पार्टी में अपने विरोधियों को कैसे चित्त किया हरीश रावत ने

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त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

जब से तेरा ऐतबार किया है
एक ही जुर्म सौ बार किया है”

हरीश रावत की सियासी बाजीगरी ऐन वक्त काम आ गई, कभी दर्देदिल को जुबां देते उन्होंने अपने हाईकमान से शिकायत की थी कि ‘उनके हाथ-पैर बांध कर समुद्र में उनसे तैरने को कहा जा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं, जिनके आदेश पर तैरना है।’ दरअसल, उनके निशाने पर पार्टी के ही अपने मित्र सखा थे जो उनकी राहों में कांटे बिछा रहे थे, मसलन यशपाल आर्य, देवेंद्र यादव आदि-आदि। उत्तराखंड के कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव उन्हें भरोसे में लिए बगैर बड़े फैसले ले रहे थे, जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो वे नाराज़ होकर घर बैठ गए। तब जाकर हाईकमान की तंद्रा टूटी, उन्हें मनाने का जिम्मा प्रियंका गांधी ने उठाया, प्रियंका ने रावत से बात की, उन्हें दिल्ली तलब किया। यही वजह थी कि राहुल से मुलाकात के ऐन पहले रावत और प्रियंका की बंद दरवाजे में दो घंटे की मुलाकात हुई और बीच का रास्ता निकाला गया। पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी पहले से ही रावत की तरफदारी कर रही थीं। रावत से मुलाकात के बाद प्रियंका ने मां और भाई से बात की और इसके बाद ही आगे का ‘रोड मैप’ तय कर दिया गया। यह भी तय हो गया कि उत्तराखंड चुनाव की बागडोर हरीश रावत के हाथों में होगी और उनका नेतृत्व पार्टी में सबको मान्य होगा, अगर प्रदेश में कांग्रेस का बहुमत आया तो मुख्यमंत्री का फैसला निर्वाचित विधायक गण करेंगे। एक सीनियर नेता पूरे हालत पर नज़र रखेगा और वह प्रदेश में समन्वय का भी कार्य भी देखेगा। इस काम के लिए पार्टी के दो सीनियर नेताओं अंबिका सोनी और आनंद शर्मा के नाम की चर्चा है। प्रियंका राहुल से मिलने के बाद रावत स्वयं अंबिका से मिलने पहुंचे जो इन कयासों को बल देता है। सोनिया का मानना था कि उत्तर भारत के ज्यादातर बड़े चेहरे पार्टी के असंतुष्ट गुट जी-23 का हिस्सा हो गए हैं सो ऐसे में रावत की निष्ठा गांधी परिवार से जोड़े रखना जरूरी है। रावत के एक विरोधी आर्येंद्र शर्मा जो एक साथ दो पदों पर काबिज थे यानी उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष, तो उनसे एक पद छोड़ने को कहा गया है। देवेंद्र यादव से जुड़े हजारों करोड़ के जमीन घोटाले के कथित कागजात राहुल तक पहुंचा दिए गए हैं, चुनाव के बाद गांधी परिवार इस पर संज्ञान ले सकता है। रावत के पार्टी छोड़ने की अटकलों के बीच उनके प्रबल प्रतिद्वंदी हरक सिंह रावत भाजपा छोड़ कांग्रेस में आने को तैयार बैठे थे और अपनी बहु के लिए लैंसडाउन की सीट चाहते थे और उमेश शर्मा काऊ भी हरक सिंह की राह चलने को तैयार थे। भाजपा ने जैसे ही देखा कि उमेश काऊ और हरक सिंह पलटी मारने वाले हैं, आनन-फानन में कोटद्वार में मेडिकल कालेज खोलने की घोषणा कर दी गई। पर फिलहाल तो हरीश रावत की बल्ले-बल्ले है, उन्होंने अपने सियासी स्वांग से पार्टी में अपने विरोधियों को वाकई धूल चटा दी है।

केजरीवाल  को गुस्सा क्यों आता है?

