हमारे देश का अमूल्य गहना- मणिबहन “

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27जून। जवाहरलाल नेहरू को मिलने के लिए एक महिला आयी और उनको एक नोटबुक और एक थैली दे गयी। नेहरू ने वह थैली खोली तो उसमें 35 लाख रुपये थे और उस नोटबुक में रुपयों का पूरा हिसाब था। वह रकम कांग्रेस संस्था की पूँजी थी। इसका हिसाब उस महिला के पिता करते थे। उनके पिता की मृत्यु के पश्चात एक भी रुपया अपने पास रखे बिना उस महिला ने वह रकम नेहरू को दे दी थी और वह अपने घर चली गयी थी। आजीवन अकिंचन व्रत का पालन करना, हमेशा रेल के सामान्य वर्ग की श्रेणी के डिब्बों में सफर करना, और अपने हाथों से बने हुये वस्त्र पहनने वाली वह महिला कौन थी ?
वह महिला थी — स्वतंत्रता के बाद लम्बे समय तक विस्मृत हुई — भारत के महान नेता सरदार वल्लभभाई पटेल की पुत्री ” मणिबहन ”
आजादी के यह अमर प्रतीक हैं। इन्होंने देश की निःस्वार्थ सेवा की है। यह हमारे देश का अमूल्य गहना हैं।
मणिबेन वल्लभभाई पटेल भारत की एक स्वतन्त्रता सेनानी तथा सांसद थीं। वे सरदार वल्लभभाई पटेल की पुत्री थीं। उनकी शिक्षा-दीक्षा मुम्बई में हुई थी। महात्मा गांधी की शिक्षाओं से प्रभावित होकर शिक्षा के बाद वे 1918 के बाद से अहमदाबाद स्थित गांधीजी के आश्रम में ही रहकर राष्ट्र सेवा करतीं रहीं। उन्होने भारत की स्वतन्त्रा के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समार्पित कर दिया परन्तु स्वतन्त्र भारत में अपने वृद्धावस्था में उनके पास धन, मान, आवश्यक वस्तुओं का अभाव था। भारत की स्वन्त्रता के लिए जितने आन्दोलन लौहपुरुष ने किए हैं, उन सब में से अधिकतम आन्दोलनों में मणिबेन का बहुत योगदान रहा है। सत्याग्रहों में कठोर परिश्रम के पश्चात् कारागार में भी उन्होंने कारावास की कठोर पीडा सही हैं। राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित वो महिला अविवाहिता रह कर आजीवन भारत के हित के लिए चिन्तन करती रही।
1903 वर्ष के ‘अप्रैल’-मास की तीसरी (3/4/1903) दिनांक पर गुजरातराज्य के खेडा जिले में मणिबेन का जन्म हुआ।

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