बेबाक तेज-तर्रार पत्रकार और कुशल उद्यमी अनुराधा प्रसाद के सफलता की कहानी

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 30जून। अनुराधा प्रसाद के नाम से मीडिया जगत का शायद ही कोई शख्स अनजान होगा.. इस शख्सियत ने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर भारतीय मीडिया जगत में वो मुकाम हासिल किया है, जो बड़े-बड़े पत्रकारों और उद्यमियों के लिये एक सपना है। उनके चैनलों में सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला है और उनके प्रोग्राम देश के कई नामी-गिरामी एंटरटेनमेंट चैनलों पर लोकप्रियता की नई ऊंचाइयां छू चुके हैं। इनके अलावा वे एक शिक्षाविद् भी हैं, जो हर साल दर्जनों बच्चों का भविष्य संवार रही हैं। जी हां, यहां बात हो रही है बीएजी फिल्म्स एवं मीडिया की चेयरपर्सन व मैनेजिंग डायरेक्टर अनुराधा प्रसाद की। समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में उन्होंने अपनी निजी जिंदगी से लेकर अपने करियर के बारे में बात की। आइए यहां पढ़ते हैं उनके इंटरव्यू के अंश-

आपने एक पत्रकार से अपना सफर तय किया और आज आप एक महिला उद्यमी के तौर पर जानी जाती है। अपने परिवार और बचपन के बारे में कुछ बताइये?

देखिए, मैं अपने परिवार में सबसे छोटी थी तो घर में सबका प्यार मुझे मिलता था। मैं बचपन में बहुत शांत थी, यानी कि चुलबुली टाइप और बाहर खेलने वाली लड़कियों जैसी नहीं थी, किताबें पढ़ने का शौक था। अच्छी पढ़ाई लिखाई हुई थी। पिताजी वकील थे, तो हर वर्ग से जुड़े लोगों का आना जाना लगा रहता था। मैं एक ऐसे घर में पली बढ़ी थी, जिसमें आपको किसी भी समय लोगों को मिलने के लिए तैयार रहना होता था।

बपचन में ही हम और हमारा परिवार जैसी सोच खत्म हो गई थी। हम सब लोगों से मिलते थे और अच्छे से मिलते थे। मेरे पिताजी एक प्रसिद्द वकील थे, तो घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं रही। ईश्वर की कृपा रही कि मैं पढ़ाई में भी ठीक ही रही। हालांकि मैनें कभी टॉप नहीं किया, लेकिन अच्छी थी।

आपने पत्रकार बनने के बारे में कब सोचा? क्या कोई ऐसी घटना जिसके कारण आपकी पत्रकार बनने में रुचि पैदा हुई?

देखिए, बचपन तो सामान्य था तो उस समय ऐसा कुछ दिमाग में नहीं था। जब मैं सीनियर स्कूल में थी तो उस समय जेपी आंदोलन का समय था और हमारा परिवार राजनीतिक तौर पर एक जागरूक परिवार था, तो उस समय मेरे दिमाग में ये सब चीज चलती थी।

उस समय मैं साप्ताहिक पत्रिकाएं भी पढ़ने लगी थी। कई बार मुझमें और मेरे भाई में प्रतिस्पर्धा भी होती थी कि कौन पत्रिका को पहले पढ़ पाएगा। एक तरह से वो रुचि मीडिया में नहीं थी लेकिन हां, खबरों में जरूर थी।

धीरे-धीरे समझ में आने लगा की मीडिया में ही जाना है, तो लोग कहते थे कि हो नहीं पाएगा, क्योंकि बिहार में यदि आप महिला हैं तो अधिक से अधिक ग्रेजुएशन और उसके बाद शादी हो जाएगी। अगर किसी अच्छे परिवार से हैं तो आप टीचर या डॉक्टर बन जाएंगे, उससे अधिक आप कुछ नहीं कर सकती हैं।

जब मैं किसी मुद्दे पर बोलती थी, तो परिवार में तो नहीं लेकिन बाहर उसकी बड़ी तारीफ होती थी। लिहाजा इसके बाद मैंने निर्णय ले लिया की कुछ भी हो जाए मुझे पत्रकार बनना है।

जब आपने निर्णय लिया कि आपको पत्रकार बनना है, तो पहला मौका आपको किसने और कैसे दिया?

