कुमार राकेश
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8 जुलाई। कहते है मोदी है तो मुमकिन है……प्रधानमंत्री मोदी के बारे में कहा जाता है कि वह जो सोचते है वह कहते है औऱ वहीं करते है। 7 जुलाई के मोदी मंत्रीमंडल के विस्तार में उन्होंने एक ऐसा ही कार्य करके नामुमकिन को मुमकिन बनाया। उस कार्य ने सिद्ध कर दिया कि मोदी है तो मुमकिन है। वह कार्य ज्योतिरादित्य सिंधिया से जुडा है…….श्री सिंधिया को मोदी ने वही मंत्रालय दिया है जिसमें उनके पिता जी माधव राज सिंधिया 30 साल पहले मंत्री हुआ करते थे।
जी हां कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को आखिरकार मोदी सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। हालांकि सिंधिया को इसके लिए काफी इंतजार करना पड़ा…लेकिन कहते है ना इंतजार का फल मीठा होता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को बुधवार को मंत्रिमंडल विस्तार में मोदी कैबिनेट में जगह मिली है और उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय का जिम्मा मिला है। अब इसे संजोग कहे या किस्मत का लिखा ज्योतिरादित्य सिंधिया को वहीं मंत्रालय मिला है जिसे 30 साल पहले उनके पिता माधवराव सिंधिया ने संभाला था और बहुत ही बेहतरीन तरीके सें मंत्रालय को अपनी सेवाएं दी थी। बता दें कि पीवी नरसिम्हाराव की सरकार में माधवराव सिंधिया नागरिक उड्डयन मंत्री थे और अब उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालेंगे।
बता दें कि माधवराव सिंधिया नरसिम्हाराव की सरकार में वर्ष 1991 से लेकर 1993 तक नागरिक उड्डयन मंत्री रहे थे। उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था उदारीकरण के दौर से गुजर रहा था कुछ ऐसा ही समय यह भी है जब देश कोरोना महामारी के जंग लड़ रहा है और इस समय तमाम अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पाबंदी लगी है, घरेलू उड़ान भी अभी पूरी तरह से चल नहीं रही है। ऐसे वक्त में ज्योतिरादित्य सिंधिया को उड्डयन मंत्रालय की बड़ी जिम्मेदारी मिली है। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी के कैबिनेट में सभी मंत्रियों को काफी सोचसमझ कर.. कोरोना महामारी के दौरान स्थितियों के कैसे संभालना है इन सब बातों मुख्य बातों पर चर्चा के बाद से सभी को मंत्रालय सौंपे गए है तो जाहिर सी बात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया में सरकार को कुछ तो खास दिखा होगा जो उनको इस महामारी के दौरान यह अहम जिम्मेदारी सौपी गई है।
हालांकि दोनों पिता और पुत्र (माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया) के पास इस मंत्रालय को संभालने से पहले अन्य मंत्रालय को संभालने का अनुभव था। उड्डयन मंत्री बनने से पहले माधवराव सिंधिया राजीव गांधी की सरकार में रेल मंत्री रह चुके थे जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया मनमोहन सिंह की सरकार में संचार एवं आईटी मंत्री रह चुके हैं। इसलिए यह भी माना जा रहा है कि वर्तमान समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया को खासा दिक्कतें तो नही होने वाली है। इसके अलावा पिता-पुत्र दोनों में ही एक खास गुण है…दोनों ही नेता के रूप में बहुत अच्छे वक्ता माने जाते है।
वैसे हम आपको बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीति की विरासत परिवार से ही मिली है। वर्ष 2001 में माधवराव सिंधिया की मृत्यु के बाद 2002 में पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवपुरी-गुना लोकसभा क्षेत्र से 4.5 लाख मतों से जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे।
उस समय वे मात्र 16 साल के थे। पहली बार सन् 1986 में उन्होंने मयूर टॉकीज (वर्तमान में टाउनहॉल) में ज्ञानपीठ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। उस समय पूरे शहर में उनकी भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी और शहरवासियों को उनके युवराज से रूबरू कराया गया था।
कहा जाता है कि 16 साल की उम्र में ही जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंच से बोलना शुरू किया तब ही वरिष्ठ नेताओं को यह अहसास हो गया था कि आने वाले वक्त का एक बड़ा नेता संबोधित कर रहा है। इसके बाद कोलारस में राई के भैरव से यज्ञ में आहूति देकर उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कई बार अपने पिता माधवराव सिंधिया के साथ शिवपुरी आए, लेकिन तब तक राजनीति में उनका सीधा दखल नहीं रहा।
अब यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कोरोना महामारी के दौरान अपने इस नई जिम्मेदारी को कैसे निभाते है? आने वाले समय में कोरोना की तीसरी लहर देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती मानी जा रही है।