सियासी स्वांग भरने में इन्हें महारथ हासिल है और जब बात दिल्ली की जनता की चिंताओं से जुड़ी हो तो अरविंद केजरीवाल सियासी नेपथ्य के सन्नाटों को एक नया चेहरा देने की सिद्दहस्ता रखते हैं। बात बुधवार की है, ओमिक्राॅन की दस्तक और कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं को निर्मूल बनाने के इरादे से केजरीवाल सीएम आॅफिस में एक अहम बैठक ले रहे थे, इस बैठक में दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत, स्वास्थ्य सचिव, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और डीटीसी के एमडी शामिल थे। केजरीवाल ने कोरोना की दूसरी लहर के सबक से सबको बावस्ता कराते हुए कहा कि उस वक्त हमें आॅक्सीजन टैंकर की सबसे ज्यादा किल्लत उठानी पड़ी थी, क्योंकि दिल्ली से लगे पड़ोसी राज्यों खास कर हरियाणा ने अपने यहां से आॅक्सीजन टैंकर दिल्ली पहुंचने नहीं दिए, उन्हें अपने राज्यों में ही लगा दिए। तब दिल्ली सरकार ने यह फैसला लिया था कि वह पांच आॅक्सीजन टैंकर अपने पैसों से खरीदेगी। तब केजरीवाल ने ट्रांसपोर्ट कमिश्नर से जानना चाहा कि अभी तक यह टैंकर खरीदे क्यों नहीं गए हैं, इस बाबत कमिश्नर ने सीएम को बताया कि इसके लिए टेंडर आमंत्रित किए गए थे, पर अब तक किसी पार्टी को टेंडर अवार्ड नहीं हुआ है, ज्यादा तो मंत्री महोदय बता सकते हैं जो इस टेंडर कमेटी को हेड कर रहे हैं। यह सुनते ही सीएम का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा, उन्होंने अपने मंत्री को किंचित चेतावनी देने वाले अंदाज में कहा-’आज ही टेंडर अवार्ड होना चाहिए, मैं आपको शाम छह बजे तक का समय देता हूं।’ पर होईए वही जो राम रचि राखा, अगर टेंडर अवार्ड भी हो गया तो टैंकर मिलने तक में दो-तीन महीने का वक्त लग जाएगा, क्या कोरोना की तीसरी लहर इस बात का इंतजार कर सकती है?

कौन सी है यह पार्टी?

यूपी की एक प्रमुख पार्टी जिसने भाजपा के समक्ष घुटने टेक दिए हैं, चुनावी सेंसेक्स में लगातार इसका ग्राफ गिरता जा रहा है। क्योंकि इस बात का अब यूपी में खासा प्रचार हो चुका है कि यह पार्टी 22 के चुनावों में भाजपा की ’बी टीम’ बन कर खेलेगी। यही वजह है कि पार्टी की जमीनी ताकत और इसके सियासी प्रभुत्व में भी लगातार गिरावट आई है। सूत्रों की मानें तो पार्टी ने शुरूआत के छह टिकट 4 करोड़ प्रति विधानसभा की दर से नीलाम किया था, फिर यह दर घट कर 100 सीटों पर 1.50 से 3 करोड़ रूपयों तक चली गई, समय आगे बढ़ा तो इस पार्टी की जीत की संभावनाएं और पीछे रह गई, अब एक टिकट के लिए 65 लाख रूपए मांगे जा रहे हैं। जिसमें से 50 लाख पार्टी फंड और 15 लाख रैली में देने को कहा जा रहा था। फिलहाल 150 सीटें शेष रह गई है, पर पार्टी टिकट के बोली लगाने वाले दावेदार भी नदारद हैं, पैसा देकर टिकट लेने वाले अब 35-40 लाख रूपए खर्च को भी फिजूलखर्ची मान रहे हैं।

नए अवतार में राहुल

इन दिनों राहुल गांधी एक बदले अवतार में नज़र आ रहे हैं। अब पार्टी नेताओं से राहुल का आॅफिस नहीं, स्वयं राहुल संपर्क साध रहे हैं। अब पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं को ’आॅफिस राहुल’ से दिशा-निर्देश आने बंद हो गए हैं। अलंकार सवाई हों या कौशल विद्यार्थी इन्हें फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। राहुल स्वयं फोन कर वांछित व्यक्तियों से बात कर रहे हैं। सिद्धू को डपटने से लेकर, उत्तराखंड में मची कलह पर पानी डालने में राहुल ने स्वयं पहल की। हां, मुकुल वासनिक जरूर इन दिनों राहुल के इर्द-गिर्द कदमताल करते नज़र आ रहे हैं और राहुल उनकी सलाहों पर कान भी धर रहे हैं।

 

 

 

 

अखिलेश करीबियों पर केंद्र का शिकंजा

यूपी में जैसे ही चुनावों ने दस्तक दी है सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के करीबियों पर इंकम टैक्स के छापे जारी हैं। पिछले दिनों अखिलेश के पूर्व ओएसडी जैनेंद्र यादव ऊर्फ नीटू, मनोज यादव, पार्टी प्रवक्ता राजीव राय और बिजनेस मैन राहुल भसीन पर दनादन इंकम टैक्स की रेड पड़ी। पर सबसे खास बात तो यह कि इस रेड की भनक पूर्व में ही मीडिया को लग गई थी, एक स्थानीय अखबार ने तो बकायदा जैनेंद्र यादव यानी नीटू के घर पड़ने वाली इंकम टैक्स रेड की खबर दो-तीन दिन पूर्व ही छाप दी थी। जब इंकम टैक्स वाले नीटू के घर पहुंचे तो उन्हें ज्यादा कुछ छापे में नहीं मिल पाया तो उन्होंने नीटू के घर की फाॅल्स सीलिंग और एसी की डक्टिंग तक तोड़ दी, इस पर नीटू ने खूब हाय-तौबा मचाई, वे चाहते थे कि इस तोड़-फोड़ की वीडियोग्राफी हो जिसे मीडिया में जारी किया जा सके पर जांच एजेंसियों ने ऐसा होने नहीं दिया। नीटू करीबियों का दावा है कि इस रेड में उन्हें मात्र एक लाख चार हजार कैश और 400 ग्राम सोना मिला, इस आभूषणों के खरीद के बिल भी नीटू के परिवार वालों ने इंकम टैक्स वालों को सौंप दिए। पर जांच एजेंसियों को तब बड़ी कामयाबी मिली जब एक गुटखा कारोबारी से मिले सूत्र पर अखिलेश करीबी और इत्र कारोबारी पीयूष जैन के यहां छापे पड़े। जहां बड़ी मात्रा में नकदी और सोना बरामद हुआ। नकदी 150 करोड़ के ऊपर थी, जब नोट गिनने वाली चार मशीनों से काम नहीं चला तो इंकम टैक्स वालों को एक बैंक से नोट गिनने के लिए कर्मचारियों को बुलाना पड़ा। अब भाजपा का दावा है कि ये पैसे सपा के चुनावी फंड का ही एक हिस्सा थे।