जब मैनें ये निर्णय लिया कि मुझे मीडिया में जाना है तो मुझसे सबसे पहले पीटीआई में मौका मिल गया था, उस समय टीवी तो उतना था नहीं तो मुझे सबसे पहला मौका वहीं मिला था। उसके बाद वहीं से मेरा करियर टीवी की ओर मुड़ गया, उस समय पीटीआई से दूरदर्शन के लिए कुछ प्रोग्राम बनते थे और शशि कुमार जी उस समय वरिष्ठ एंकर और पत्रकार थे और वही सारा काम देखते थे। बस वहीं से मेरी टीवी पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी।

उस समय क्या महिला पत्रकार होने के नाते आपको कभी मुश्किल आई? कभी असहज महसूस हुआ?

देखिए, जब आप काम की धुन में होते हैं, तो इन सब चीजों को अधिक सोचते नहीं है। इसके अलावा उस समय प्रिंट मीडिया को पहचान मिली हुई थी, न कि टीवी को। उस समय टीवी का मतलब सिर्फ दूरदर्शन माना जाता था। उस समय एक युवा लड़की जिसके बाल कटे हों, दिल्ली से पढ़ी हो और वो आपके बीच में आ जाए तो उस समय लोगों को एक झटका तो खैर लगता ही था।

रोकने की कोशिश दूसरे तरीके से होती थी और आप जानते हैं कि उस समय हमारे समाज में महिलाओं को किस नजर से देखा जाता था।

कई चीजें आपके लिए गढ़ भी जाती है कि ये तो स्मार्ट है, कहीं भी कूद जाती है, जीन्स टी शर्ट पहनती है, आपके लिए एक नजरिया बना दिया जाता है, लेकिन मुझे कभी इन चीजों की परवाह नहीं रही। हर किसी को अपने स्तर पर ये सब झेलना होता है और उससे आगे भी बढ़ना होता है। उस समय लोग बड़े कम थे, तो दायरा एकदम खुला हुआ था। अच्छा ये लगता था कि आप एक रिपोर्टर हैं और उस वक्त के पीएम से आप बात कर सकते हैं।

आपने बहुत कम उम्र में मात्र 40 हजार रुपए में अपना खुद का प्रॉडक्शन हाउस शुरू कर दिया था। BAG फिल्म्स की स्थापना के पीछे क्या आपकी योजना थी और उस समय क्या विचार मन में थे?

देखिए, परिस्थिति आपसे सब कुछ करवाती है। मेरे साथ सबसे बड़ी चीज यही रही है कि मैनें कभी भी बहुत कुछ सोच समझ कर नहीं किया है और इसके बारे में भी इतना नहीं सोचा हुआ था। ये साल 1993 की बात है, जब मैं ‘आब्जर्वर’ को हेड करती थी और मुझे लगा कि मैनें इसे सक्सेस स्टोरी बना दिया है, तो अब कुछ किया जाए। उस समय मेरे साथ दो तीन लोग और थे और हम कुछ नया करने की सोच रहे थे और फिर मैंने अपना खुद का ही प्रॉडक्शन हाउस बना लिया। उस समय मेरे पास कुल जमा पूंजी ही 40 हजार थी और वो सारी मैनें इसमें लगा दी थी।

उस समय लोगों ने मेरा बढ़िया सहयोग किया। जब भी मैं किसी के पास काम मांगने गई तो लोगों ने दरवाजे बंद नहीं किए। हालांकि भागदौड़ होती है और कभी-2 आपको डर भी लगता है, लेकिन ये सब आपको अनुभव भी करना पड़ता है। जैसे कि मैं दूरदर्शन में जब गई तो मुझे उनकी टीम ने भले ही एक दो एपिसोड बनाने को दिए, लेकिन काम दिया। उन्होंने यह कहकर मुझे खारिज नहीं किया कि आपको तो काम आता नहीं है या आप कर नहीं सकती हैं। बस ऐसे ही लोगों के आशीर्वाद और प्यार से मैं और मेरी कंपनी दोनों आगे बढ़ते रहे।

आप एक पत्रकार के साथ-2 शिक्षाविद् भी हैं। आपके ISOMES की गिनती देश के बड़े मीडिया इंस्टीट्यूट में होती है। इसकी स्थापना का ख्याल कैसे आया?

