इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी में ही सत्ता की लठैत बनी पुलिस बेकसूर लड़कियों तक को देशद्रोही, आतंकी और दंगों की साजिशकर्ता बता कर जेल में डाल देती है।
दिल्ली पुलिस ने पिछले साल जेएनयू की दो छात्राओं और जामिया के एक छात्र को आतंकी और दंगों का साजिशकर्ता बता कर जेल में डाल दिया था।
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लेकिन मंगलवार (15जून) को हाईकोर्ट में पुलिस के दावे की पोल खुल गई। पुलिस की कहानी की धज्जियां उड़ाते हुए हाईकोर्ट ने तीनों छात्रों को जमानत दे दी। तीनों छात्र एक साल से जेल में हैं।
हाईकोर्ट ने पाया कि इन तीनों के खिलाफ ऐसा कोई भी साक्ष्य, सबूत नहीं है जिससे आतंकी कृत्य माना जाए है। विरोध प्रदर्शन संवैधानिक अधिकार है। इसे गैरकानूनी और यूएपीए कानून के तहत आतंकवादी गतिविधि नहीं कहा जा सकता।
तफ्तीश की खुल रही पोल-
दंगों की जांच में पुलिस की भूमिका की पोल लगातार अदालत में अनेक मामलों में खुल चुकी है। कमिश्नर के पुख्ता सबूतों के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार करने के दावे के अदालतों में धज्जियां उड़ रही हैं।
रिबैरो ने आईना दिखाया।-
देश के मशहूर रिटायर्ड आईपीएस अफसर जूलियो रिबैरो द्वारा दंगों के मामलों की जांच में पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाना कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त है।
देशद्रोही बनाया।-
टूलकिट मामले में बेकसूर पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को देशद्रोही बता कर जेल भेजने वाली पुलिस की पोल फरवरी में भी अदालत में खुल चुकी है। अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने पुलिस के दावों की जमकर धज्जियां उड़ाई थी।जज ने अपने आदेश में कहा कि टूल किट में देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात ही नहीं है।
कमिश्नर, आईपीएस जेल भेजे जाएं।-
अदालत में पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ रही है। बेकसूरों को झूठे मामलों में फंसा कर जेल भेजने वाले पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन, संयुक्त आयुक्त प्रेमनाथ, स्पेशल सेल के विशेष आयुक्त नीरज ठाकुर, डीसीपी प्रमोद कुशवाहा, पूर्वी क्षेत्र के संयुक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार और उत्तर पूर्वी जिले के तत्कालीन डीसीपी वेद प्रकाश सूर्य आदि को जेल भेजा जाना चाहिए। अदालत द्वारा पीडितों के साथ तभी सही मायने में न्याय होगा। जब तक आईपीएस अफसर और जांच अधिकारी जेल नहीं भेजे जाएंगे तब तक सत्ता के लठैत बने अफसरों द्वारा बेकसूरों को फंसाना बंद नहीं हो सकता।
कानून का दुरुपयोग –
अदालत को देशभर की पुलिस को यह आदेश देना चाहिए कि यूएपीए कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले ही अदालत में उसके खिलाफ सबूत देना चाहिए या गिरफ्तार करने के तुरंत बाद आरोपी के खिलाफ सबूत अदालत में दिए जाने चाहिए। अदालत यह भी आदेश दे कि झूठे मामले में फंसाने वाले अफसरों को जेल भेजा जाएगा।
अदालत ऐसा आदेश दे तभी कानून का दुरुपयोग रोका जा सकता है। इससे पुलिस अफसरों पर अंकुश लगेगा।
पुलिस यूएपीए या किसी भी आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाल देती है बाद मे आरोपी अदालत में बेकसूर साबित हो जाए तो भी उसे सालों जेल में रहना तो पड़ा ही जबकि बेकसूर को तो एक दिन भी जेल में रखा जाना अन्याय और मानवाधिकार का उल्लंघन है।
अब इस मामले में ही देख लीजिए हाईकोर्ट ने तीनों को जमानत तो दे दी लेकिन तीनों को एक साल से ज्यादा समय तो जेल में रहना ही पडा।
छात्रों को आतंकी बताया।-
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने मंगलवार को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के तहत दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश मामले में आसिफ इकबाल तन्हा और पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को जमानत दे दी।
पिंजरा तोड़ संगठन से जुड़ी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पीएचडी छात्रा नताशा नरवाल और एम फिल् छात्रा देवांगना कलिता मई 2020 से जेल में हैं।
प्रदर्शन करना आतंकवादी कृत्य नहीं है।-
हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित एक मामले में जेएनयू छात्र देवांगना कलिता को जमानत देते हुए कहा कि प्रदर्शन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे ‘आतंकवादी कृत्य’ नहीं कहा जा सकता है। भडकाऊ भाषण और चक्का जाम आतंकी कृत्य नहीं है। यह यूएपीए के तहत आने वाले अपराध नहीं हैंं।
