भारत : जिसके गीत देवगण भी गाते हैं…. स्वाधीनता_दिवस

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शरद सिंह

भारत ! भरतखण्‍ड-जम्‍बूद्वीप ! यह वह देश है जहां गण के साथ-साथ राष्‍ट्र जैसे विचारों का उदय हुआ और धरती को मां कहने का भाव जागा। पूरी सप्‍तद्वीपा पृथ्‍वी पर इसको कर्मभूमि के रूप में जाना गया, अन्‍य सभी को भोग भूमि के रूप में संबोधित किया गया है।

यह विचार इतना उदात्‍त और सर्वतोभावेन था कि ऋषिमना रचनाकारों ने देवगणों के मुखारविंद से इस भूमि का यशोगान करवाया। गुप्‍तकाल पूर्व रचे गए विष्‍णुपुराण में इस मातृभूमि के यश के रूप में पराशर को स्‍वीकारना पड़ा-

गा‍यन्ति देवा: किल गीतकानि
धन्‍यास्‍तु ते भारतभूमिभागे।
स्‍वर्गापवर्गास्‍पदमार्गभूते भवन्ति
भूय: पुरुषा: सुरत्‍वात्।।
कर्माण्‍य संकल्पित तत्‍फलानि
सन्‍यस्‍य विष्‍णौ परमात्‍मभूते।
अवाप्‍य तां कर्ममहीमनन्‍ते तस्मिंल्‍लयं
ये त्‍वमला: प्रयान्ति।। (विष्‍णु्. द्वितीयांश, 3, 24-25)

यही मान्‍यता मार्कण्‍डेय पुराणकार की है। अार्षरामायण, अध्‍यात्‍म रामायण में आई है। शिवपुराणकार ने भी इस मान्‍यता को यथारूप उद्धृत किया है। बहुत मायने रखती है भारतीय संस्‍कृति की यह स्‍वीकारोक्ति। संस्‍कृत में निबद्ध ये विचार कालजयी है, संस्‍कृत की तरह ही सार्वकालिक हैं, जैसा कि प्रो. एचएच विल्‍सन ने भी स्‍वीकारा था –

यावद्भारतवर्षं स्‍याद्यावद्विन्‍ध्‍य हिमालयौ।
यावद्गंगा च गोदा च तावदेव हि संस्‍कृतम्।।

अनेकानेक खोजें देने वाला, अनेकानेक मान्‍यताओं की बुनियाद रखने वाला और सहिष्‍णुता जैसे मूल्‍य का पोषक यह राष्‍ट्र सच में अपने मूल्‍यों के लिए महनीय है….। स्‍वाधीनता दिवस की बधाई।
-✍🏻 श्रीकृष्ण ‘जुगनू’

यह पोस्ट राष्ट्र गौरव का वो संकलित दस्तावेज है जिसे प्राप्त कर हर राष्ट्रवादी स्वगौरव का अनुभव कर सकता है।
★★★★#धरोहर ★★★★#दस्तावेज★★★★

#भारतकीआजादी की लड़ाई में ऐसे कितने #क्रांतिकारी थे जिनके नाम और बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तो छोड़िए पुरानी पीढ़ी भी ज्यादातर लोगों के नाम से वाकिफ नही है, क्योकि भारतीयों ने #सरकारपरआश्रित हो अपनी इस धरोहर को सहेजने का प्रयास ही नहीं किया।

आजाद भारतीयों की शायद यह सबसे बड़ी कमी है कि हम भारतीय त्याग और बलिदान की अपेक्षा सत्ता शक्ति और प्रभुत्व को ज्यादा महत्व देते हैं।

राष्ट्र की यह आज़ादी लाखों लोगों के त्याग और संघर्ष की गाथा है। यह उस विकट और विकराल लड़ाई का प्रतिफल है जिसमें अनगिनत क्रांतिवीरों ने अपने प्राणो की आहुति दी। इसके पीछे संघर्ष और जज्बे का एक लम्बा इतिहास है। अनुमानित तीन लाख से ज्यादा लोगों ने इस यज्ञ में अपने प्राणो की आहुति दी थी मगर सौ दो सौ लोगों को छोड़कर, बाकी सब काल की गर्त में खो गए हैं।

भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे ज्यादातर जानकारी इधर उधर बिखरी पड़ी है और यह जानकारी व्यक्तिगत या किसी समूह विशेष तक ही सीमित है। कई सेनानियों के नाम तो मिलते है मगर उनके परिवार के अलावा अब शायद ही इन लोगों के गाँवों में भी इनके योगदान का कोई जिक्र होता हो।

यही कारण है आज़ादी का इतिहास ◆मंगल पांडे ◆झाँसी की रानी ◆भगत सिंह ◆नेहरू और ◆गाँधी के नाम तक ही सिमट गया है।

वैसे कई इतिहासकारो और संस्थाओं ने अपने स्तर पर बलिदानियों की यादें सुरक्षित रखने का प्रयास किया है, उन्हीं में से कुछ अंत्यन्त गुमनाम बलिदानियों के नाम यहाँ दिए गए हैं जिनमें से बहुत से बलिदानियों का नाम बहुतों ने सुना भी न होगा।

