स्निगधा श्रीवास्तव
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 26मई। हमारा देश, एक साल से ज्यादा हो चुका है कोरोना महामारी के संकट से गुजर रहा है। सिर्फ हमारा देश ही नहीं, पूरी दूनियो को कोरोना महामारी नें अपने चपेट में ले लिया है तो कोरोना संकट का असर मात्र भारत में ही नही बल्कि अन्य देशों में भी है। कोरोना संकट के दौरान देश तमाम समस्याओं का सामना कर रहा है। इतना ही इस दौरान देश की आर्थिक व्यवस्था भी खतरे में आ गई है।
शुरूआती दौर में सरकार नें देश लॉकडाउन लगाया जिसके कारण सारी काम-काज, व्यापार, नौकरीपेशा लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करने पड़ा किसी की नौकरी गई तो किसी की आमदनी नही हुई है। हालांकि इसके लिए सरकार ने एक नियम बनाया कि जो घर से काम करते है उनके लिए वर्क फ्राम होम सिस्टम को अपनाया गया। जिससे कुछ ऐसे लोगों की नौकरी तो बची जो लोग वर्क फ्राम होम वर्क करते सकते थे। लेकिन रोजमर्रा की कमाई कर जीवन यापन करने वालों पर लॉकडाउन की असल गाज गिरी।
महिलाओं पर पड़ा लॉकडाउन का भार
सबसे ज्यादा असर लॉकडाउन के दौरान महिलाओं पर पड़ा चाहे वो हाउस वाइफ या फिर नौकरीपेशा महिलाएं। दोनों श्रेणी की महिलाओं पर लॉकडाउन का ज्यादा असर पड़ा।
लॉकडाउन में कामकाजी महिलाओं पर दो तरह कि जिम्मेदारियां है पहला तो घर का काम करना और फिर ऑफिस मेन्टेन करना।
अपने देश में आज भी बहुत सी महिलाएं जो घरों में रहती हैं वे तरह-तरह के घरेलू काम खुद निपटाती हैं, जिससे कि हाथ में जितना पैसा है, उससे काम चलाया जा सके। अगर हो सके, तो कुछ बच भी जाए। महिलाओं की अक्सर छोटी-छोटी बचत घर के बड़े-बड़े कामों में प्रयोग कर ली जाती है।
घर में रहने वाली महिलाएं घर के काम-काज के बाद जो समय बचता है, उसमें वे तरह-तरह के काम करके कुछ पैसे कमाती हैं। ये काम अक्सर लघु उद्योगों से जुड़े रहते हैं। इन्हें करने में महिलाओं की घरेलू कारीगरी और परंपरा से प्राप्त ज्ञान बहुत काम आता है। अचार, पापड़, बड़ियां बनाने से लेकर कढ़ाई, बुनाई, सिलाई आदि के काम तो हैं ही, इन दिनों बहुत-सी महिलाएं ऑनलाइन काम भी करती हैं।
लंबे लॉकडाउन ने छोटे और लघु उद्योगों को उजाड़ दिया है। इसलिए इन महिलाओं के काम भी खत्म हो गए हैं। इसके अलावा इन महिलाओं के घर के लोगों के रोजगार और नौकरी पर भी भारी संकट मंडरा रहा है।
और लॉकडाउन के दौरान घर में रहने वाली महिलाएं घर के सदस्यों की मांगें पूरी करते-करते ही दिन बिता देती है। मामूली से आराम का समय भी उन्हें नहीं मिलता था। दूसरे कामों की तो क्या कहें। हालांकि घर की महिलाएं यह भी कह रही हैं कि लॉकडाउन ने उन्हें फालतू खर्च करने से भी रोका है।
लॉकडाउन के दौरान घरेलु हिंसा का ज्यादा शिकार हुई महिलाए
लॉकडाउन कभी- कभी कभार महिलाओं के लिए घरेलु हिंसा का कारण भी बन चुका है क्योंकि लॉकडाउन के दौरान कई जगह घरेलु हिंसा के मामलें भी सामने आए।
राष्ट्रीय महिला आयोग को 23 मार्च 2020 से 10 अप्रैल 2021 के बीच ऐसे 123 ‘ईमेल’ प्राप्त हुए हैं, जिससे घरेलू हिंसा की शिकायतों की तीव्र वृद्धि ज़ाहिर होती है। राज्य सरकारों के अलावा महिला आयोगों ने भी इस अपराधिक घटना पर गौर किया है।
सामान्य समय में भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कम समस्या रहती है। लेकिन लॉकडाउन के दौरान आवाजाही में बाधा होने के कारण माता-पिता के घर जैसे सुरक्षित स्थान पर जाने का विकल्प समाप्त हो जाता है, अत: इस दौरान घरेलू दुर्व्यनवहार या हिंसाओं की संभावना और भी बढ़ जाती है। दुर्व्यववहार करने वाले के साथ कैद हो जाने के कारण, फोन कॉल कर अपनी स्थिति के बारे में अधिकारियों, दोस्तों या रिश्तेदारों से बात करना मुश्किल हो सकता है। हालांकि कुछ महिलाएं मदद लेने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेती है, लेकिन अशिक्षित एवं गरीब महिलाओं के लिए यह विकट स्थिति बन जाती है।
बता दें कि कोरोना महामारी जैसी स्थिती में वायरस के संक्रमण का बहाना बना कर घर में ही किसी को अलग-थलग किया जाता है तो किसी का बहिष्कासर किया जाता है – जो भावनात्मक शोषण और मानसिक उत्पीड़न का कारण बनता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार वर्ष 2019 में घरेलू हिंसा के 2960 मामले दर्ज हुए थे और यह संख्या 2020 में बढ़कर 5297 हो गई।
आयोग के अनुसार, 2019 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 19,730 मामले दर्ज हुए। वर्ष 2020 में संख्या 23,722 हो गई। लॉकडाउन के एक साल बाद भी आयोग में हर महीने ऐसे दो हजार मामले दर्ज हो रहे हैं। इसमें से एक चौथाई घरेलू हिंसा के हैं। जनवरी से 25 मार्च 2021 तक घरेलू हिंसा की 1463 शिकायतें दर्ज हुई हैं।
अप्रैल 2020 से अब तक महिलाओं हिंसा के अपराधों की संख्या 25,886 है। इसमें से 5865 घरेलू हिंसा के हैं। सबसे हैरानी वाली बात यह है कि छह साल में पहली बार वर्ष 2020 में हिंसा के सर्वाधिक 23,722 मामले दर्ज किए गए। ये आंकड़े वो हैं जो दर्ज हुए, बहुत से ऐसे मामले भी होंगे, जो रिकॉर्ड में नहीं आए।