रेलवे ट्रैक पर क्‍यों डाले जाते हैं छोटे-छोटे पत्‍थर, जानिए इसके पीछे क्‍या है विज्ञान

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8 दिसंबर। कुँवर विजन। रेलवे ट्रैक के नीचे और अगल-बगल आपने छोटे-छोटे पत्‍थर पड़े देखे होंगे. कभी आपने सोचना है कि रेल की पटरी पर इन पत्‍थरों का क्‍या काम है. इन पत्‍थरों को रेलवे ट्रैक पर डालने के पीछे भी एक विज्ञान है. इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है, जानिए रेलवे ट्रैक पर पत्‍थर क्‍यों डालते जाते हैं…

पत्‍थरों का विज्ञान समझने के लिए पहले पटरी की बनावट को समझना पड़ेगा. ज्‍यादातर लोगों को लगता है जमीन पर सीधे पटरी बिछा दी जाती हैं और पत्‍थर डाल दिए जाते हैं, पर ऐसा नहीं है. पटरी दिखने में जितनी साधारण लगती है, यह उतनी सामान्‍य नहीं होती.अगर इसे करीब से देखेंगे तो पाएंगे कि इसे कई लेयर के साथ तैयार किया जाता है.

पटरी के नीचे लम्‍बी-लम्‍बी प्‍लेट्स होती हैं, जिसे स्‍लीपर कहते हैं. इनके नीचे छोटे-छोटे पत्‍थर होते हैं, इसे बैलास्‍ट (गिट्टी) कहते हैं. इनके नीचे मिट्टी की दो लेयर होती हैं. यही वजह है कि रेलवे ट्रैक जमीन से थोड़ा ऊंचा दिखाई देता है. जब ट्रेन पटरी पर चलती है तो यही पत्‍थर, स्‍लीपर और बैलास्‍ट रेल के वजन को संभालने का काम करते हैं.

अब समझते हैं कि पटरी पर दिखने वाले छोटे-छोटे पत्‍थरों का वाकई में काम क्‍या होता है. विज्ञान कहता है, जब ट्रेन पटरी पर चलती है तो एक तरह का कम्‍पन्‍न पैदा होता है. कम्‍पन्‍न के कारण पटरी को फैलने से रोकने का काम यही नुकीले पत्‍थर करते हैं. अगर ये पत्‍थर गोल होते तो कम्‍पन्‍न नहीं रोक पाते और पटरी फैल सकती थी. इसलिए इसे नुकीले आकार में बनाया जाता है.

इसके अलावा भी पत्‍थरों की एक खूबी है. पटरियों पर पड़े इन पत्‍थरों के कारण ट्रैक पर पौधे नहीं उग पाते और न ही ये ट्रेन को बाध‍ित कर पाते. इन्‍हीं पत्‍थरों के कारण ट्रैक ऊंचा होता है, इसलिए जब भी बारिश के मौसम में पानी भरता है तो ट्रैक नहीं डूबता और आपका सफर लगातार जारी रहता है

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