क्या माया के भाग्य से छींका टूटेगा?

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 त्रिदीब रमण 
त्रिदीब रमण 

 त्रिदीब रमण 

’चीख कर तब मेरा भी नाम लिया था दिल से निकली तेरी हर आह ने
तख्तो-ताज़ की चाह में मैं भी शामिल था तेरे हर गुनाह में’
सियासत भी क्या खूब नए चेहरे ओढ़ती है, कभी इन्हीं बसपा सुप्रीमो मायावती के एक वोट से केंद्र की अटल बिहारी सरकार गिर गई थी, आज इस नए दौर की नई भाजपा में बहिनजी के लिए संभावनाओं के असीम द्वार खुल गए हैं। सूत्रों की मानें तो मायावती देश की पहली महिला दलित राष्ट्रपति हो सकती हैं। कहा जाता है कि भाजपा शीर्ष बेहद गंभीरता से देश की अगली राष्ट्रपति के तौर पर मायावती के नाम पर विचार कर रहा है, अब सवाल उठता है कि ’बदले में भाजपा को क्या मिलेगा?’ तो सूत्र बताते हैं कि ’ऐसी सूरत में बहिन जी अपनी बहुजन समाज पार्टी का विलय भाजपा में कर सकती हैं।’ वहीं उप राष्ट्रपति पद के लिए यूपी की गवर्नर आनंदी बेन पटेल के नाम पर विचार हो रहा है। यानी देश के दो शीर्ष पदों पर महिलाओं को बिठा कर 2024 के चुनाव के आलोक में भाजपा यह साबित करना चाहती है कि वह कितनी बड़ी महिला हितैषी पार्टी है। यूपी में प्रियंका गांधी के चर्चित नारे का मज़ाक उड़ाते हुए जब यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने प्रियंका को ’लड़की नहीं, आंटी’ कह कर उनका मज़ाक उड़ाया था तो कहते हैं भगवा हाईकमान ने इस बात का संज्ञान लेते हुए मौर्य की क्लास लगा दी और उन्हें डपटते हुए कहा-’आपके नाम में ही केशव है, प्लीज आप औरतों का ऐसे मज़ाक न बनाएं।’ वैसे भी मोदी को दुबारा गद्दी पर बिठाने में युवा और महिला वोटरों की एक निर्णायक भूमिका रही है, भाजपा नेतृत्व इस बात की गंभीरता को बखूबी समझता है।

क्यों निशाने पर हैं केजरीवाल?
क्या कवि कुमार विश्वास भाजपा के हाथों में खेल गए, जब पंजाब में चुनाव प्रचार अपने पूरे शबाब पर था तो ऐसे में कवि विश्वास न्यूज़ एजेंसी एएनआई को एक इंटरव्यू देते हैं और उसमें केजरीवाल से जुड़े गड़े मुर्दे उखाड़ते हैं। क्योंकि इस दफे के पंजाब विधानसभा चुनाव में आप अपने पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रही है और पंजाब के लोग भी आप के ’दिल्ली माॅडल’ को अंगीकार करने के लिए तत्पर दिख रहे थे, ऐसे में विश्वास ने आप निरपेक्ष दलों को केजरीवाल पर हमला बोलने का एक नायाब अस्त्र मुहैया करा दिया है। सो चन्नी, मोदी, अकाली दल से लेकर राहुल व प्रियंका इस मुद्दे को लेकर केजरीवाल पर निशाना साध रहे हैं और केजरीवाल को बचाव की मुद्रा अख्तियार करनी पड़ रही है। दरअसल, इस बार के चुनाव में आप का मालवा और दोआबा क्षेत्र में व्यापक असर देखा जा सकता है। मालवा तो पंजाब की राजनीति का हमेशा से एक केंद्र रहा है, अगर सिर्फ प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह और मौजूदा सीएम चन्नी का नाम इस लिस्ट से बाहर निकाल दें तो 1966 के बाद से अब तक पंजाब के 17 मुख्यमंत्री मालवा से ही आते हैं। पंजाब की 117 में से सबसे ज्यादा सीटें यानी 69 सीटें मालवा में आती है। इस बार मालवा में आप की झाड़ू असरदार दिख रही है, बात करें दोआबा की तो यह अप्रवासी भारतीयों यानी एनआरआई के प्रभाव वाला क्षेत्र है, जो काफी पहले से केजरीवाल को अपना समर्थन देता आया है। यहां 23 सीटें आती हैं। माना जाता है कि मालवा क्षेत्र में कभी जट सिख कोर वोट बैंक अकाली-भाजपा के हिस्से के थे जो किसान आंदोलन के बाद खिसक कर आप और कांग्रेस की ओर चले गए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आप ने पंजाब में जो 20 सीटें जीती थी उसमें से 18 सीटें तो मालवा की थी। कांग्रेस का भी बहुत कुछ यहां दांव पर लगा है। आप के सीएम फेस भगवंत मान जो संगरूर से सांसद है,उनका निर्वाचन क्षेत्र भी मालवा में ही आता है। किसान आंदोलन में शहीद होने वाले अधिकतर किसान भी मालवा इलाके के ही थे। सो, कवि विश्वास का यह एक सुविचारित हथकंडा ही लगता है, जो चल गया तो तीर, नहीं तो फिर तुक्का!

