आलोक कुमार
प्रशांत किशोर के साथ आखिर हुआ क्या है ? एकदम से तड़फड़ाये हुए है. खिलंदड़ी अंदाज़ में ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी’ का खेल खेले जा रहे हैं. नगरी नगरी द्वारे द्वारे के तर्ज़ पर घूम घूमकर पॉपुलर न्यूज़ चैनलों पर कन्विक्शन के साथ इंटरव्यू दे रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिभा और बंगाल में बीजेपी की पॉपुलरिटी का गुणगान किये जा रहे हैं. साथ ही उलट दावा कर रहे हैं अगर बंगाल में बीजेपी ने सौ से ज्यादा सीट जीत ली तो जो आठ -दस साल से कर रहे हैं वो छोड़ देंगे.
इस दो तरफ़ा कथन के पीछे दो ही बात हो सकती है. पहला कि पेमेंट सेट्लमेंट को लेकर ममता बनर्जी से कोई अनबन हुई है.केंद्रीय जाँच एजेंसीज के कई छापों के बाद प्रशांत ने जितना माँगा था उससे दीदी मुकर गई हैं. इसका हिसाब करने तीन चरण के चुनाव के बाद अपने तरीके से लंका लगाने प्रशांत निकल गए हैं. दूसरी बात ख़तरनाक है. उनपर प्रधानमंत्री मोदी के mole होने का आरोप साबित हो रहा है. ख़ास रणनीति के तहत मोदी विरोधी खेमे में जाते हैं और वहां से मोदी की जीत का रास्ता बनाते हैं. यह उनकी चाल का हिस्सा लगता है.
जब मुस्लिम प्रभाव वाले सीटों पर मतदान का वक़्त आया है, तो बीजेपी के धुंआझार प्रचार से अकेली पड़ी ममता को प्रशांत के बीजेपी तारीफ़ के बयान से काश मदद मिल जाए. दोनों सही हो सकता है.
प्रशांत किशोर की पहचान सर्वविदित है.वह बिना प्रोफेशनल फी के शायद ही कभी कुछ करते हैं. वह राजनीतिक दलों का चुनावी प्रबंधन कंपनी चलाते हैं.जब जिससे सौदा पट जाता है विचार को ताक पर रख क्लाइंट के हक़ में खड़े हो जाते हैं. इनकी कंपनी IPAC है.
पहला काम गुजरात में मिला. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. मार्केटिंग में माहिर प्रशांत खुद को 2014 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने का श्रेय लिया. श्रेय को लेकर अनबन हुआ तो काम की बिना पर पैतृक प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पटा लिया. नीतीश मोदी विरोध के स्टैंड पर चलकर विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने की ताक में थे. उन्होंने प्रशांत की भरपूर सेवा ली. आखिर में चकमा खाकर प्रधानमंत्री के शरणम् हो लिए.
प्रशांत की सलाह पर दशकों की अदावत छोड़ लालू प्रसाद के साथ हो लिए.सेवा देने के क्रम में नीतीश के इतने प्रिय हो गए कि जनता दल से शरद यादव को बाहर निकाल प्रशांत किशोर को वरिष्ठ उपाध्यक्ष बना दिया गया. नीतीश -लालू गठबंधन टूटने के साथ ही प्रशांत के लिए स्थिति असहज़ होने लगी. नीतीश के रास्ते कांग्रेस के करीब हुए. यूपी में कांग्रेस को चुनाव लड़वा लुटिया डुबोया. वहां से आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति में लग गए.पैसा बनाया और सीधे ममता बनेर्जी की ओर मुख़ातिब हो गये. आगे पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह को सेवा देने की सेटिंग थी. यह बिगड़ गया लग रहा है. लिहाजा बुद्धम शरणम गच्छामि की मुद्रा में हैं.