भारत का संविधान एक दूरदर्शी दस्तावेज है जो हमारे बुनियादी मूल्यों को दर्शाता है: उपराष्ट्रपति

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3 नवंबर। उप राष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज लोगों से भारत के संविधान की प्रस्तावना के शब्दों को अर्थ देने का आह्वान किया।

भारतीय संविधान को एक दूरदर्शी दस्तावेज बताते हुए, जो भारत के बुनियादी मूल्यों को दर्शाता है, श्री नायडू ने कहा कि यह नागरिकों को विशेष मौलिक कर्तव्यों की याद दिलाते हुए मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। उन्होने साथ ही कहा “हमारे संविधान की प्रस्तावना में, हमने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का और अपने सभी नागरिकों के लिये न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुरक्षित करने का संकल्प लिया है। यही तो भारत है।”

“भारत के राष्ट्रीय बुनियादी मूल्य, रुचियां और उद्देश्य” विषय पर 61वें राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (एनडीसी) पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, वैश्विक विकास और पर्यावरण संरक्षण भारत के मूल्यों के प्रमुख तत्व हैं। उन्होंने कहा कि भारत के हित और उद्देश्य पिछली कई शताब्दियों में प्रचलित और इस दौरान स्थापित इसकी सार्वभौमिक सोच से तय होते हैं। उन्होंने कहा, ” हम जिस भारत का सपना देख रहे हैं, उसे साकार देने के लिये आगे बढ़ते वक्त हमें इन उद्देश्यों से नजर नहीं हटानी चाहिये” श्री नायडू ने भारतीयों को अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानने और उन्हें और मजबूत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने स्थिति के अनुसार ढलने, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी होने की आवश्यकता पर बल दिया।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि अन्य पुरानी सभ्यताओं के विपरीत, जो समय के साथ नष्ट हो गयीं, भारतीय सभ्यता अपने मूल्यों, संस्कृति, विरासत और परंपराओं के कारण विदेशी आक्रमणों के बावजूद बची रही। उन्होंने कहा कि भारतीय ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना में विश्वास करते हैं जिसका अर्थ है ‘पूरी दुनिया एक परिवार है’ और उन्होने हमेशा सार्वभौमिक भाईचारे का प्रचार किया है और दूसरों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत की है। यह उल्लेख करते हुए कि भारतीय सभ्यता ने हमेशा पूरी दुनिया की भलाई के लिए प्रार्थना की है, श्री नायडू ने कहा कि अनादि काल से, भारत ने अपने ज्ञान, कौशल और प्रथाओं को दुनिया भर के साथ साझा किया है ताकि अन्य भी लाभ उठा सकें। उन्होंने कहा, “शून्य से योग तक, विभिन्न क्षेत्रों में भारत का योगदान, ‘शेयर एंड केयर’ के नैतिक गुण के साथ, बहुत बड़ा रहा है।”

राष्ट्र की प्रगति को बाधित करने वाली नकारात्मक शक्तियों के उद्भव की ओर संकेत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमें इन विनाशकारी ताकतों को हराने के लिए अपनी रक्षा पंक्ति को तैयार करना होगा। हम आतंकवाद, विद्रोह और अस्थिर करने वाली नफरत और कट्टरता से भरी बातों के खतरे को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।” यूनेस्को के संविधान की प्रस्तावना का हवाला देते हुए, श्री नायडू ने कहा, “चूंकि युद्ध लोगों की सोच से ही शुरू होते हैं, इसलिये शांति की बातों को लोगों की सोच में ही गढ़नी होगी”। उन्होंने इन शब्दों को भारतीय मूल्य प्रणाली की एक प्रतिध्वनि कहा, जो मानती है, ‘ अगर हमें अपने आसपास की दुनिया को बदलना है तो हमें अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है ‘।

