श्री गायत्री स्तोत्रम् : गायत्री मंत्र को ॐ के समान ही प्रभावशाली और फलदायी माना जाता है।

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श्री गायत्री स्तोत्रम् :

माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की अराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदार-भाव आदि की प्राप्ति होती हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार गायत्री माता शक्ति का केंद्र है जिनमें सभी प्रकार की शक्तियों का समावेश है। पुराणों के अनुसार देवी गायत्री का जिक्र ब्रह्माजी की पत्नी के रूप में किया गया है।

गायत्री माता को वेद माता भी कहा जाता है। माना जाता है की श्री गायत्री स्तोत्रम् जाप से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

अथर्ववेद में गायत्री माता को आयु, विद्या, संतान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है।

गायत्री मंत्र को ॐ के समान ही प्रभावशाली और फलदायी माना जाता है।

कुछ मान्यताओ के अनुसार ब्रह्माण्ड के निर्माण से पहले सब कुछ शून्य था और उस समय केवल गायत्री मंत्र ही अस्तित्व मैं था।

कहा जाता है के उसकी शक्ति से एक भयंकर विस्फोट हुआ था और उसी विस्फोट से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनो ब्रह्मशक्तियों की उत्पत्ति हुयी थी।

इसीलिए दोस्तो गायत्रि माता को शक्ति, ज्ञान, और पवित्रता का रूप मन जाता है तो चलिए दोस्तों हम भी गायत्री माता के श्री गायत्री स्तोत्रम् का पाठ करें और उनसे शक्ति, ज्ञान, और पवित्रता की कामना करैं।

ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं |
भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ ||

नमस्ते देवि गायत्री सावित्री त्रिपदेऽक्षरी ।
अजरे अमरे माता त्राहि मां भवसागरात् ॥ १॥

नमस्ते सूर्यसंकाशे सूर्यवावित्रिकेऽमले ।
ब्रह्मविद्ये महाविद्ये वेदमातर्नमोऽस्तु ते ॥ २॥

अनन्तकोटि-ब्रह्माण्डव्यापिनी ब्रह्मचारिणी ।
नित्यानन्दे महामये परेशानी नमोऽस्तु ते ॥ ३॥

त्वं ब्रह्मा त्वं हरिः साक्षाद् रुद्रस्त्वमिन्द्रदेवता ।
मित्रस्त्वं वरुणस्त्वं च त्वमग्निरश्विनौ भगः ॥ ४॥

पूषाऽर्यमा मरुत्वांश्च ऋषयोऽपि मुनीश्वराः ।
पितरो नागयक्षांश्च गन्धर्वाऽप्सरसां गणाः ॥ ५॥

रक्षो-भूत-पिशाचाच्च त्वमेव परमेश्वरी ।
ऋग्-यजु-स्सामविद्याश्च अथर्वाङ्गिरसानि च ॥ ६॥

त्वमेव सर्वशास्त्राणि त्वमेव सर्वसंहिताः ।
पुराणानि च तन्त्राणि महागममतानि च ॥ ७॥

त्वमेव पञ्चभूतानि तत्त्वानि जगदीश्वरी ।
ब्राह्मी सरस्वती सन्ध्या तुरीया त्वं महेश्वरी ॥ ८॥

तत्सद्ब्रह्मस्वरूपा त्वं किञ्चित् सदसदात्मिका ।
परात्परेशी गायत्री नमस्ते मातरम्बिके ॥ ९॥

चन्द्रकलात्मिके नित्ये कालरात्रि स्वधे स्वरे ।
स्वाहाकारेऽग्निवक्त्रे त्वां नमामि जगदीश्वरी ॥ १०॥

नमो नमस्ते गायत्री सावित्री त्वं नमाम्यहम् ।
सरस्वती नमस्तुभ्यं तुरीये ब्रह्मरूपिणी ॥ ११॥

अपराध सहस्राणि त्वसत्कर्मशतानि च ।
मत्तो जातानि देवेशी त्वं क्षमस्व दिने दिने ॥ १२॥

॥ इति श्रीवसिष्ठसंहितोक्तं गायत्रीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

मानसपुत्र ( पंडित ).संजय कुमार झा

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