मूल्य वृद्धि पर विपक्ष का विधवा विलाप क्यों

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सुनील अग्रवाल।

आखिर बढ़ते महंगाई पर विपक्ष द्वारा विधवा विलाप क्यों, जबकि देश की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के कारण अस्त व्यस्त हो गई है। ऐसे में सरकार पर जहां अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की जिम्मेदारी है वहीं आमजनों की जान की हिफाजत करने वास्ते देश में जमा धन राशि का एक बड़ा हिस्सा वैक्सीन के रूप में खर्च किया जाना
है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पहले लोगों की सुरक्षा पर गौर किया जाए या महंगाई पर काबू पाया जाए।
सच्चाई तो यह है कि देशवासी सुरक्षित रहेंगे तो महंगाई पर काबू पाया जा सकता है। जान है तो जहान है,आमजन इस बात को बखूबी महसूस करते हैं, मगर मुद्दा विहीन विपक्ष इसे पचा नहीं पा रहा है। कारण साफ है कि मोदी की बढ़ती लोकप्रियता इन्हें हजम नहीं हो पा रही है।
गौरतलब है कि पेट्रोलियम पदार्थों की पैदावार भारत में नहीं होती है और न हीं यह कोई उपजाऊ चीज है, बल्कि खाड़ी देशों से आयात किया जाता है। सरकार ने कोरोना काल से निबटने वास्ते महज इस पर लगने वाले आयात शुल्क में मामूली वृद्धि की है। अगर राज्य की सरकारें चाहें तो इस वृद्धि पर नियंत्रण पाया जा सकता है, क्योंकि इस पर लगने वाले टैक्स केन्द्र सरकार के अपेक्षाकृत राज्य सरकारों की काफी ज्यादा है। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि अगर पेट्रोल की सही कीमत 30.50 है तो टैक्स के रूप में केन्द्र सरकार को 16.50 प्राप्त होता है जबकि राज्य सरकारों को शुद्ध लाभ 38.55 रुपए मिलता है, वहीं वितरण करने वालों को 6.50 हासिल हो रहा है। ऐसे में मूल्य वृद्धि का सारा टिकरा केन्द्र सरकार पर फोड़ना कहां तक मुनासिब है।
सोचने वाली बात यह भी है पेट्रोलियम पदार्थों एवं रसोई गैस की कीमतों में भले हीं वृद्धि हुई हों मगर इतना कुछ होने के बावजूद खाद्य पदार्थों एवं सब्जियों के कीमतों पर इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। ऐसे में मूल्य वृद्धि को कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों द्वारा डायन बताकर केन्द्र सरकार पर हमलावर होना कहां तक लाजिमी है।
मोदी सरकार का मानना है कि हमें इंधन के आयात पर निर्भरता कम करने की जरूरत है और इसके विकल्प पर विचार करने की आवश्यकता है। साथ हीं पेट्रोलियम पदार्थों में आये दिन होने वाले मुल्य वृद्धि के लिए पिछली सरकारें जिम्मेदार है। कारण उसने भविष्य को ध्यान में रखते हुए कभी इसके विकल्प पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया,जिस कारण मध्यम वर्ग को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे देखा जाय तो कोरोना महामारी के कारण जिस प्रकार देश के विकास और आर्थिक गतिविधियों पर ब्रेक लगा है उससे उबरने के लिए ऐसे कड़े फैसले लेना सरकार की मजबूरियां बन जाती है। यूं भी सरकार ने बजट में आम लोगों पर कोई अतिरिक्त सरचार्ज नहीं लगाने का ऐलान कर रखा है। हालांकि ऐसी संभावना जताई जा रही थी कि कोरोना महामारी से पूरे साल ठप्प पड़ चुकी तमाम गतिविधियों से उबरने वास्ते सरकार द्वारा कोरोना सरचार्ज लगाकर आम लोगों पर बौझ डाल सकती है, मगर ऐसा कुछ न हुआ और ना हीं आगे होने की उम्मीद की जा सकती है। बावजूद विपक्ष द्वारा हाय तौबा मचाया जाना कहां तक लाजिमी है। जहां तक ईंधन में मूल्य वृद्धि करने का सवाल है तो फिर सरकार के पास और क्या विकल्प था।विपक्ष को इस ओर भी सोचना और समझना होगा। अगर पेट्रोलियम पदार्थों के कीमतों में वृद्धि नहीं किया जाता तो हमारा भी हश्र पड़ोसी देश पाकिस्तान की भांति भिखारियों जैसी हो जाती। आज पाकिस्तान में क्या हालात है यह किसी से छिपा नहीं है। वहां के लोग आज दाने दाने को मोहताज हैं। पाकिस्तान को जिस चीन पर नाज था,अब तो वह भी उसे ठेंगा दिखाने लगा है, जबकि सऊदी अरब पहले हीं उसे दुत्कार चुका हैं।
वहीं भारत के देश भक्तों को यह कतई गंवारा नहीं कि पाकिस्तान की भांति उनका देश किसी अन्य देश के रहमो-करम पर आश्रित रहे। भारत के लोग स्वाभिमान हैं, जो सर कटा तो सकते हैं, परन्तु झुका नहीं सकते। यूं भी हम सरकारी रहमो-करम पर कब पर आश्रित रहेंगे। अब समय आ गया है कि हमें खैरात भरी जिंदगी से ऊपर उठकर खूद के लिए एक नई राह तलाशनी होगी। तभी हम और हमारा देश खुशहाल हो पाएगा और तरक्की कर पाने में सक्षम होगा। किसी शायर ने ठीक हीं कहा है कि “पीर पर्वत हो गई अब पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से एक और गंगा निकलनी चाहिए, सिर्फ हंगामा खड़ा करूं यह मेरा मकसद नहीं,अब इस देश की सूरत बदलनी चाहिए”। देखा जाय तो मोदी सरकार देश की शक्ल और सूरत दोनों हीं बदलने के प्रयास में तन्मयता से लगी हुई है और इस पर सवाल उठाना निर्थक है।

भागलपुर से सुनील अग्रवाल

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