दरअसल, मेरे साथ उस समय समस्या ये आई कि हम उस समय जिसे भी काम सिखाते थे, वो दो तीन महीनें में अच्छा काम सीख जाता और उसके बाद हमे अलविदा कह देता था। इसके बाद मुझे यह महसूस हुआ कि हमारे प्रोफेशन को अगर आगे बढ़ना है, तो उसे ट्रेनिंग की बड़ी जरूरत है। मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि शिक्षा बड़ी जरूरी है और मुझे तो भगवान की कृपा से अच्छे मौके मिले, लेकिन सबको नहीं मिल पाते हैं।

वैसे भी उस समय BAG फिल्म्स लोगों को ट्रेनिंग दे ही रहा था, तो मैंने सोचा क्यों ना इसका एक अच्छा मीडिया स्कूल तैयार किया जाए ताकि बच्चों को सही और अच्छे माहौल में सीखने को मिले। मीडिया में चीजें कभी एक समान नहीं रहती है इसलिए भी मीडिया स्कूल की भूमिका बड़ी हो जाती है और इस तरह से ISOMES की मैनें स्थापना की।

आपने जब ‘न्यूज24’ की शुरुआत की तो उस समय आपको कैसे चुनौती का सामना करना पड़ा, उस अनुभव के बारे में बताएं?

विज्ञान का एक नियम है कि जब वस्तु पृथ्वी की ओर गिरती है, तो त्वरण कार्य करता है। यह त्वरण पृथ्वी के गुरुत्वीय बल के कारण होता है। जीवन में भी ऐसा ही कुछ होता है। मेरे दिमाग में हमेशा एक चीज रही कि जब भी उड़ान भरूंगी, तो ये चुनौती तो रहने ही वाली है। अपना खुद का प्रॉडक्शन मैं देख रही थी, लेकिन टीवी की बात करें तो इसमें आप किसी और पर निर्भर होते हैं। मैनेजमेंट की अहमियत बढ़ जाती है, लोगों को साथ लेकर चलना होता है, किसी और की पसंद और नापसंद को भी लेकर चलना होता है। कभी- 2 ऐसा भी लगता था है कि यदि चैनल को कुछ हो गया, तो इतने लोग जो साथ काम कर रहे हैं। साथ चल रहे हैं, वो किधर जाएंगे।

उस समय स्टूडियो मैंने बना लिया था और मुझे लगा कि मुझे कोशिश करनी चाहिए ताकि आने वाले समय में जब आप पीछे मुड़कर देखें तो कम से कम आपको ये एहसास नहीं हो कि ये हम कर सकते थे, लेकिन किया नहीं और ईश्वर की कृपा से कोशिश हमेशा कामयाब होती है और हमारी भी हुई।

पिछले एक दो साल से हम देख रहे हैं कि कोरोना के कारण मीडिया जगत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस समय ‘न्यूज24’ का मैनेजमेंट इन चीजों के साथ कैसे डील कर रहा है?

देखिए, कोरोना के इस दौर में मुश्किलें तो हैं और सिर्फ हमारे साथ नहीं, सबके साथ हैं। कमाई भी घटी है और प्रतिस्पर्धा तो आप जानते ही हैं कि कितनी है, लेकिन मेरा मत यह है कि अगर आप अपने लोगों की परवाह करते हैं और उनकी देखभाल अच्छे से कर लेते हैं, तो हर मुश्किल समय कट जाता है।

जितने भी आपसे जुड़े लोग हैं उन सबका ध्यान रखिए। अगर रोटी कम हो गई है तो उसे उस तरह से परोसिए कि किसी की थाली में कम खाना नहीं जाए। हालांकि कई बार आपको ऐसे कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं, जिनसे हो सकता है किसी को कोई समस्या या दिक्क्त हो, लेकिन संस्थान के हित में कई बार ऐसा करना होता है।

आपने मीडिया में एक लंबा सफर तय किया है। वर्तमान में मीडिया में महिलाओं की स्थिति और उनके भविष्य के बारे में आप क्या सोचती हैं?