हिंसक विचारों और भावनाओं को दूर करने और दुनिया के देशों को एक साथ प्रगति की ओर ले जाने के लिये और अधिक आवाज उठाये जाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें ऐसे गठबंधन बनाने की जरूरत है जो शांति को बढ़ावा दें, रचनात्मकता का पोषण करें और लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ायें। उन्होंने कहा, “भारत ने हमेशा इसकी वकालत की है और यही इसे समकालीन समय में एक प्रासंगिक, विश्वसनीय आवाज बनाता है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि आत्मनिर्भरता के मंत्र से प्रेरित भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है और मित्र राष्ट्रों की मदद कर रहा है – चाहे वह उनके विकास में उनका समर्थन कर रहा हो,कोविड 19 महामारी जैसे संकटों से लड़ रहा हो या प्राकृतिक आपदाओं के बीच सहायता प्रदान कर रहा हो।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत को एक विशाल जनसांख्यिकीय लाभ का वरदान मिला है और हमें विभिन्न क्षेत्रों में देश की प्रगति को तेज करने के लिए विशाल मानव संसाधन क्षमता का पूरी तरह से दोहन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पास उच्च गुणवत्ता वाले जीवन जीने की इच्छा रखने वाले लोगों के साथ एक सक्षम, आत्मविश्वास और मजबूत राष्ट्र बनने का साझा उद्देश्य है। उन्होंने कहा, “अगर हम सभी ‘टीम इंडिया’ के रूप में काम करना शुरू कर दें और अपने राष्ट्र के विकास के लिए खुद को समर्पित कर दें, तो वह दिन दूर नहीं जब हम एक बार फिर से ‘विश्वगुरु’ के पद पर पहुंच सकते हैं।” श्री नायडू ने न केवल हमारे देश के लोगों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए अपनी ताकत का उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हमें याद रखना चाहिए कि भारत तब चमकता है जब भारत के 135 करोड़ लोग इसके साथ चमकते हैं।”

यह देखते हुए कि भारत अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों, मिसाइलों, विमानों और अन्य रक्षा उपकरणों का निर्माण कर रहा है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में रक्षा उपकरणों का भी अग्रणी निर्माता बनने की क्षमता है।

उपराष्ट्रपति ने प्रतिष्ठित संस्थान की विरासत का हिस्सा बनने के लिए 61वें राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (एनडीसी) पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों को बधाई दी। दीपावली के आगामी त्योहार के लिए अपनी बधाई देते हुए, श्री नायडू ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि आपकी दीपावली अदभुत होगी और आप इस कॉलेज में अपने प्रशिक्षण की सुखद यादें वापस ले कर जायेंगे और यहां प्राप्त ज्ञान और अंतर्दृष्टि का उपयोग अपने आसपास की दुनिया को रोशन करने और आप जहां भी हों वहीं शांति, सद्भाव और अच्छा उत्साह लाने के लिये करेंगे।”

बाद में प्रतिभागियों के सवालों का जवाब देते हुए, उपराष्ट्रपति ने मूल्यों में आई गिरावट पर अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि विभिन्न क्षेत्रों के नेताओं को अपने आचरण के माध्यम से दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए। उन्होंने राजनीति और सार्वजनिक जीवन में गिरते मानकों पर निराशा व्यक्त की।

पिछले 75 वर्षों में भारत की विभिन्न उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि बुनियादी ढांचे के निर्माण, बचाव और सुरक्षा प्रदान करने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के अलावा, भारत ने शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराए हैं और शासनों को बदला है ।

भारत एक शांतिप्रिय देश है और उसने कभी भी आक्रामकता की महत्वाकांक्षाओं को पोषित नहीं किया।

युवाओं को लेकर उनकी सलाह के बारे में पूछे जाने पर, श्री नायडू ने कहा कि उन्हें सकारात्मक रहना चाहिए, अनुशासित रहना चाहिए और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

एयर मार्शल डी. चौधरी एवीएसएम वीएम वीएसएम, 61वें नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) कोर्स के प्रतिभागी और अन्य अधिकारी वर्चुअल इवेंट में मौजूद थे।

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