◆वीर अझगू मुतू कोणे:: (1681-1739) इन्हें भारत का प्रथम स्वंतत्रता सेनानी भी कहा जाता है। वीर अझगू मुत्तू कोणे, जिन्हें अझगू मुत्तू कोणार व सर्वइकरार के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु के मदुरै में एक यादव सेनापति थे और इन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बगावत की थी।

◆पुलि थेवर:: (1सितंबर 1715-16 अक्टूबर 1767) पुलि थेवर तमिलनाडु के एक क्षेत्र के नायक थे (Polygar) जो अंग्रेज़ों के जुल्म के खिलाफ लड़ते हुए 1767 में शहीद हो गए।

◆कोया विद्रोह:: (1803–1886) यह अंग्रेज़ों के विरुद्ध किया गया एक दीर्घ अवधि तक चलने वाला विद्रोह था। यह आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी और उड़ीसा के ‘माल्कागिरि जिलों में फैला था। यहाँ के कोया आदिवासी तथा ‘कोंडा सोरा’ नामक पहाड़ी सरदारों ने इस विद्रोह को अंजाम दिया। ये विद्रोह 1803,18401845,1858, 1861,1862 और 1879-80, 1886 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध किये गए।

◆रानी वेलु नाच्चियार:: (3 जनवरी 1730- 25 दिसम्बर 1796) पहली भारतीय महिला जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाये थे। ये शिवगंगा की रानी थीं और उन्हें तमिलनाडु में “वीरमंगई- साहसी महिला” के नाम से जाना जाता है।

◆वीर पंड्या कट्टबोम्मन:: वीर पंड्या कट्टबोम्मन तमिलनाडु में जमींदार थे जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की सम्प्रभुता को मानने से मना कर, उनके खिलाफ युद्ध लड़ा। इन्हें 16 अक्टूबर 1799 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।

◆मरुथु पंडियार:: दोनों मरुथु भाइयों ने, ईस्ट इंडिया कंपनी के चुंगल से शिवगंगाई राज्य को छुड़ाने के असफल प्रयास किये थे। दोनों भाई 1801 में फांसी चढ़ा दिए गए।

◆धीरन चिन्नमलै (17 अप्रैल 1756 – 31 जुलाई 1805) एक तमिल सरदार थे जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध लड़ा था।

◆पजहस्सी राजा:: “केरल वर्मा पजहस्सी राजा (3 जनवरी 1753 – 1805), केरल के स्वतंत्रता सेनानियों में सबसे अग्रणी थे और उन्हें केरल सिंहम् कहा जाता है। वे 1774 से 1805 तक कोट्टायम के राजा थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ उनका युद्ध कोटिओट युद्ध कहा जाता है।”

◆जयी राजगुरु:: (1806)जयकृष्ण राजगुरु माहापात्रा जिन्हे जयी राजगुरु के नाम से जाना जाता है उड़ीसा के एक प्रमुख स्वंतंत्रता सेनानी थे। ये खुद्रा के राजदरबार में राजपुरोहित थे और इन्होने मराठो की सहायता से अंग्रेज़ो के खिलाफ विद्रोह करने का प्रयास किया था, जिसके परिणामस्वरूप इन्हे 1806 में फांसी पर लटका दिया गया।

◆उदैया :: 1804 से 1807 तक दलित वर्ग के यह योद्धा अलीगढ के आसपास एक किवदंती बन गये थे। भारत के इस वीर ने 1804 में अकेले ही अंग्रेज़ो के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया था। 1807 में इन्हें पकड़ कर अंग्रेज़ो द्वारा फांसी पर लटका दिया गया।

◆वेल्लोर विद्रोह:: (10 जुलाई, 1806)यह विद्रोह सिर्फ एक दिन ही चला था मगर इसमें 200 से ज्यादा अँगरेज़ मारे गए थे। अंग्रेज़ो ने इस विद्रोह को सख्ती से दबा दिया और चंद घंटों में ही तकरीबन 350 विद्रोही सिपाही मार डाले गए। 6 सिपाहियों को तोप से उड़ा दिया गया। 5 को फायरिंग स्क्वैड के हवाले किया गया। 8 को फांसी पर लटकाया गया। सेना की वो तीनों टुकड़ियां भंग कर दी गईं, जो इस विद्रोह में शामिल थीं ।

◆पाइक विद्रोह:: (1817) यह उड़ीसा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। पाइक लोगों ने भगवान जगन्नाथ को उड़िया की एकता का प्रतीक मानकर बख्शी जगबन्धु के नेतृत्व में 1817 ई. में यह विद्रोह शुरू किया था। शीघ्र ही यह आन्दोलन पूरे उड़ीसा में फैल गया किन्तु अंग्रेजों ने इसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया। बहुत से वीरों को पकड़ कर दूसरे द्वीपों पर भेज कर कारावास का दण्द दे दिया गया। कुछ इतिसकार इसे ‘भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम’ की संज्ञा देते हैं।

◆बिंदी तिवारी : Barrackpore mutiny of 1824
बिंदी तिवारी 1824 में अंग्रेज़ो के खिलाफ हथियार उठाने वाले एक जाबांज सिपाही थे। उनके नेतृत्व में उनकी पूरी ब्रिगेड ने अंग्रेज़ो के खिलाफ बगावत कर दी थी, हालांकि वे इस प्रयास में मारे गए मगर अपने पीछे विद्रोह की एक चिंगारी छोड़ गए।