अपनों से ही क्यों नाराज़ हैं राहुल
एक ऐसे वक्त में जब राहुल और प्रियंका पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त थे, सोनिया गांधी का आशीर्वाद पाकर दिवंगत अहमद पटेल के आशीर्वाद से कांग्रेसी राजनीति में आगे बढ़े मधुसूदन मिस्त्री ने कांग्रेस की सदस्यता अभियान को धार देने के क्रम में राज्यवर पीआरओ यानी प्रदेश रिटर्निंग अफसर और एपीआरओ की धड़ाधड़ नियुक्तियां शुरू कर दीं। इसके साथ ही एआईसीसी स्थित भक्तचरण दास के कमरे से बूथ कमेटी के गठन का काम भी शुरू हो चुका है। इस कार्य में अहमद पटेल के एक पूर्व सहयोगी यतींद्र शर्मा की भी एक महती भूमिका है, इस मुहिम को मनीष चतरथ, मोहन प्रकाश जैसे नेताओं का भी सक्रिय सहयोग हासिल है। अब यह सुनने में आ रहा है कि 10 मार्च के बाद राहुल और प्रियंका दोनों मिल कर मिस्त्री की इस लिस्ट की समीक्षा कर सकते हैं और उसकी मरम्मत भी। लिस्ट में से कई पीआरओ-एपीआरओ के नाम हटाए जा सकते हैं और उनकी जगह कई नए नाम जोड़े जा सकते हैं। क्योंकि इस अगस्त-सितंबर माह में कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव होना है और राहुल अपने लिए पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं चाहते।

क्या बिहार में भी ‘एकला चलेगी’ कांग्रेस?
राहुल और प्रियंका दोनों चाहते हैं कि यूपी की तरह अब बिहार में भी कांग्रेस को उसके अपने पैरों पर खड़ा किया जा सके, इसके लिए दोनों भाई-बहन लालू या नीतीश नामक बैसाखी नहीं चाहते। इसी रणनीति के तहत ही बिहार विधान परिषद के लिए होने वाले 24 सीटों के चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने 8 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। वहीं बिहार के बड़े कांग्रेसी नेता अपने सगे-संबंधियों को टिकट दिलवाने के लिए लालू-नीतीश की परिक्रमा में व्यस्त थे। बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा अपने पुत्र के टिकट के लिए तेजस्वी के आगे-पीछे डोल रहे थे तो वहीं अखिलेश सिंह अपने पुत्र के लिए लगातार लालू की परिक्रमा में जुटे थे। वैसे स्वयं लालू इस बात के लिए तैयार बताए जा रहे थे कि वे कांग्रेस के लिए एक-दो सीट छोड़ देंगे बशर्ते स्वयं राहुल उनसे इस बात के लिए आग्रह करें। वहीं राहुल करप्षन के मुद्दे पर जीरो-टाॅलरेंस की पाॅलिसी चाहते हैं, और ये राहुल ही थे जिन्होंने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते वह ‘ऑर्डिनेंस’ फाड़ दिया था, जिसकी वजह से आज भी लालू यादव को जेल के दीवारों के पीछे कैद रहना पड़ रहा है। लालू से कोई बात किए बगैर राहुल ने अपने विश्वासी के.राजू को पर्यवेक्षक बना कर बिहार भेज दिया और राजू की रिपोर्ट के बाद ही कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी है।

