*कुमार राकेश
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ संबित पात्रा ने ट्विटर पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर एक तंज कसा है .वो तंज इस प्रकार है -अखिलेश जी,हमारे सोशल मीडिया के योद्धाओ से डरिये मत!आपको भी बराबर मौका मिलेगा लड़ने और हारने का ..जैसा कि सबको पता है अखिलेश ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा है कि डिजिटल प्लेटफोर्म पर भाजपा हावी है.तो क्या अखिलेश वास्तव में अन्दर से डर गए है? क्या वो डर हार का है? क्या वे इस लडाई के लिए तैयार नहीं थे? यदि हाँ तो डर कैसा! यदि कही कमी है तो उन्होंने इस नए माध्यम को गंभीरता से क्यों नहीं लिया?
गौरतलब है उत्तर प्रदेश में 10 फ़रवरी से 7 मार्च तक 7 चरणों में चुनाव सम्पन्न होने जा रहे हैं.8 जनवरी को केन्द्रीय चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश सहित अन्य 4 राज्यों में चुनाव कार्यक्रम घोषित कर दिया है. चुनाव आयोग ने कोरोना की तीसरी वेव की वजह से 15 जनवरी तक किसी भी प्रकार के प्रचार-शैली को निरस्त कर दिया है.कोई भी पार्टी सिर्फ घर घर जाकर चुनाव प्रचार कर सकते है ,वो भी कोरोना दिशा निर्देशों की पालना के साथ.
लगता है अखिलेश अपने बयान से ही घिर गए हैं.हार का डर उन्हें सताने लगा है.अखिलेश यादव को एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं.वो जो भी आरोप भाजपा और उनकी योगी सरकार पर लगा रहे हैं,सब उल्टा पड़ता दिखाई पड़ रहा है.अखिलेश अभी तक सामान्य चुनाव होने की स्थिति मानकर चल रहे थे.लेकिन कोरोना ने उनके सभी आंतरिक और बाहय दाँव को पलट कर रख दिया.
अखिलेश के डिजिटल वार को लेकर आंतरिक चिंता वाजिब है.उनकी तुलना में सोशल मीडिया पर भाजपा कई गुना ज्यादा हावी है.साथ ही सामान्य मीडिया में भाजपा और उनके सहयोगी दलों की गहरी पकड़ है.भाजपा के साथ केन्द्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल के साथ कई छोटे दलों का साथ है.वही सपा के साथ राष्ट्रीय लोक दल और भाजपा सरकार में मंत्री रहे और अपने निहित स्वार्थ की वजह से पार्टी छोड़ चुके ओमप्रकाश राजभर जैसे एहसान फरामोश नेता हैं.
उत्तरप्रदेश में जमीनी स्तर पर जातिवाद भी एक मसला है,वही इस बार सभी वाद पर विकास का मसला सर चढ़कर बोल रहा है.ये भी साफ़ है कि कुछ भी हो कोई भी सम्वेदनशील जनता और वोटर प्रदेश में फिर से गुंडा राज के लिए तो वोट नहीं डालेगा.चाहे वो कुछ स्थानों पर बहन मायावती को वोट दे दे.लेकिन कभी दलित व पिछडी जाति के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाली बसपा में अपना रंग बदल लिया है.बसपा के लिए कभी नारा था-तिलक,तराजू और तलवार,इनको मारो जूते चार…अब बहन जी की पार्टी ब्राह्मणवाद की छतरी के नीचे आकर “हाथी नहीं गणेश है,ब्रह्मा,विष्णु ,महेश है.हाथी आगे जायेगा ,ब्राहमण शंख बजाएगा.ये सर्वविदित है कि प्रदेश में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की आड़ में चुनावी बिसात बिछायी गयी है.सन्यासी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी ठाकुर बताकर प्रचारित करने की अथक कोशिशे जारी हैं.
जहाँ तक समाजवादी पार्टी की बात है तो उनके खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की टिपण्णी काबिले गौर है.उनका कहना है -लाल टोपी वालो से बचकर रहिये.जब माफिया के भवन ध्वस्त किये जा रहे थे तो सपा को क्यों दर्द हो रहा था? अभी योगी की राज में दीवारों से रूपये निकाले जा रहे हैं.ऐसा क्यों ? सभी अपराधी प्रदेश छोड़कर अन्य स्थानों पर प्रश्रय लिए हुए हैं.जो भी हो,राजनीति के अपराधीकरण के सवाल पर अखिलेश यादव के पास कोई ठोस जवाब नहीं दिख रहा है.आधे अधूरे लैपटॉप बांटने वाले अखिलेश के पास आज भी पूरा जवाब नहीं है कि पूरे प्रदेश में लैपटॉप क्यों नहीं वितरित किया गया था?फिरौती और माफियागिरी को लेकर सपा नेता अखिलेश के पास कोई ठोस जवाब नहीं दिख रहा है.
सो ले-देकर जातिवाद की राजनीति का ही सहारा बचता है.परन्तु अब वो भी कैसे काम करेगा यदि 15 जनवरी के बाद कोरोना की स्थिति नहीं सुधरी? तब क्या होगा?हालांकि मोबाइल गाँव गाँव तक पहुँच गया है.पर उसको लेकर भाजपा की तुलना में प्रशिक्षित टीम अखिलेश के पास नहीं बतायी जा रही हैं. शायद वही दर्द अखिलेश जी के सर चढ़कर बोल रहा है.
वैसे योगी सरकार के समक्ष भी कई चुनौतियां है.पार्टी के अन्दर और बाहर भी.सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की वजह से उनकी कई अंदरूनी समस्याओ का निराकरण हो गया है.इसलिए पूर्व की तुलना में योगी अब निश्चिन्त मुद्रा में चुनावी जंग को जीतने में जुट गए हैं.
इसके अलावा भाजपा के लिए उत्तराखंड,गोवा,मणिपुर में भी कई चुनौतियां है,जिसके लिए पार्टी ने कमर कस ली है.पंजाब अब नए टर्न के साथ भाजपा के साथ हो सकता है.पंजाब करीब 25 वर्षो के बाद भाजपा के लिए एक नया राजनीतिक प्रयोग स्थल बन गया है.वहां पर संयुक्त अकाली दल और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह के पंजाब लोक कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में हैं .देखना है 10 मार्च को देश के ये 5 राज्य भारत की राजनीति में किस तरह का नया रंग भरते हैं???
*कुमार राकेश
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