◆रानी चेनम्मा:: (1778 -1829) रानी चेनम्मा भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं। सन् 1824 में उन्होंने हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स) के विरुद्ध अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया था। संघर्ष में वह वीरगति को प्राप्त हुईं। भारत में उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले सबसे पहले शासकों में उनका नाम लिया जाता है।

◆कोल विद्रोह:: (1831)कोल जनजाति द्वारा अंग्रेजी सरकार के अत्याचार और शोषण के खिलाफ 1831 ईसवी में किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह है। क्योकि शोषण के विरुद्ध कोलो ने पहली बार संगठित रूप से सरकार और उसके समर्थकों के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन आरंभ किया और शीघ्र ही यह अन्य आदिवासियों समूहों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। कोल विद्रोह भले असफल हो गया लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, असमानता और शोषण के विरूद्ध आदिवासियों के अन्य समूहों का संघर्ष इस विद्रोह के बाद भी जारी रहा।

◆1842 का बुंदेला विद्रोह:: गुलामी के खिलाफ क्रांति का एक और असफल प्रयास , 1842 में ही बुंदेला विद्रोह के रूप में हो चुका था ,जो गोंडवाना, मालवा , बुन्देलखण्ड सहित सारे मध्य भारत में फैला था। इस क्रांति के सूत्रधार थे ◆राव विजय बहादुर सिंह और ◆मधुकर शाह सहित उनके ◆तीनों पुत्र।

इस विद्रोह की सजा स्वरूप, अठारह सौ तैतालीस में इक्कीस वर्षीय ◆मधुकर शाह को फांसी की सजा दी गई और भारत मां की पूजा में एक पुष्प और अर्पित हो गया। उनके भाई ◆गणेश जू को काला पानी की सजा दी गई। कुछ अन्य विद्रोही लड़ते हुए बलिवेदी पर चढ़ गए थे तो कुछ को फांसी की सजा मिली थी और कुछ अन्य काला पानी भेज दिए गए थे। इस विद्रोह का दायरा इतना व्यापक था कि इसे दबाने में अंग्रेजों को लगभग दो वर्ष लगे थे। यह दुर्भाग्य ही है कि इतिहासकारो ने इस विद्रोह को कोई खास महत्त्व नहीं दिया और अंग्रेज़ो से प्रतिरोध का यह सामूहिक प्रयास इतिहास के पन्नो में दफ़न हो गया।

◆संथाल विद्रोह:: (1855) अंग्रेजी सरकार के अत्याचार और शोषण से संथालों को न्याय दिलाने के लिए चार भाई सामने आये। उनके नाम थे ◆सिद्धू, ◆कान्हू, ◆चाँद और ◆भैरव। इन्होंने संथालों को एकजुट किया।

जुलाई 1855 ई. में संथालों ने विद्रोह का बिगुल बजाया और इस शंखनाद की गूंज भागलपुर और राजमहल के अलावा हजारीबाग, बाँकुड़ा, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर आदि जगहों में आग की तरह फ़ैल गयी। मगर संथाल के पास अधिक शक्ति नहीं थी और न ही पर्याप्त शस्त्र-अस्त्र थे। मात्र तीर और धनुष से वे कितने दिन टिकते? 15 हज़ार से अधिक संथाल, सैनिकों द्वारा मार गिराये गए और इस तरह फरवरी 1856 ई. तक संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) पूरी दबा दिया गया था।

◆टंट्या भील:: (1842-1890) टंट्या भील 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजो को चुनौती देने वाला ऐसे जननायक थे, जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता को ललकारा था। पीडितो-शोषितों का यह मसीहा मालवा-निमाड में लोक देवता की तरह आराध्य बना, जिसकी बहादुरी के किस्से हजारों लोगो की जुबान पर थे। बारह वर्षों तक भीलो के एकछत्र सेनानायक टंट्या के कारनामे उस वक्त के अखबारों की सुर्खिया होते थे, सन 1890 में इन्हे अंग्रेज़ो द्वारा फांसी दे दी गई।

1857 की क्रांति के सेनानी:: हम सभी ने ◆झाँसी की रानी ◆तात्या टोपे ◆नानाजी ◆मंगल पांडेय और ◆बहादुर शाह जफ़र का नाम तो सुना है मगर इसी क्रांति में कई और सितारे भी थे जो हँसते हुए वतन के लिए मर मिटे थे।

◆बांके:: बांके और उनके साथियो ने अंग्रेजों से जंग का ऐलान कर दिया था और उनको पकड़ने के लिए अंग्रेज़ो ने 50 हजार रुपये इनाम रखा गया था। उन्हें और उनके 18 साथियो को बाद में अंग्रेज़ो ने पकड़कर फ़ांसी पर लटका दिया था ।

◆गंगा दीन:: कानपूर के लोग आज भी इन्हे गंगू बाबा के नाम से सम्मान के साथ याद करते हैं और उनकी वीरता के किस्से सुनाते हैं। वह 1857 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध सतीचौरा के करीब वीरता से लड़े और बाद में अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था।

