कोरोना महामारी के दौर में भी दिल्ली पुलिस के आईपीएस सरकारी खजाने यानी लोगों के टैक्स के पैसों को बेदर्दी से लुटा रहे हैंं।
दिल्ली शहर के नए कोतवाल यानी पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की शान में लाखों रुपए लुटा दिए गए।
कमिश्नर के तीन कार्यक्रमों में ही सरकारी खजाने से लगभग तीस लाख रुपए खर्च कर दिए जाने का अनुमान है।
कमिश्नर का दौरा-
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने पुलिस अफसरों से मिलने के लिए दक्षिण, मध्य और पश्चिम क्षेत्र का दौरा किया था। अगस्त में क्रमशः दक्षिण, मध्य और पश्चिम जोन में इस सिलसिले में तीन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
इन कार्यक्रम में जिलों के डीसीपी ने अपने-अपने क्षेत्र की अपराध और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति और समस्या आदि से कमिश्नर को अवगत कराया। इन कार्यक्रमों में पुलिस के विशेष आयुक्त,संयुक्त पुलिस आयुक्त,15 जिलों के उपायुक्त, एसीपी, एसएचओ और इंस्पेक्टर स्तर तक के अफसर ही शामिल हुए थे।
हरेक कार्यक्रम में 150-200 पुलिस अफसरों ने शिरकत की। इस तरह तीनों कार्यक्रमों में 600-700 पुलिस अफसर शामिल हुए।
कमिश्नर का कदम खजाने पर भारी-
कमिश्नर राकेश अस्थाना का इस तरह से एसएचओ स्तर तक के अफसरों से मिलना, सीधे संवाद करना और उनका उत्साह बढ़ाना अच्छा कदम हैं।
लेकिन इन कार्यक्रमों के आयोजन पर सरकारी खजाने से लाखों रुपए लुटा देने से आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है।
तीस लाख रुपए ?
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि इन तीनों कार्यक्रमों में भोजन, फूलों/साज सज्जा और टैंट आदि पर लगभग तीस लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है। वैसे यह रकम ज्यादा भी हो सकती हैं।
इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता हैं कि एक कार्यक्रम में ही भोजन, साजसज्जा, टैंट आदि पर करीब 10-15 लाख रुपए तक खर्च होने का अनुमान है। जिसमें भोजन पर ही करीब 6 लाख रुपए, लगभग ढाई लाख रुपए टैंट पर, एक लाख रुपए फूलों /साज सज्जा पर , हजारों रुपए का पानी, 30-35 हजार रुपए एअरकंडीशनर पर और हजारों रुपए जनरेटर आदि पर खर्च किया गया है।
एक अफसर से मुलाकात पर पांच हजार रुपए खर्च –
इस हिसाब से ही तीनों कार्यक्रमों पर तीस लाख रुपए खर्च करने का अनुमान है। यानी एक कार्यक्रम पर औसतन दस लाख रुपए खर्च कर दिए गए। मान लें कि हरेक कार्यक्रम में दो सौ अफसरों ने शिरकत की, तो एक अफसर पर औसतन पांच हजार रुपए खर्च किया गया। जिसमें एक अफसर के खाने की प्लेट ढ़ाई हजार की हुई।
पुलिस कमिश्नर की अफसरों से यह मुलाकात तो सरकारी खजाने पर बहुत ही महंगी साबित हुई है।
कमिश्नर को खुश करने का चक्कर-
हालांकि एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि दक्षिण जिले में आयोजित पहले ही कार्यक्रम की चकाचौंध देख कर ही कमिश्नर राकेश अस्थाना ने साफ कहा था कि इतना सब तामझाम करने की कोई जरूरत नहीं है कार्यक्रम सादगी भरा रखो। मैं साधारण कुर्सी पर भी बैठ सकता हूं। कोई अनावश्यक खर्च करने की जरुरत नहीं है।
लेकिन इसके बावजूद आईपीएस अफसरों ने कमिश्नर को खुश करने/ चापलूसी के चक्कर में सरकारी खजाने को लुटा दिया।
कमिश्नर जांच कराएं तो पोल खुलेगी-
कमिश्नर राकेश अस्थाना को इस मामले की पूरी जांच करानी चाहिए। बिलोंं का भुगतान पूरी छानबीन करने के बाद ही किया जाना चाहिए।
यह भी मालूम करना चाहिए कि एक ही टैंट वाले/कैटरर से सारे कार्यक्रम कराने के पीछे किन-किन आईपीएस अफसरों का हाथ है।
सिर्फ़ 600-700 व्यक्तियों के भोजन और टैंट आदि पर ही तीस लाख रुपए लुटा देने की जांच ईमानदारी से की जाए तो असलियत सामने आ जाएगी।
कमिश्नर को यह भी खुलासा करना चाहिए किस नियम- प्रक्रिया के तहत लाखों रुपए खर्च किए गए। किस मद या खाते से इस रकम का भुगतान किया गया।
कमिश्नर यह भी जांच कराएं कि पुलिस के ज्यादातर कार्यक्रम एक ही टैंट वाले/ कैटरर से क्यों कराएं जाते हैं?
