भक्ति एवं प्रेम का संदेश देने वाले महाराष्ट्र के संतों का सिख तथा कश्मीरी तत्वज्ञान पर गहन प्रभाव

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समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली, 19अप्रैल।

लोगों को प्यार से आपस में जोड़ने तथा भक्ति, भाईचार्य, एकता और समानता का विचार देने वाले संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर सहित अन्य महाराष्ट्र के संतों ने सिख और कश्मीरी तत्वद्न्यान पर गहन प्रभाव छोड़ा है, यह प्रतिपादन प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता संजय नहार ने किया.

 

महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला में वे आज ३० व लेक्चर दे रहे थे. यह व्याखान श्रंखला महाराष्ट्र सूचना केंद्र (एम आई सी) की ओर से आयोजित की गई है. श्री नहार ने “महाराष्ट्र के संत तथा सिख और कश्मीरी तत्वद्न्यान” विषय पर बोलते हुए आगे कहा कि संत नामदेव ने  भक्ति और प्रेम का झंडा अपने कंधों पर उठाकर पंजाब में अपने कार्य का विस्तार किया. सिख समुदाय के धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में संत नामदेव के लिखे 61 गीतों का समावेश है और वहां के जनसामान्य पर उनकी सीख का गहन प्रभाव है. साथ ही कश्मीर में शैव संप्रदाय के संतों पर भी ज्ञानेश्वर का प्रभाव महत्वपूर्ण है. महाराष्ट्र के इन दोनों संतों ने तथा कुछ अन्य संतों ने भाईचार्य, एकता, समानता के विचारों का प्रभाव सिख और कश्मीरी तत्वद्न्यान पर डाला है. इस कारण इन राज्यों के महाराष्ट्र से दृड़ संबंध बने हैं. उन्होंने यह भी कहा कि आसाम सहित ईशान्य के कुछ राज्यों में भी महाराष्ट्र के संतो के विचारों का काफी गहरा असर है.

 

विगत 35 वर्षों से पंजाब और कश्मीर में सामाजिक कार्य के माध्यम से जुड़े नहार  ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि महाराष्ट्र में संतों के विचार का इन दोनों राज्यों के तत्वद्न्यान पर प्रभाव दिखाई पड़ा है. 1984 के पश्चात पंजाब में निर्माण हुई अशांत स्थिति के बाद पुणे के कुछ युवाओं ने साथ आकर वंदे मातरम नामक संगठन स्थापित की जिसके माध्यम से उन्होंने शांतता प्रस्थापित करने के प्रयास किए और इससे भी संत नामदेव के विचारों का वर्चस्व सिख तत्वद्न्यान पर होने की पुष्टि हुई.

 

उन्होंने कहा कि गुरु गोविंद सिंह ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में रहते हुए गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम रूप दिया और गुरु मान्यो ग्रंथ अर्थात यहां से आगे ग्रंथों को ही गुरु मानना चाहिए, यह सन्देश दिया. संत नामदेव ने पंजाब में भक्ति के संदेश दिए जिससे राज्य आपस में जुड़े. श्री नहार ने आगे कहा कि पंजाब, राजस्थान और पाकिस्तान के अनेक कस्बों में संत नामदेव के मंदिर अस्तित्व में है.

 

पंजाब में गुरदासपुर जिले के घुमान क्षेत्र में गुरुद्वारे में संत नामदेव की मूर्ति और साथ ही इसका गुंबद मस्जिद के आकार का होने की बात उन्होंने बताते हुए कहा कि ऐसे प्रतीत होता है कि विश्व का यह एकमात्र गुरुद्वारा है जहां से हिंदू -मुस्लिम को एक साथ आने का संदेश दिया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि घुमान के पड़ोस में कादियान क्षेत्र में अहमदिया नामक मुस्लिम धर्म के बागी पंथ का मुख्य केंद्र है और इस पंथ पर भी संत नामदेव के विचारों का प्रभाव दिखाई पड़ता है.

 

श्री नहार ने आगे कहा कि संत नामदेव गुमान में काफी समय तक रुके थे और इस गांव में सरहद नामक संस्थान के माध्यम से 2015 में आयोजित २८ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, उसको पंजाब सरकार द्वारा दिया गया सहयोग और इसके कारण पंजाब में स्थापित हुए संत नामदेव विश्वविद्यालय तथा भाषा भवन का महत्व भी उन्होंने विषद किया.

 

उन्होंने बताया कि ९० के दशक में कश्मीर में काम करते समय महाराष्ट्र के संतों का कश्मीरी तत्वद्न्यान पर जो प्रभाव है, उसका अनुभव उन्हें हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीरी शैव संप्रदाय के संत लल्लेश्वरी के साहित्य में संत ज्ञानेश्वर के रूपक और छवि का उल्लेख पाया गया है. कश्मीरी शैव संप्रदाय के जनक अभिनव गुप्त के पूर्वज महाराष्ट्र से संबंधित होने की बात भी अनुसंधान से पता चली है. इसी कारण महाराष्ट्र के संतों का यहां के तत्वज्ञान पर प्रभाव होने के प्रमाण मिलते हैं.

 

उन्होंने आगे कहा कि संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, संत शेख मोहम्मद जैसे महाराष्ट्रीयन संतों ने मानव के विचार से दृष्ट प्रवृत्ति का नाश और अच्छे कर्मों को गति देने के विचार बताए और यह पंजाब, कश्मीर और ईशान्य के राज्यों में पाए जाते हैं. सभी को चाहिए कि इन विचारों को अपने आचरण में लाएं और उन्हें आगे ले चलें, यह समय की मांग भी है.

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