◆मातादीन:: 1857 की क्रांति के नींव रखने का श्रेय इन्हे जाता है , कहा जाताहै कि इन्ही के कहने पर मंगल पांडे ने विद्रोह का बिगुल बजाया था।

◆मक्का पासी:: 1857 में मई में हुए क्रांति के बाद पूरे देश में लोगों के दिलों में अंग्रेजों को लेकर आग भड़क गई थी। मक्का पासी ने 200 पासियों को लेकर कई अंग्रेज़ों को मार गिराया और खुद मर मिटे। इनके कुछ साथियो के नाम इस प्रकार हैं- महाराजा बिजली पासी, महाराज लखन पासी, महाराजा सुहाल देव, महाराजा छेटा पासी, और महाराजा दाल देव पासी।

◆रानी अवंतीबाई लोधी:: (16 अगस्त 1831- 20 मार्च 1858) रामगढ़ की रानी अवंतीबाई लोधी रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थी और 1857 के स्वाधीनता संग्राम की प्रथम महिला शहीद वीरांगना थीं । 1857 के मुक्ति आंदोलन में रेवांचल राज्य की एक अहम भूमिका थी।

◆वीर नारायण सिंह::(1795 – 1857) छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक सच्चे देशभक्त व गरीबों के मसीहा थे। 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय उन्होने जेल से भागकर अंग्रेजों से लोहा लिया था। उन्हें सरे आम तोप से उड़ा दिया गया था।

◆बाबूराव शेडमाके:: 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम का आदिवासी हीरो…मार्च सन1858 के शुरु में शेडमाके ने गोंड, माड़िया और रोहिल्ला के आदिवासियों युवाओं की फ़ौज बनाकर अंग्रेज़ो से लोहा लिया था। कुछ समय के लिए तो उन्होंने गढ़चिरोली अपने कब्जे में ले भी लिया था। मगर इस विद्रोह का अंत भी बाकी संग्रामियों की तरह ही हुआ , अपने का असहयोग और अंग्रेज़ो की विशाल सेना के कारण, यह विद्रोह ज्यादा दिन नहीं चल पाया। बाद में उन्हें उनके कुछ साथियो के साथ फांसी पर लटका दिया गया।

◆झलकारी बाई:: झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। बुंदेलखंड की यह वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं।

जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी ।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेंजी सेना से रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था। वे रानी के वेश में युद्ध करने लगी और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया।

◆अजीजन बाई:: आज भी भारत के अंचलों ने अपने नायकों को नहीं बिसराया है, उनकी स्मृतियों को सहेज कर रखा है। स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे ढेरों चरित्र हैं जिनकी गाथाए गांवों-देहातों की जुबान में सहेजे गई है। अजीजन के सम्बन्ध में भी यह लोकगीत है जो आज भी उनके त्याग और बलिदान की याद दिलाता है।

”फौजी टोपे से मिली अजीजन
हमहूँ चलब मैदान मा.
बहू-बेटिन कै इज्जत लूटैं
काटि फैंकब मैदान मा.
अइसन राच्छस बसै न पइहैं
मारि देब घमसान मा.
भेद बताउब अंग्रेजन कै
जेतना अपनी जान मा.
भेद खुला तउ कटीं अजीजन
गईं धरती से असमान मा.”

अजीजन एक नृत्यांगना थीं जिनके यहां अंग्रेज अफसर आते-जाते थे और वे गोपनीय तरीके से गोरे अफसरों की गुप्त सूचनाएं क्रांतिकारियों को देती थी। लेकिन अफसोस कि एक दिन अंग्रेजों को इसकी जानकारी हो गयी , उनपर जुल्म ढाए गए और बाद में उनकी हत्या कर दी गयी।

◆उदा देवी:: इस वीरांगना ने तीस से ज्यादा अँगरेज़ सैनिको को मौत के घाट उतार दिया था।

◆कुंवर सिंह:: 1857 ई. के विस्मयकारी नायक, वीर सेनानी बाबू कुंवर सिंह जैसे महापुरुष शताब्दियों के बाद भूतल पर आते हैं और मानवता की ज्योति जलाकर विश्व को आलोकित कर देते हैं। अपनी ढलती उम्र और बिगड़ते सेहत के बावजूद 80 वर्षीय कुंवर सिंह लड़ने तथा विजय हासिल करने का माद्दा रखते थे। अस्सी वर्ष के इस बूढ़े क्षत्रिय ने ब्रिटिश सता के चूल हिला दी थी । उस महापुरुष की जीवन गाथा अदभुत शौर्य, उनकी अत्याधिक लोकप्रियता, अदभुत नायकत्व, अपराजय, मनोबल, मातृभूमि के लिए त्याग एवं बलिदान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना अतीत में था।

◆पीर अली:: बिहार में क्रांति के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ थे और देश की स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता फ़ैलाने को उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। 7जुलाई 1857 को पीर अली को 14 साथियों के साथ गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया गया।

◆राणा बख्तावर सिंह(मेवाती जाबांज)1857 की असफलता के बाद भी, आज़ादी के दिवानो ने अपना हौसला नहीं खोया था, कुछ ने व्यक्तिगत रूप से तो कई दिवानो ने सामूहिक रूप से अंग्रेज़ो का प्रतिकार किया था।

