समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 17 सितम्बर। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त में त्याग का मार्ग निर्धारित किया गया है। एक याज्ञिक जीवन दूसरों के कल्याण के लिए किये गये त्याग कार्यों से भरपूर होता है। ऐसे याज्ञिक जीवन को ही वह सत्य ज्ञान प्राप्त होता है जो आँखों से देखे और कानों से सुने ज्ञान के समान होता है – सत्यः चित्रा श्रवस्तमः (ऋ0 1.1.5)
जब व्यक्ति त्याग के मार्ग पर अग्रसर होता है तो उसका अपना कल्याण स्वयं वह सर्वोच्च ऊर्जा सुनिश्चित करती है -यद् अंग दाशुषे त्वम् अग्ने भद्रम् करिष्यसि। (ऋ0 1.1.6)
अतः लगातार अपने जीवन को पूरी विनम्रता के साथ दूसरों के कल्याण के लिए प्रयोग करते रहो।
इससे निश्चित रूप से आप दिन प्रतिदिन भगवान की अनुभूति के निकट होते जायेंगे – उप त्वा अग्ने दिवे-दिवे। (ऋ0 1.1.7)
यही मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।