समग्र समाचार सेवा,
नई दिल्ली, 29 जुलाई। हिंदू धर्म में ‘ गायत्री मंत्र ‘ को सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह एक ऐसा मंत्र है जो न सिर्फ हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों की जुबान रहता है बल्कि अन्य धर्म के लोग भी इस मंत्र के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। कई शोधों में इस बात को माना गया है कि गायत्री मंत्र के जाप से कई फायदे मिलते हैं।
गायत्री शक्ति का प्रभाव :
वेदों की कुल संख्या चार है और चारों वेदों में गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है। इस मंत्र के ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सवितृ हैं। माना जाता है कि इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि नियमित तीन बार जप करने वाले व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक शक्तियां, भूत-प्रेत और ऊपरी बाधाएं नहीं फटकती।
गायत्री मंत्र के जप से कई तरह का लाभ मिलता है। यह मंत्र कहता है ‘उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।’ यानी इस मंत्र के जप से बौद्धिक क्षमता और मेधा शक्ति यानी स्मरण की क्षमता बढ़ती है। इससे व्यक्ति का तेज बढ़ता है साथ ही दुःखों से छूटने का रास्ता मिलता है।
गायत्री मंत्र जप के समय :
गायत्री मंत्र का जप सूर्योदय से दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्यास्त से एक घंटे बाद तक किया जा सकता है। मौन मानसिक जप कभी भी कर सकते हैं लेकिन रात्रि में इस मंत्र का जप नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि रात में गायत्री मंत्र का जप लाभकारी नहीं होता है l
गायत्री मंत्र जाप से लाभ :
गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं। यह चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं। यही कारण है कि ऋषियों ने गायत्री मंत्र को भौतिक जगत में सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला मंत्र बताया है।
आर्थिक मामलों में परेशानी आने पर गायत्री मंत्र के साथ श्रीं का संपुट लगाकर जप करने से आर्थिक बाधा दूर होती है। इस विश्व में मौजूद सभी सुख, सम्पदा और सम्पन्नता मां गायत्री की कृपा से प्राप्त किए जा सकते हैं।
भारतीय पौराणिक कथाओं मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (निर्जला एकादशी) को भगवती मां गायत्री का आविर्भाव हुआ था। वेदों की जननी वेदमाता गायत्री को भारतीय शास्त्रों में सर्वोच्च माना गया है। मंत्रों में श्रेष्ठतम गायत्री मंत्र की आधिष्ठात्री देवी के रूप में इनका महत्व सभी शास्त्रों तथा आगमों में प्रसिद्ध है।
गायत्री मंत्र बनता है राजयोग :
कौन है वेदमाता गायत्री ?
वेदमाता गायत्री ब्रह्माजी की शक्ति है तथा इस सृष्टि का आधार है। उन्हीं के गायत्री मंत्र तथा शक्ति का सहारा लेकर ऋषि विश्वामित्र ने दूसरी सृष्टि बनाने के दुष्कर कार्य को भी संभव कर दिया था। आज भी हिंदू धर्म के बालकों में जनेऊ संस्कार करते समय तथा विद्या आरंभ करते समय गायत्री मंत्र का उपदेश किया जाता है।
ब्रह्म मुहूर्त प्रात: चार बजकर चार मिनट से प्रात: चार बजकर 44 मिनट तक रहेगा। अमृत काल सुबह आठ बजकर 45 मिनट से दस बजकर ग्यारह मिनट तक रहेगा। इसी प्रकार अभिजित मुहूर्त का समय दोपहर 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इनमें से किसी भी एक मुहूर्त में अपनी सुविधानुसार पूजा की जा सकती है।
गायत्री जयंती का महत्व :
हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र तथा वेदमाता गायत्री दोनों को ही परब्रह्म की संज्ञा दी गई है। इस दिन गुरुकुलों में नए शिष्यों का मुंडन संस्कार करवा कर उनकी शिक्षा आरंभ की जाती है। जिन बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है, उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। निर्जला एकादशी भी इसी दिन होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन किए गए पुण्यों का फल अखंड तथा अनंत बताया गया है। इसलिए इस दिन विभिन्न प्रकार के धर्म-कर्म, यज्ञ, तथा अन्य कर्मकांड किए जाते हैं। बहुत से स्थानों पर इस दिन गायत्री मंत्र के विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।
ऐसे करें मां गायत्री की पूजा :
मां गायत्री की पूजा करने से सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है तथा व्यक्ति की प्रत्येक उचित इच्छा पूर्ण होती है। गायत्री जयंती के दिन प्रात: ही स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ, स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहनें तथा अपने निकट के मंदिर में अथवा घर के पूजा कक्ष में एक आसन पर बैठें। मां गायत्री के चित्र अथवा प्रतिमा की पुष्प, धूप, दीप, तिलक आदि से पूजा-अर्चना करें। गायत्री चालिसा एवं गायत्री सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद कम से कम ग्यारह माला गायत्री मंत्र का एकाग्रचित्त होकर जप करें। यदि संभव हो तो इससे अधिक भी कर सकते हैं। गायत्री मंत्र निम्न प्रकार है-
गायत्री मंत्र :
||| ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ॐ |||
अर्थ :
” उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें। “
मानसपुत्र [ पंडित ] संजय कुमार झा,