◆ग़दर पार्टी :: आज़ादी के दीवानो ने देश-विदेश में कई छोटे-बड़े दल बनाये थे और उन्होंने अपने अपने स्तर पर आज़ादी के प्रयास किये थे, उन्ही में से एक ग़दरपार्टी भी थी।

ज्यादातर युवा इस पार्टी के योगदान से वाकिफ नहीं होंगे क्योकि आज़ादी में योगदान में आज सिर्फ कांग्रेस का नाम सुनाई देता है ।

गदर अख़बार (उर्दू) वॉल्यूम। 1, नंबर 22, 24 मार्च 1914

#ग़दर_पार्टी भारत को अंग्रेज़ों की पराधीनता से मुक्त कराने के उद्देश्य से बना एक संगठन था। इसे अमेरिका और कनाडा के भारतीयों ने 25 जून1913 सैन फ्रांसिस्को नगर में बनाया था। इसे प्रशान्त तट का हिन्दी संघ (Hindi Association of the Pacific Coast) भी कहा जाता था। यह पार्टी “हिन्दुस्तान ग़दर” नाम का पत्र भी निकालती थी जो उर्दू और पंजाबी में छपता था। इस संगठन ने भारत को अनेक महान क्रांतिकारी दिए। ग़दर पार्टी के महान नेताओं ◆सोहन सिंह भाकना, ◆करतार सिंह सराभा, ◆लाला हरदयाल आदि ने जो कार्य किये, उसने ◆भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को उत्प्रेरित किया। पहले महायुद्ध के छिड़ते ही जब भारत के अन्य दल अंग्रेज़ों को सहयोग दे रहे थे, गदर पार्टी के लोगों ने अंग्रेजी राज के विरुद्ध जंग की घोषणा कर दी थी।

यहाँ कुछ व्यक्तियों का जिक्र भी जरुरी है , जिन्होंने आंदोलन की दशा और दिशा दोनों को प्रभावित किया था। जिनके जूनून ने आने वाली पीढ़ियों को बलिदान के लिए उत्साहित किया और धीरे धीरे आज़ादी आंदोलन को एक विराट स्वरुप ग्रहण करता गया।’

◆श्यामजी कृष्ण वर्मा::श्यामजी कृष्ण वर्मा (जन्म: 4 अक्टूबर 1857 – मृत्यु: 31 मार्च 1930) क्रान्तिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आजादी के संकल्प को परवान चढाने वाले एवं कई क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत थे। उन्होंने लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंग्लैण्ड जाकर पढ़ने वाले छात्रों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का एक प्रमुख केन्द्र था। 1905 में उन्होंने क्रान्तिकारी छात्रों को लेकर इण्डियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की।

उस समय यह संस्था क्रान्तिकारी छात्रों के जमावड़े के लिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। क्रान्तिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा उनके प्रिय शिष्यों में थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। वीर सावरकर ने वर्माजी का मार्गदर्शन पाकर लन्दन में रहकर लेखन कार्य किया था।

◆लाला हरदयाल:: (14 अक्टूबर 1884, दिल्ली-4 मार्च 1939) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया। इसके लिये उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया।

◆बाबा पृथ्वी सिंह आजाद:: (1892 – 1989) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, क्रान्तिकारी तथा गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। स्वतंत्रता के पश्चात वे पंजाब में मन्त्री भी रहे। वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे। सन 1977 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया था।

◆सरदार मोहन सिंह:: स्वतंत्रता संग्राम का वह सेनानी जिसने जिन्होंने आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की थी। बाद में सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज का नेतृत्व अपने हाथ में लिया था।

◆रासबिहारी बोस:: रासबिहारी बोस एक विलक्षण संगठन प्रतिभा के धनी थे , वे ग़दर पार्टी और आज़ाद हिन्द फौज के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे जापान में रहकर क्रन्तिकारी गतिविधिया चलाते रहे।

◆बटुकेश्वर दत्त:: असेंबली बमकांड में भगतसिंह के इस साथी की कहानी थोड़ी दुखदायी है। बाकी लोग तो मरने के बाद बाद भुला दिए गए मगर भारत माँ का यह लाल तो जीते जी भुला दिया गया था।

अस्पताल में भगत सिंह की माँ बटुकेश्वर दत्त से मिलने आयी थी। अभाव और गुमनामी जिंदगी के चलते आज़ादी के बाद भी उनकी जिंदगी का संघर्ष जारी रहा। रोजगार के लिए कभी सिगरेट कंपनी एजेंट तो कभी टूरिस्ट गाइड बनकर उन्हें पटना की सड़कों की धूल छानी।

◆अब्दुल हबीब यूसुफ़ मर्फ़ानी:: रँगून के इस व्यवसायी ने आजाद हिंद फौज को एक करोड रूपये दान दिए, इनके इसी त्याग और नेताजी ने उन्हें एक “सेवक-ए-हिंद” पदक देकर अपना आभार व्यक्त किया। ‘नेताजी, आज़ाद हिंद फौज एक कार्यक्रम मे कहा, “भाई! मैं आज बहुत खुश हूं कि लोगों ने अपने कर्तव्यों को साकार करना शुरू कर दिया है … देश की आज़ादी की खातिर लोग सब कुछ बलिदान करने को तैयार है।