योगी को कौन कमजोर करना चाहता है?

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक प्रशासक के तौर पर कठोर और त्वरित निर्णय के अलावा अपने ठाकुर प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं। यह भी एक सर्वविदित सत्य है कि उनके और पार्टी महासचिव सुनील बंसल के दरम्यान एक खुली जंग छिड़ी हुई है। योगी को इस बात का बखूबी इल्म है कि बंसल को उनके खिलाफ हवा कौन दे रहा है? सो, जैसे ही बंसल के नेतृत्व में पार्टी ने एक अहम निर्णय लिया कि ठाकुर विधायकों के खिलाफ जनता में असंतोष को देखते हुए इस बार महज़ 30-32 ठाकुर प्रत्याषी ही मैदान में उतारे जाएंगे तो योगी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा, उन्होंने अपने भरोसेमंद ठाकुर विधायकों की एक गुप्त बैठक बुला कर बंसल के इरादों से पर्दा हटाया और नई रणनीति बुनने की बात कही। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने थोकभाव में ठाकुर उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिसमें से 56 ठाकुर विधायक निर्वाचित हुए थे, योगी ने इनमें से 6 को मंत्री भी बनाया। योगी वफादारों का मानना है कि ठाकुरों के टिकट काट कर पार्टी का एक वर्ग 2022 में योगी के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को कमजोर करना चाहता है, पर योगी ऐसा होने नहीं देंगे।

क्या ऐसे खिलेगा कमल?

किसान बिल वापसी के बाद भी पश्चिमी यूपी में भगवा ग्राफ ऊपर नहीं चढ़ पा रहा। खुद पार्टी के अंदरूनी जनमत सर्वेक्षण के परिणाम इस बात की चुगली खा रहे हैं। रालोद नेता जयंत चौधरी की चुनावी रैलियों में झमाझम भीड़ को देखते हुए भाजपा अब उन पर डोरे डालना चाहती है जिससे कि चुनाव के उपरांत अखिलेश को एक हाई वोल्टेज का झटका दिया जा सके। जयंत को साधने के लिए पार्टी ने अपने युवा चेहरे और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को लगा दिया है। अनुराग और जयंत में पुरानी व प्रगाढ़ मित्रता है। वहीं ब्रिटिश राज्य की सिद्ध नीति ’फूट डालो व शासन करो’ की नीति को आत्मसात करते भाजपा ने यादव परिवार में भी सेंध लगाने के भी प्रयास किए हैं। इस नीति के तहत चाचा-भतीजा यानी शिवपाल और अखिलेश पर निशाना साधा गया है। इस बात के घोषित परिणाम यादवों के गढ़ मैनपुरी में देखने को मिला, जब विजय यात्रा के होर्डिंग्स-पोस्टर-बैनर में तो अखिलेश-शिवपाल साथ-साथ चस्पां थे, पर विजय यात्रा के रथ पर अकेले अखिलेश नज़र आए, शिवपाल ने इससे दूरी बना ली। यात्रा में शिवपाल के शामिल नहीं रहने पर अखिलेश की सफाई किसी के पल्ले नहीं पड़ी, जब उन्होंने कहा-’पार्टी का गठबंधन जरूर हुआ है, पर कार्यक्रम अभी तय नहीं हुए हैं।’

और अंत में

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी चुनाव को फिलहाल टालने का सुझाव दिया है। सूत्रों की मानें तो अगर अभी चुनाव टलते हैं तो फिर जुलाई माह में ही यह संभव है। वैसे भी फिलहाल यूपी में भाजपा को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है,

उनके अंदरूनी जनमत सर्वेक्षण के नतीजे भी कमल के हौसले पस्त करने वाले हैं। सो, भाजपा का एक वर्ग फिलहाल चुनाव टाल देने में ही समझदारी मानता है, वहीं पार्टी का एक वर्ग ऐसा  भी है जिसका कहीं शिद्दत से मानना है कि ‘भाजपा चुनावजीवी पार्टी है, सो चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, चुनाव तो तय समय पर होने ही चाहिए।’

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