लोकतंत्र को खतरा-
हाईकोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि सरकार ने असहमति को दबाने/कुचलने की अपनी बेचैनी/बेताबी में संविधान प्रदत्त प्रदर्शन करने के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली कर दी है यदि यह मानसिकता मजबूत होती है तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।
अदालत ने अपने 83 पन्नों के एक फैसले में कहा, “अगर इस तरह का धुंधलापन जोर पकड़ता है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।”
प्रदर्शन मौलिक अधिकार-
अदालत ने कहा कि बिना हथियारों के शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (बी) के तहत एक मौलिक अधिकार है और इसे अभी तक गैरकानूनी नहीं बनाया गया है कलिता के मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने तन्हा के मामले में अपने फैसले का उल्लेख किया और कहा कि ‘आतंकवादी अधिनियम’ वाक्यांश को यूएपीए की धारा 15 में बहुत व्यापक और विस्तृत परिभाषा दी गई है।
देश की नींव मजबूत है।-
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की बेंच ने कहा कि हमारा मानना है कि हमारे राष्ट्र की नींव इतनी मजबूत है कि उसके किसी एक प्रदर्शन से हिलने की संभावना नहीं है। कॉलेज के छात्रों या शहर के बीच बनी यूनिवर्सिटी की समन्वय कमेटी के सदस्यों किसी द्वारा किए गए किसी भी प्रदर्शन, चाहे वह कितना भी दोषपूर्ण क्यों न हो, उससे हिलने वाली नहीं है।
यूएपीए कानून अस्पष्ट-
हाईकोर्ट ने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि की परिभाषा को ‘कुछ न कुछ अस्पष्ट करार दिया और इसके लापरवाह तरीके से इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी।
अदालत ने 113, 83 और 72 पृष्ठों के तीन अलग-अलग फैसलों में कहा कि यूएपीए की धारा 15 में ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा व्यापक है और कुछ न कुछ अस्पष्ट है, ऐसे में आतंकवाद की मूल विशेषता को सम्मलित करना होगा और ‘आतंकवादी गतिविधि मुहावरे को उन आपरधिक गतिविधियों पर ‘लापरवाह तरीके से इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आते हैं।
कोई सबूत नहीं-
कोर्ट ने कहा कि आतंकवादी गतिविधि को साबित करने के लिए इस मामले में कुछ भी नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस ऐसा कोई साक्ष्य सबूत नहीं पेश कर सकी जिससे साबित होता कि नताशा, देवांगना कलिता ने एक समुदाय की महिलाओं को भड़काया या हिंसा में शामिल है।
पुलिस ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई जिससे उसके आरोपों में दम साबित हो।
दंगों की साजिश।-
दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में दर्ज एफआईआर नंबर 59/2020 में कुल 15 लोगों को नामजद किया गया था। इनमें तन्हा, नरवाल और कलिता भी शामिल थे। पुलिस ने दावा किया कि तन्हा ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को अंजाम देने में सक्रिय भूमिका निभाई।
यह भी आरोप लगाया गया था कि वह सफूरा जरगर, उमर खालिद, शारजील इमाम और अन्य लोगों का करीबी सहयोगी है। साथ ही वह “राष्ट्रीय राजधानी में सीएए के विरोध और उसके बाद हुए दंगों के प्रमुख सदस्य” हैं।
यह भी कहा गया था कि तन्हा ने अन्य लोगों के साथ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चक्का जाम/ नाकाबंदी लगाकर “सरकार को उखाड़ फेंकने” की साजिश रची।
पुलिस ने यह भी दावा किया कि तन्हा ने नकली दस्तावेजों का उपयोग करके एक मोबाइल सिम कार्ड खरीदा था और इसका इस्तेमाल चक्का जाम, दंगों आदि की योजना बनाने में किया गया था। साथ ही इसका इस्तेमाल एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाने के लिए किया गया था। यह भी दावा किया गया कि सिम बाद में जामिया के एक अन्य छात्र और सह-आरोपी सफूरा जरगर को और विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए प्रदान किया गया था।
निचली अदालतों के आदेश निरस्त।-
हाईकोर्ट ने नताशा नरवाल(32) और देवांगना कलिता(31) और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा(24) को जमानत से इनकार करने के निचली अदालत के आदेशों को निरस्त कर दिया तथा उनकी अपील स्वीकार ली और उन्हें नियमित जमानत दे दी।
कोई सबूत नहीं-
कोर्ट ने कहा कि आतंकवादी गतिविधि को साबित करने के लिए इस मामले में कुछ भी नहीं है। इन तीनों को पिछले साल फरवरी में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में सख्त यूएपीए कानून के तहत मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था।