◆बलवंत फड़के:: वासुदेव बलवंत फडके (4 नवम्बर 1845- 17 फ़रवरी 1883) जिनका केवल नाम लेने से युवकोंमें राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाती थी, ऐसे थे वासुदेव बलवंत फडके। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्रामके आद्य क्रांतिकारी थे। वे ब्रिटिश काल में किसानों की दयनीय दशा को देखकर विचलित हो उठे थे। उनका दृढ विश्वास था कि ‘स्वराज’ ही इस रोग की दवा है। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र मार्ग का अनुसरण किया था।

उन्होंने महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर ‘रामोशी’ नाम का क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया था और पुणे नगर को कुछ दिनों के लिए अपने नियंत्रण में ले लिया था। 20 जुलाई1879 को वे बीजापुर में पकड़ में आ गए। अभियोग चला कर उन्हें काले पानी का दंड दिया गया। अत्याचार से दुर्बल होकर एडन के कारागृह में उनका देहांत हो गया।

◆चाफेकर बंधू::◆दामोदर हरि चापेकर, ◆बालकृष्ण हरि चापेकर तथा ◆वासुदेव हरि चापेकर, भारतीय स्वतंत्रता के वह स्वर्णिम हस्ताक्षर है जिनके त्याग और बलिदान से यह देश हमेशा उपकृत रहेगा। देश की खातिर पूरे परिवार को बलिदान करने वाले उन माता-पिता का भी देश हमेशा ऋणी रहेगा।

एक अँगरेज़ अधिकारी की हत्या के आरोप में , ◆लोकमान्य तिलक के शिष्य इन तीनो भाइयो को और इनके साथ इनके साथी ◆महादेव गोविन्द विनायक रानडे को 10 मई 1899 को यरवदा कारागृह में ही फांसी दी गई।

◆उधम सिंह:: उधमसिंह (26 दिसम्बर 1899 – 31 जुलाई 1940) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ’ ड्वायर को लन्दन में जाकर गोली मारी थी।

◆मदनलाल ढींगरा:: (18 सितम्बर 1883 -17 अगस्त 1909) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे। भारतीय स्वतंत्रता की चिनगारी को अग्नि में बदलने का श्रेय महान शहीद मदन लाल धींगरा को ही जाता है । उन्होने इंग्लॅण्ड में विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी थी और इस आरोप में उन पर 22 जुलाई, 1909 का अभियोग चलाया गया। मदन लाल ढींगरा ने अदालत में खुले शब्दों में कहा कि “मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं।”

◆खुदीराम बोस:: (3-12-1889 -11अगस्त 1908) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 19 साल की उम्र में भारतवर्ष की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। वे अपने देश के लिये जान न्योछावर करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र और फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे।

◆प्रफुल्ल चाकी::(10 दिसम्बर 1888 – 1 मई 1908) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी एवं महान क्रान्तिकारी थे। भारतीय स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारी संघर्ष में खुदीराम बोस के इस साथी का नाम भी अत्यन्त सम्मान के साथ लिया जाता है।

◆हेमू कालानी::(23 मार्च, 1923, 21मार्च 1943 ) भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे जो मात्र १९ वर्ष की उम्र में देश के लिए हँसते हँसते फांसी पर चढ़ गए।

◆बाघा यतीन::(7 दिसम्बर 1879 -10 सितम्बर 1915) ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कार्यकारी दार्शनिक क्रान्तिकारी थे। वे युगान्तर पार्टी के मुख्य नेता थे। युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी। अंग्रेज़ो से लड़ते हुए उन्होंने देश की सेवा में अपने प्राण त्याग दिए।

◆अल्लुरी सीताराम राजू:: वनवासी स्वातंत्र्य प्रिय हैं, उन्हें किसी बंधन में अथवा पराधीनता में नहीं जक़डा जा सकता है, इसीलिये उन्होंने सबसे पहले जंगलों से ही विदेशी आक्रांताओं एवं दमनकारियों के विरुद्ध उनका यह संघर्ष देश के स्वतंत्र होने तक निरंतर चलता रहा। ऐसे प्रकृति प्रेमी वनवासी क्रांतिकारियों की लंबी शृंखला हैं, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन स्वतंत्रता के संघर्ष में गुजारा। ऐसे ही महान क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू भी थे जिन्होंने अंग्रेज़ो के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की अगुवाई की थी और इसी के चलते वे अपने उद्देश्यों की खातिर शहीद हो गए।

◆सूर्यसेन:: ( 22 मार्च 1894 – 12 जनवरी 1934) भारत की स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। उन्होने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की और चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया। अंग्रेजों ने उन्हें 12 जनवरी 1934 को मेदिनीपुर जेल में फांसी दे दी थी।

◆श्री औरोबिन्दो:: अरविन्द घोष (जन्म: 1872, मृत्यु:1950) एक योगी एवं दार्शनिक थे। इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में यह एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया।

