नौनिहाल बीमार पहले करें घरेलू उपचार 

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अनीता सिंह
अनीता सिंह

नौनिहाल घरों की रौनक हैं जहां इनके साथ इनके माँ पिता इनको अच्छे से अच्छा परिवेश देते हुए इनकी परवरिश में कोई कोर कसर नहीं छोडना चाहते हैं।  वहीं इनके नाना नानी  या दादा दादी अन्य नजदीकी रिश्ते भी इनकी खैरियत के लिए हमेशा चिंतित दिखाई पड़ते हैं । यह स्वाभाविक भी है, और वैश्विक स्तर पर इतना प्यार दुलार और रखरखाव हर बच्चे को मिलना भी चाहिए । लेकिन बात तब विपरीत हो जाती है जब हम इस प्यार दुलार में खुद को इतना भावुक और कमजोर कर लेते हैं कि बच्चों का थोड़ा सा ही अनमन होने पर खुद को असहाय समझने लगते हैं ।

हम शायद यह भूल जाते हैं कि दिन रात खेल कूद करने वाले, हर प्रकार से सक्रिय बच्चे भी मौसम के बदलाव से या किसी अन्य बीमार व्यक्ति के संपर्क में आकार या कुछ खान पान आदि की अनियमता के कारण कभी भी बीमार पड़ सकते हैं । हम नहीं सोच पाते हैं कि उनकी यह बीमारी एक अस्थाई परेशानी है और वे इससे जल्दी ही उबर कर पहले की तरह चैतन्य स्मार्ट और एक्टिव हो जाएंगे । बल्कि हम इससे स्वयं उद्दिग्न , चिंतित और बेहद भयभीत हो कर वो करने के उपक्रम करते हैं जो कि बच्चों को तत्काल असहज, पैनिक और परेशानी में डालने वाला काम हो जाता है । यह कौन सा तेज एक्शन है कि बच्चों की थोड़ी सी बीमारी, सर्दी, जुकाम, हरारत ,चोट खरोंच आदि पर हाय तौबा मचाते हुए क्लीनिक या डाक्टरों की ओर कपल भागते दिखें ।

यहाँ मै इस लेख के माध्यम से नौनिहालों के लिए कोई डाक्टरी सलाह या वैद्य का नुस्खा नहीं बताने जा रही हूँ बल्कि आपको उस समय काल में ले जाकर खड़ा करना चाहती हूँ जब संयुक्त परिवारों में और अनपढ़ माता पिता की परवरिश के दौर में भी खुशहाल और स्वस्थ मस्त बचपन सबने बिताया हुआ अनुभव किया है और देखा भी है । उस काल में भी यही ऋतुए थीं और यही जन समुदाय था । आज के मुक़ाबले पर्यावरण की अशुद्धता कम या नहीं के बराबर होने से व्यक्तिगत हाई-जीन पर अतिरिक्त दबाव नहीं था । ऐसी पारिवारिक स्थितियों में बच्चों की सभी बीमारियों का इलाज नानी – दादी के नुस्खे द्वारा घर की रसोई या आँगन में खड़ी तुलसी और नीम के पेड़ या बेर की झड़ियों, सरकंडे के पत्तों आदि से हो जाया करता था ।

मै इस बात को अच्छी तरह समझती हूँ कि ग्रामीण और कस्बाई परिवेश आज भी वही है जैसा पहले हमारे समय में था । यह बात और है कि हम आज से 20 वर्ष पहले भी मेट्रोज और महानगरों में उसी परंपरा और फार्मूले को अपनाते रहे जो हमारे माता पिता अभिभावकों ने हम पर आजमाया था । यानि अपने बच्चों के स्वास्थ्य हेतु, हमने महानगरों और मेट्रो सिटीज में भी नीम की पत्तियों, तुलसी दल, बकरी के दूध , गाय के दूध के इंतिज़ाम किए थे ।

यहाँ मैं वर्तमान समय में बच्चों की देखभाल और परवरिश कर रहे पढे लिखे बौद्धिक और सचेत माता-पिता को उनके द्वारा बच्चों के प्रति प्रेम वात्सल्य समर्पण की तारीफ करते हुए, बस उन्हे उनकी फर्ज अदायगी में विवेक न खोने की सलाह ही देना चाहती हूँ ताकि जो मैं महसूस कर रहीं हूँ वह बात उन तक भी पहुंचा सकूँ । सबसे पहले मैं नौनिहालों की परवरिश में हो रही सबसे बड़ी चूक की ओर आज के माता पिता को केन्द्रित करूंगी । वर्किंग कपल से मेरा कहना है कि आपके पास दो वेतन प्रतिमाह प्राप्त करने की महत्वकांक्षा ने बच्चों को मिलने वाला आपका बेशकीमती समय उनसे छीन लिया है, जिससे बच्चे एक प्रकार के आंतरिक भय और सपोर्ट की कमी महसूस करते हुए शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं । इसका परिणाम यह हो रहा है कि बच्चे अच्छी देखभाल और टानिक तथा पौष्टिक आहार के बावजूद मौसम की मार नहीं झेल पाते तथा उनकी शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर पड़ रही है । बच्चों को डाक्टर के पास ले जाकर आप फौरी तौर पर उस बीमारी का इलाज करा रहें हैं जो बीमारी आपके स्नेह स्पर्श और थोड़ी सूझ बूझ से ही ठीक हो जाने वाली है ।

हमें आर्थिक संपन्नता अपनी मजबूती पर खर्च करनी चाहिए न की महंगी और अनावश्यक उन एलोपेथ दवाइयों पर जिनके साइड एफेक्ट नौनिहालों को कई सप्ताह तक सामान्य नहीं होने देते । सलाह है कि आप एडवांस में ही चाहें तो बच्चों के डाक्टर से अपने बच्चों की कुछ आम बीमारियों की सूची बना कर, कुछ जरूरी दवाएं सिरप रूप में घर पर ही रखें, जैसे हरारत में पैरासीटोमोल, मोच – मसल दर्द में झंडू बोम या वेलोनी, चोट–खरोंच में बोरोपलस आदि आदि । इस विवरण को महत्वपूर्ण डायरी या कापी में हमेशा के लिए सुरक्षित रखें और समय समय पर अपडेट भी करते रहें । शुरुआती तौर पर कुछ घरेलू नुस्खे आजमा कर यदि आप उक्त घर पर रखी दवाओं का सही निर्देशों और मात्रा में प्रयोग करने की आदत डालेंगी तो निश्चित रूप से अस्पतालों के चक्कर और पोस्ट मेडिसिन के दुष्प्रभाव से बच्चों के मन में और उनके कोमल शरीर में होने वाला बड़ा नुकसान होने से बचा जा सकता है ।

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