सोनिया नहीं लड़ेंगी चुनाव
अपने गिरते स्वास्थ्य के मद्देनज़र सोनिया गांधी लोकसभा का अगला चुनाव लड़ने से मना कर रही हैं, 10 जनपथ से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि इस बात पर गांधी परिवार में लगभग सहमति बन चुकी है कि इस बार के आम चुनाव में यानी 2024 में रायबरेली से सोनिया की जगह प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती है। एक संभावना यह भी बन रही है कि 24 में प्रियंका राहुल की अमेठी सीट से स्मृति इरानी के खिलाफ चुनाव लड जाएं और राहुल अपनी मां की सीट रायबरेली शिफ्ट हो जाएं। वहीं भाजपा की कोशिश है कि रायबरेली का हाल भी अमेठी वाला कर दिया जाए, जब 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अमेठी की 5 में से महज़ 2 सीटों पर ही जीत दर्ज करा पाई थी और बाद में कांग्रेस के ये दोनों ही विधायक भाजपा में षामिल हो गए।

भाजपा के मर्दन में क्यों जुटे हैं मदन?
उत्तराखंड भाजपा में इन दिनों सब ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। यहां तक कि ऐन चुनाव की बेला में भी भाजपा नेताओं की आपसी सिर फुटौव्वल थम नहीं पाई। मजबूर होकर भाजपा हाईकमान को पुष्कर सिंह धामी और मदन कौशिक को दिल्ली तलब करना पड़ा। इसके पीछे कौशिक के उस ट्वीट को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जिसमें उन्होंने खुल कर कह दिया था कि ’उत्तराखंड में भाजपा हार रही है।’ वैसे भी कौशिक के अड़ियल रवैये से उत्तराखंड के अधिकारी पिछले पांच सालों से परेशान रहे हैं। वे चुनाव के दौरान भी नहीं रूके। कहते हैं कौशिक ने अपने चुनाव में पानी की तरह पैसे बहाए। इस कड़ी में उन्होंने इतनी भारी मात्रा में चुनाव प्रचार सामग्री छपवा ली कि वे सीधे चुनाव आयोग की नज़रों में आ गए। कहते हैं चुनाव आयोग द्वारा खर्च की तय सीमा और अधिकारियों की सख्ती को देखते हुए उन्हें रातों-रात ढेर सारी अपनी चुनाव प्रचार सामग्री जलवानी पड़ गई, जिससे केसी तरह वे आयोग के हत्थे चढ़ने से बच गए।

…और अंत में
बसपा ने महमूदाबाद से मीसम अम्मार रिज़वी को अपना प्रत्याशी बनाया है। दिलचस्प है कि मीसम के पिता कांग्रेस के एक दिग्गज नेता था, जो उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री भी रह चुके थे, 2019 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था, अब मीसम की दिक्कत है कि पिता के भाजपाई होने के चलते वे अपने चुनाव प्रचार में भाजपा पर सीधा हमला नहीं कर पा रहे।

(त्रिदीब रमण-न्यूज ट्रस्ट ऑफ इंडिया)

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