मध्य प्रदेश डायरी – रवीन्द्र जैन

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रवीन्द्र जैन
रवीन्द्र जैन

 *क्या स्पेशल डीजी पर कार्रवाई होगी!

मप्र पुलिस के एक चालक को एक स्पेशल डीजी ने नियम विरुद्ध तरीके से अपने एआईजी से कहकर निलंबित करा दिया। चालक पर आरोप था कि वह विंग कमांडर अभिनन्दन की तरह मूंछें रखता है। मीडिया में यह खबर छपी तो गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने सीधे डीजीपी विवेक जौहरी को तलब किया। डीजीपी ने यह कहते हुए चालक को बहाल करा दिया कि जिस एआईजी ने चालक को निलंबित किया, उसे यह अधिकार ही नहीं था। चालक तो बहाल हो गया अब पुलिस मुख्यालय में चर्चा है कि 1987 बैच के आईपीएस रहे स्पेशल डीजी ने जिस तरह नियम विरुद्ध तरीके चालक को निलंबित कराया, जिसे स्वयं पुलिस मुख्यालय ने लिखित में स्वीकार किया है, तो क्या स्पेशल डीजी और उनके एआईजी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी?

*विभाग के कारण बदनामी
मप्र में पंचायत विभाग को कौन चला रहा है? मंत्री, अफसर या कोई और? पंचायत विभाग के कारण पिछले कई दिनों सरकार की सबसे अधिक फजीहत हो रही है। पंचायत विभाग के अध्यादेश के कारण सरकार को सुप्रीम कोर्ट का सामना करना पड़ा। अध्यादेश वापिस भी लेना पड़ा। पंचायत चुनाव रद्द करने पड़े। चुनाव रद्द होने के बाद पंचायत विभाग ने पूर्व सरपंचों को वित्तीय अधिकार देने के आदेश जारी किए, लेकिन कुछ घंटे बाद गलती का अहसास हुआ तो यह अधिकार भी वापिस ले लिए। पंचायतों में रोटेशन और परिसीमन का मामला अभी भी अटका हुआ है। कुल मिलाकर पंचायत विभाग के कारण सरकार की जमकर फजीहत हो रही है।

*क्यों भाग रहे हैं ठेकेदार?
मप्र में अभी तक डेढ़ दर्जन से अधिक रेत ठेकेदार काम छोड़कर भाग चुके हैं। सरकार ने बिना सोचे-समझे रेत के महंगे ठेके तो दे दिए, लेकिन ठेकेदार के सामने कोरोना और मंदी ने गंभीर संकट खड़ा कर दिया। ठेकेदार सरकार से बात करके इस समस्या का हल निकालना चाहते थे। लेकिन चर्चा है कि खनिज विभाग के प्रमुख सचिव ठेकेदारों से मिलने या चर्चा करके हल निकालने तैयार नहीं हो रहे हैं। यह भी अटकलें हैं कि प्रमुख सचिव या तो समस्या को समझते नहीं हैं या समझना नहीं चाहते। अनेक प्रयास के बाद भी जब ठेकेदारों की नहीं सुनी गई तो एक-एक करके ठेकेदारों ने काम छोड़कर भागना शुरू कर दिया है। अभी तक 18 ठेकेदार काम छोड़कर भाग चुके हैं। रेत ठेकेदारों का कहना है कि तीन गुना मंहगे ठेके लेने के बाद भी सरकार उनका पक्ष सुनने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि अब सरकार को आर्थिक नुकसान तो होगा ही। रेत ठेकों को मामला हाईकोर्ट में भी उलझ गया है।

*धंधे के साथ राजनीति
प्रदेश में जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) तीसरी राजनीतिक ताकत बनने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा है। इसके लिए जयस ने भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर रावण की ओर दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया है। जयस का जनाधार मालवा और निमाड़ में है। जयस ने इंदौर में राजनीतिक हलचल शुरू करने के लिए कॉफी कैफे खोलने की योजना बनाई है। इंदौर शहर के प्रमुख चौराहे पर “जयस कॉफी कैफे” नाम से दुकान खोली जाएगी जहां जयस के पदाधिकारी एक दूसरे से मिलेंगे और राजनीतिक गतिविधियां शुरू करेंगे। दुकान खोलने वाला भी जयस का कार्यकर्ता होगा। उसे धंधे के राजनीति करने का मौका भी मिल जाएगा।

*कैसे-कैसे कुलपति!
प्रदेश में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की तर्ज पर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में तैनात कुलपतियों की जांच के लिए भी एक एजेंसी बनाई जा सकती है। कुलपतियों पर कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं। ताजा मामला भोज विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जयंत सोनवलकर की पीएचडी को लेकर है। लंबे समय से इसकी शिकायत सरकार को मिल रही थीं, लेकिन कुलपति अपने प्रभाव से इसे दबावाए रहे। अब सरकार ने तीन सदस्यीय समिति बनाकर कुलपति की पीएचडी थीसीस की जांच शुरू कराई है। जांच समिति का नेतृत्व महात्मागांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भरत मिश्रा कर रहे हैं। इस समिति को इसी महीने अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। यानि भोज विश्वविद्यालय के कुलपति पर तलवार तो लटक ही गई है।

*मंत्री के ओएसडी पर गंभीर आरोप
मंत्री के स्टॉफ में नियुक्ति से पहले सत्ता और संगठन अच्छी तरह जांच कर लेता था कि उन पर कोई गंभीर आरोप तो नहीं है। लेकिन अब यह प्रथा लगभग बंद हो गई है। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री के ओएसडी सनत कुमार पांडे पर लाखों के गबन के आरोप होने के बाद भी वे ठप्पे से मंत्री के स्टॉफ में जमे हुए हैं। पांडे पर आरोप है कि भोज विश्वविद्यालय में प्रभारी लेखापाल रहते हुए उन्होंने लगभग एक करोड़ रुपये के फर्जी भुगतान की फाईल बनाई थीं। इसके लिए उन्होंने फाईल की कुछ नोटशीट को गायब भी किया था। इस संबंध में विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने नोटिस जारी किया तब इसकी पोल खुली है। लेकिन अभी तक मंत्रीजी ने ओएसडी को नहीं हटाया है।

*और अंत में….
कांग्रेस पार्टी पूरी ताकत लगाकर भी कांग्रेस से भाजपा में गए अपने विधायक सचिन बिड़ला पर दल बदल कानून लागू कराकर उन्हें विधायकी से नहीं हटवा पा रही है। पिछले दिनों डॉ. गोविंद सिंह ने विधानसभा स्पीकर को पत्र सौंपकर बिड़ला की सदस्यता समाप्त करने की गुहार लगाई थी। लेकिन अध्यक्ष ने तकनीकी आधार पर उनकी याचिका खारिज कर दी है। कांग्रेस अब नए सिरे से पूरे तथ्यों के साथ याचिका तैयार करा रही है। इसके लिए पिछले दिनों दिल्ली में वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा के साथ कांग्रेस नेताओं की बैठक हो चुकी है। खबर है कि अगली याचिका विधायक पीसी शर्मा की ओर से दायर की जाएगी।

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