◆भवतिचारण वोरा और ◆दुर्गा भाभी

◆रानी गिडालू या रानी गाइदिन्ल्यू (1915–1993)
भारत की नागा आध्यात्मिक एवं राजनीतिक नेत्री थीं जिन्होने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। उनको भारत सरकार द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में सन 1982 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत की स्वतंत्रता के लिए रानी गाइदिनल्यू ने नागालैण्ड में क्रांतिकारी आन्दोलन चलाया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें ‘नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई’ कहा जाता है।

◆जानकी अथी नाहप्पन::

◆मातंगी हज़रा::

◆प्रीतिलता वड्डेदार::

◆गुलाब कौर::

◆महारानी जिंद कौर::

◆कनकलता बरुआ::

◆दादाभाई नौरोजी:: (4 सितम्बर 1825- 30 जून 1917) ब्रिटिशकालीन भारत के एक पारसी बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री, कपास के व्यापारी तथा आरम्भिक राजनैतिक एवं सामाजिक नेता थे। उन्हें ‘भारत का वयोवृद्ध पुरुष’ (Grand Old Man of India) कहा जाता है। 1892 से 1895 तक वे युनिटेड किंगडम के हाउस आफ़ कॉमन्स के सदस्य (एमपी) थे।

अपने लंबे जीवन में दादाभाई ने देश की सेवा के लिए जो बहुत से कार्य किए उन सबका वर्णन करना स्थानाभाव के कारण यहाँ संभव नहीं है किंतु स्वशासन के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (1906) में उनके द्वारा की गई माँग की चर्चा करना आवश्यक है। उन्होंने अपने भाषण में स्वराज्य को मुख्य स्थान दिया। अपने भाषण के दौरान में उन्होंने कहा, हम कोई कृपा की याचना नहीं कर रहे हैं, हमें तो केवल न्याय चाहिए।

◆गोपाल कृष्ण गोखले:: (9 मई 1866 – फरवरी 19, 1915) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ‘ग्लेडस्टोन’ कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णत: सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। सत्ता के पीछे दौड़ने की फ़िक्र में हम लोगो ने महात्मा गाँधी के इस राजनैतिक गुरु को भी बिसरा दिया।

◆चंद्र सिंह गढ़वाली:: निहत्थे आन्दोलनारियो पर गोली चलाने से इंकार कर यह सिपाही पेशावर आंदोलन का एक हीरो बन गया था, इसके इस कृत्य के लिए इसे आजीवन कारावास की सजा हुई थी।

महिलाओ ने भी इस संग्राम में बढ़चढ़कर भाग लिया था। कुछ ने हथियार भी उठाये थे और कुछ शहीद भी हुई , मगर यहाँ भी एक-आध नाम को छोड़कर, बाकी सब नाम जनमानस की स्मृति से ओझल होगए है।

इनमे कुछ वीरांगनाओ ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए उनमे प्रमुख थी।◆कनकलता बरुआ (जन्म-1924, मृत्यु-1942), ◆प्रीतिलता वाडेयर ◆कल्पना दत्त, ◆शांति घोष◆सुनीति चौधरी ◆सुहासिनी अली और बीना दास। इनके अलावा कई अन्य महिलाओ ने अपने अपने स्तर पर आंदोलनकारियों को समर्थन दिया, कुछ ने आंदोलन में भाग लिया और कई इस कारण जेल भी गई।

◆कई ऐसे प्रयास भी थे जो जनमानस द्वारा शुरू किये गए थे या अलग अलग लोगो ने अलग अलग समय पर इनका नेतृत्व किया था। कई प्रयास ऐसे भी थे जिनमे एक से ज्यादा लोगो जो फांसी या कालापानी की सजा मिली थी।इन सभी प्रयासों का नतीजा भले चाहे जो रहा हो मगर इन सबका योगदान किसी भी अन्य व्यक्ति या समूह से कम नहीं है।

◆कोया विद्रोह:: कोया विद्रोह अंग्रेज़ों के विरुद्ध किया गया एक दीर्घ अवधि तक चलने वाला विद्रोह था जो 1804 से छुटपुट रूप से 1886 तक चलता रहा।

इसका प्रभाव आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी क्षेत्र से उड़ीसा के ‘माल्कागिरि ज़िले’तक था। यहाँ के कोया आदिवासी तथा ‘कोंडा सोरा’ नामक पहाड़ी सरदारों ने इस विद्रोह को अंजाम दिया। विद्रोह का प्रमुख केन्द्र ‘चोडवरम्’ का ‘रम्पा’ प्रदेश था।

◆नील विद्रोह::यह आंदोलन एक ऐसा विरला उदाहरण है जिसने अंग्रेजी हुकूमत को नील के किसानो की मांग मानने पर मजबूर कर दिया था। सबसे पहले इस विद्रोह की शुरुआत सितंबर 1858 में बंगाल के नदिया जिले के गोविंदपुर गांव से हुई थी. जिसका नेतृत्व वहां के स्थानीय नेता दिगम्बर विश्वास और विष्णु विश्वास ने किया था, इनकी अगुवाई में वहां किसानों ने नील की खेती करने से मना कर दिया था। देखते ही देखते यह विद्रोह 1860 तक बंगाल के मालदा, ढाका, पावना जैसे कई क्षेत्रों में फ़ैल गया. 1860 तक इस विद्रोह ने पूरे बंगाल में भूचाल ला दिया था। आखिरकार अंग्रेज़ो ने किसानो की कुछ मांगो को मानकर आंदोलन को पूरे देश में फैलने से रोका।