तन्हा ने 26 अक्टूबर, 2020 के एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने प्रथम दृष्टया यह देखते हुए जमानत अर्जी खारिज कर दी कि तन्हा के खिलाफ मामला चलाने योग्य पर्याप्त आधार है कि आरोप प्रथम दृष्टया सच प्रतीत होते हैं। और उन्होंने कथित तौर पर पूरी साजिश में सक्रिय भूमिका निभाई।
नरवाल और कलिता ने निचली अदालत के 28 अक्टूबर के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने यह कहते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ लगे आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं और आतंकवाद विरोधी कानून के प्रावधानों को वर्तमान मामले में सही तरीके से लागू किया गया है। उन्होंने दंगों से संबंधित यूएपीए के एक मामले में अपनी जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए अपनी अपील दायर की थी।
बेकसूरों को कई मामलों में फंसा दिया।-
22 फरवरी 2020 को पुलिस पर हमला करने के आरोप में जाफराबाद पुलिस ने नताशा और देवांगना को 23 मई 2020 को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन अदालत में पुलिस की इस कहानी की भी पोल खुल गई। अदालत ने कहा पुलिस पर हमले का मामला बनता ही नहीं है। आरोपी सिर्फ़ सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
इसके बाद अपराध शाखा ने हत्या, हत्या की कोशिश,आपराधिक साजिश और दंगे के मामले में गिरफ्तार किया। फिर स्पेशल सेल ने दंगों की साजिश और यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया।
दिल्ली दंगों में देवांगना कलिता पर चार नताशा पर तीन और आसिफ पर दो मामले दर्ज किए गए थे। अन्य मामलों में तीनों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था। हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे।
कमिश्नर,आईपीएस अफसरों का अक्षम्य अपराध ।
जलवायु /पर्यावरण कार्यकर्ता बेकसूर दिशा रवि को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने अक्षम्य अपराध किया है। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन और संयुक्त पुलिस आयुक्त प्रेमनाथ ने दिशा रवि के देशद्रोही होने की “कहानी” मीडिया में बताई।
जज धर्मेंद्र राणा ने न्याय का लट्ठ गाड दिया।-
लेकिन अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली दिशा रवि को जमानत देकर दुनिया के सामने पुलिस के झूठ का पर्दाफाश कर दिया। जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को देशद्रोही बताने के पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि टूल किट में देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात ही नहीं है। सरकार से असहमति रखना अपराध नहीं है। जज धर्मेंद्र राणा ने इस तरह न्याय व्यवस्था में लोगों के भरोसे को कायम किया।
वीरता की तस्वीर-
इन मामलों से आईपीएस अफसरों की काबिलियत और चरित्र की पोल खुल गई।
वैसे दिशा रवि आदि की तस्वीर इन अफसरों को अपने घर में लगानी चाहिए। ताकि इनके परिवार और रिश्तेदार भी इन अफसरों की इस “बहादुरी” को देख देख कर गर्व से अपना सीना गर्व से चौड़ा कर सके।
कमिश्नर,आईपीएस ने वर्दी को शर्मसार किया।-
दिशा, नताशा और देवांगना को देशद्रोह, आतंकी, दंगों के मामले में फंसा देने से पता चलता है कि किसी को भी देशद्रोह के मामले में फंसा देना निरंकुश आईपीएस के लिए कितना आसान हो गया है। आईपीएस अफसरों ने खाकी वर्दी को खाक में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
विपक्षी दलों और पीड़ित समुदाय द्वारा पुलिस पर सत्ता के लठैत बन कर झूठे मामलों में गिरफ्तार करने के आरोप लगाना तो आम बात है लेकिन जब कई पूर्व पुलिस कमिश्नर और देश के मशहूर आईपीएस अफसर तक कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लगाए तो समझ लेना चाहिए कि कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की भूमिका बहुत ज्यादा ही गड़बड़ है।
सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते-
दंगों के एक मामले में पुलिस की तफ्तीश की पोल खोलते हुए कड़कड़डूमा अदालत के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रुसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब ‘अपराध और सजा’ के हवाले से कहा कि “सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते हैं और सौ संदेहों को एक साक्ष्य/प्रमाण नहीं बना सकते”। इसलिए दोनों आरोपियों को हत्या की कोशिश (धारा 307) और शस्त्र अधिनियम के आरोप से मुक्त (डिस्चार्ज) किया जाता है।’’
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यूपी सरकार का ऐलान, गरीब परिवारों को 3 माह 5 Kg राशन और मजदूरों को मिलेगा 1,000 रुपये महीना
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