देखिए, महिलाएं आज के समय में सबसे अधिक किसी प्रोफेशन में सुरक्षित हैं, तो वो मीडिया ही है। आप डिजिटल, प्रिंट या टीवी किसी भी माध्यम को देख लीजिए, महिलाओं का योगदान आपको जबरदस्त दिखाई देगा। मीडिया पढ़ी लिखी लड़कियों का प्रोफेशन है और इसमें अगर आप सही हैं, तो आप अपनी बात पर अडिग भी रह सकते हैं। हर संस्थान जो आज आपको टॉप पर दिखाई दे रहा है, उसमें महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है। मीडिया एक व्यक्ति को या महिला को बहुत कुछ दे सकता है और यही कारण है कि लोग मीडिया की ओर अधिक आकर्षित दिखाई देते हैं। हो सकता है, बहुत अधिक पैसा या पावर नहीं है लेकिन मीडिया का एक अहम रोल देश में है और मीडिया में महिलाओं का एक बहुत बड़ा योगदान है।

आप अपने चैनल के लिए लोगों के इंटरव्यू करती हैं। क्या कभी किसी गेस्ट से तल्खी का सामना करना पड़ा है?

देखिए, कभी-2 ऐसे इंटरव्यू होते हैं, जिसमें आपके मेहमान का कभी-2 पूर्वाग्रह होता है कि आप तो ऐसा ही करेंगी या आप तो ऐसा ही सोचती हैं। लोग कई बार आपके बारे में एक सोच बना लेते हैं या कह लीजिए कि उनका एक नजरिया बन जाता है, लेकिन मेरा अपना एक स्टाइल है।

मैं कभी भी अपने आप को बदलती नहीं हूं और न ही मैं होस्ट बनने की एक्टिंग करती हूं। अगर मुझे ऐसा करना होता तो मैं किसी और फील्ड में होती, मीडिया में नहीं।

मैं हमेशा सोचती हूं कि यदि मैं किसी से बात करने जा रही हूं, तो मतलब मैं किसी को सुनने जा रही हूं, न कि मैं अधिक बोलने जा रही हूं। आपको अच्छा इंटरव्यू करना है, तो सामने वाले को सुनना सीखना होगा। ये लड़ाई करना, कैमरा के सामने एक्टिंग करना मुझे लगता है कि ये हमारे मीडिया के लिए, हमारे प्रोफेशन के लिए सही नहीं है और इसलिए मेरा अपना एक स्टाइल है और मैं उसी तरह काम करना पसंद करती हूं।

आपके ऊपर तमाम जिम्मेदारियां हैं, ऐसे में क्या आप अपने परिवार को पूरा समय दे पाती हैं, कोई शिकायत आती है घर से?

जी बिल्कुल नहीं! दरअसल मैं इतने सालों से काम कर रही हूं, तो मेरे परिवार ने मुझे इसी तरह स्वीकार कर लिया है। चाहे मेरा परिवार हो या मेरे पति हों, सबने मेरे काम और मेरी जिम्मेदारी को आदर दिया है। इसके अलावा अगर बच्चों की बात करें, तो उनको तो हमेशा यही लगता है कि उनको समय कम मिल रहा है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि एक भारतीय महिला को बहुत अधिक किरदार में रहना पड़ता है।

अगर आप काम करती हैं, तो अपने काम को भी देखना है। व्यापार करती हैं, तो पैसे को देखना है, अपने परिवार को देखना है, अपने पति को देखना है, किसी की बहन है, तो भाई को देखना है और उसे सबको साथ लेकर चलना है। मुझे कभी राजीव जी (पति) ने यह नहीं कहा कि तुम्हारे पास समय नहीं है, तो इस मामले में मेरी किस्मत अच्छी है।

साभार- samachar4media.com

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