◆काकोरी कांड:: क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे स्वतन्त्रता के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत पूरी करने के लिए क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व ६ अन्य सहयोगियों ने काकोरी स्टेशन पर रेल पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। इस ऐतिहासिक मामले में 40 व्यक्तियों को भारत भर से गिरफ्तार किया गया था। उनके नाम इस प्रकार हैं:

◆चन्द्रधर जौहरी ◆चन्द्रभाल जौहरी ◆शीतला सहाय ◆ज्योतिशंकर दीक्षित◆भूपेंद्रनाथ सान्याल◆वीरभद्र तिवारी◆मन्मथनाथ गुप्त ◆दामोदरस्वरूप सेठ ◆रामनाथ पाण्डे ◆देवदत्त भट्टाचार्य ◆इन्द्रविक्रम सिंह ◆मुकुन्दी लाल ◆शचीन्द्रनाथ सान्याल ◆योगेशचन्द्र चटर्जी ◆राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ◆शरतचन्द्र गुहा ◆कालिदास बोस ◆बाबूराम वर्मा ◆भैरों सिंह ◆प्रणवेशकुमार चटर्जी ◆रामदुलारे त्रिवेदी ◆गोपी मोहन ◆राजकुमार सिन्हा ◆सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य ◆मोहनलाल गौतम ◆हरनाम सुन्दरलाल ◆गोविंदचरण कार ◆शचीन्द्रनाथ विश्वास ◆शिवचरण लाल शर्मा ◆विष्णुशरण दुब्लिश ◆रामकृष्ण खत्री ◆बनवारी लाल ◆रामप्रसाद बिस्मिल ◆बनारसी लाल ◆लाला हरगोविन्द ◆प्रेमकृष्ण खन्ना ◆इन्दुभूषण मित्रा ◆ठाकुर रोशन सिंह ◆रामदत्त शुक्ला ◆मदनलाल ◆रामरत्न शुक्ला ◆अशफाक उल्ला खाँ और शचीन्द्रनाथ बख्शी

इस कांड में ◆राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ◆पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल◆ अशफाक उल्ला खाँ तथा ◆ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी। इस प्रकरण में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को 4 वर्ष की सजा से लेकर काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।

◆चौरीचौरा कांड::‘सिपाही बहादुर’ नामक किताब जंगे आज़ादी में भोपाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका का विस्तृत वर्णन करती है। 1857 के स्वतंत्रता के महासमर में संभवत: देश की पहली समानांतर सरकार ‘सिपाही बहादुर’ के नाम से भोपाल की अवाम ने कायम की थी। संदर्भित पुस्तक 1857 में भोपाल और आस-पास के इलाकों में हुए स्वाधीनता संघर्ष की महत्वपूर्ण जानकारी देती है।

◆जलियावाला बाग::जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए जिसमे 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा भी था।

यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि “ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।”

◆कूका विद्रोह:: कूका विद्रोह सन 1871-73 में पंजाब के कूका लोगों (नामधारी सिखों) द्वारा किया गया एक सशस्त्र विद्रोह था बालक सिंह तथा उनके अनुयायी गुरु रामसिंह जी ने इसका नेतृत्व किया था।

कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। इन में एक 12 वर्षीय बच्चा बिशन सिंह भी शरीक था, जिसे सिपाहियों ने सिर धड़ से अलग कर शहीद कर दिया था। वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कुर्बान होने वाला सबसे कम उम्र का सेनानी था। 18 जनवरी 1872 को 16 अन्य सिखों को तोपों से उड़ाकर शहीद कर दिया गया, 10 सिख लड़ते हुए, चार काले पानी की सजा काटते हुए, 65 सिखों को तोपों तथा एक सिख को तलवार से शहीद कर इन नामधारी सिखों को शहीद कर दिया गया। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में ‘कूका लहर’ के नाम से अंकित किया गया है।

◆चिटगांव आरमारी रेड
◆खासी विद्रोह
◆लाहौर ट्रायल
◆सन्यासी विद्रोह
◆चुआरों का विद्रोह
◆चेरो विद्रोह
◆होमुण्डा विद्रोह
◆मुंडा विद्रोह
◆अहोम विद्रोह
◆पागलपंथी विद्रोह
◆भील विद्रोह
◆कच्छ विद्रोह
◆बघेरा विद्रोह
◆रामोसी विद्रोह
◆गडकरी विद्रोह
◆सावंतवाड़ी विद्रोह
◆विजयनगर शासक का विद्रोह
◆दीवान वेल्लु थम्पी का विद्रोह
◆सूरत का नमक विद्रोह
◆पॉलीगारों का विद्रोह
◆वहाबी विद्रोह
◆फ़क़ीर विद्रोह
◆खोंड विद्रोह
◆युआन-जुआंग विद्रोह
◆उत्तरपूर्वी भारत के कुछ गुमनाम क्रांतिकारी
◆इतिहास में अंडमान की जेल में रखे गए कई सौ कैदियों के नाम और प्रांतो का जिक्र है पर इनमे से ज्यादातर के बारे में कोई विशेष जानकारी अब उपलब्ध नहीं है।

✍🏻शरद सिंह

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