इन तीनों कार्यक्रमों के लिए भोजन और टैंट आदि का इंंतजाम टैंटवाले राहुल मेंहदीरत्ता से कराया गया।
सभागार का उपयोग-
नए बने पुलिस मुख्यालय में सभागार भी बनाया गया है जिसमें तीन-चार सौ व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था हैं।
इस सभागार का सदुपयोग करने की बजाए लाखों रुपए लुटा देने से आईपीएस अफसरों की काबिलियत पर भी सवालिया निशान लग जाता है। कमिश्नर के दौरे पर लाखों रुपए लुटाने से तो अच्छा यह होता कि वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से ही पुलिस अफसरों से संवाद/संपर्क कर लिया जाता।
शर्मनाक-
एक अफसर का कहना है कि कोरोना के दौर में जब लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। ऐसे मे आईपीएस अफसरों का इस तरह सरकारी खजाने को लुटाना शर्मनाक है।
सिर्फ़ चाय,समोसा और बिस्कुट से भी काम चल सकता था।
अफसर की थाली और सिपाही की थाली?
एक वरिष्ठ अफसर कहना है कि आईपीएस अफसरों की यह कैसी मानसिकता हैं कि अफसरों के खाना पर तो दो- ढ़ाई हजार रुपए प्रति प्लेट तक खर्च किया जाता है।
दूसरी ओर किसी भी सुरक्षा इंतज़ाम में तैनात सिपाहियों के लिए जो खाना दिया जाता है। वह सरकार द्वारा निर्धारित 75 रुपए मूल्य का ही होता है। इतना बड़ा अंतर अमानवीय और भेदभावपूर्ण हैं।
एसएचओ से फटीक कराना बंद हो-
सरकारी खजाने को लुटाने से रोकने के साथ ही
कमिश्नर राकेश अस्थाना अगर वाकई पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले यह कदम उठाना चाहिए कि किसी भी कार्यक्रम के लिए एसएचओ से खर्च नहीं कराना चाहिए। एसएचओ जाहिर सी बात हैं अपनी जेब से तो खर्च करेगा नहीं , वह किसी से फटीक कराएगा या वसूली करेगा। .
भ्रष्टाचार के लिए आईपीएस जिम्मेदार-
उदाहरण के लिए कई डीसीपी मीडिया में अपनी छवि बनाने के लिए के लिए जिलों में पत्रकारों के लिए क्रिकेट मैच के आयोजन करते हैं। जिसमें खिलाड़ियों की किट और भोजन आदि पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। इसके लिए एसएचओ से फटीक कराई जाती है। जाहिर सी बात है कि अगर एसएचओ, आईपीएस के ऊपर एक रुपया भी खर्च करेगा तो अपने लिए तो उसे सौ रुपए वसूलने की छूट मिल जाती हैं। इसी वजह से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।
सच्चाई यह है कि एसएचओ से अपने निजी कार्यक्रम पर पैसा खर्च करवाने वाला आईपीएस ईमानदार हो ही नहीं सकता। जो पेशेवर रुप से काबिल नहीं होता वह ही मीडिया में अपनी छवि बनाने के लिए यह सब काम करता है। काबिल आईपीएस सिर्फ़ अपने काम से काम रखता है। उसका का तो काम ही बोलता है।
शान दिखाने वाले आईपीएस-
कुछ आईपीएस अफसर तो अपनी शान शौकत और रुतबा दिखाने के लिए दफ्तर की साज सज्जा पर सरकारी खजाने को लुटाते है। नए बने पुलिस मुख्यालय में भी कई वरिष्ठ आईपीएस ने अपने दफ्तरों को बड़ा बनवाने के लिए सरकारी खजाने को लुटाया है। यह अफसर ऐसी हरकत करते हैं जैसे कि पूरी जिंदगी इसी दफ्तर में गुजारेंगे।