पर बारीकी से विचार-विमर्श करने की क्षमता रखती है। अपने हक के वास्ते आन्दोलन हो, इससे किसी को कोई एतराज़ नहीं, मगर उसे हिंसक रूप देना कतई मुनासिब नहीं और न ही देश का कानून इसकी इजाजत देता है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि हर आन्दोलन में कुछ शरारती तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है,जिनका एकमात्र उद्देश्य ऐन केन प्रकारेन राष्ट्र को क्षति पहुंचाना रहता है। कुछ ऐसा हीं हश्र इस कथित किसान आन्दोलन में भी देखने को मिलता है, जिससे देश की छवि धूमिल होती है। अब तो देश के सबसे बड़े गांधीवादी आन्दोलनकारी अन्ना हजारे ने भी साफ लहजे में कह दिया है कि मोदी सरकार द्वारा लाया गया तीनों कृषि कानून किसानों के हित में है। बावजूद कुछ कथित किसान नेता खास तौर पर राकेश टिकैत अपने जिद पर अड़े हुए हैं और देश के किसानों को बरगलाने से बाज नहीं आते।