समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 12 मार्च। विवेक अग्निहोत्री ने बतौर निर्देशक ‘बुद्धा इन ए ट्रैफिक जैम’ से जो अलग लीक हिंदी सिनमा में पकड़ी है वह दिन पर दिन गाढ़ी ही होती जा रही है। विवेक ने अपनी पिछली फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ से दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। फिल्म तीन साल पहले की स्लीपर हिट फिल्म रही। उसी फिल्म का डीएनए विवेक अब अपनी इस नई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में लेकर आए हैं। पिछली बार उन्होंने इतिहास की मैली चादर से ढकी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या की असलियत को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी, इस बार उन्होंने कश्मीर की सबसे गंभीर समस्या का नकाब नोंचा है। सामने जो कुछ आता है वह भीतर तक हिला देने वाला है। लोग कह सकते हैं कि फिल्म में तकनीकी कमाल नहीं है, लेकिन इस फिल्म का कमाल इसका सच है। वह सच जिसे कह सकने की हिम्मत कश्मीर से निकले तमाम निर्देशक तक नहीं दिखा पाए।
फिल्म में इतिहास की उन ‘फाइल्स’ को पलटने की कोशिश
फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक तरह से इतिहास की उन ‘फाइल्स’ को पलटने की कोशिश है जिनमें भारत देश में वीभत्स नरसंहारों के चलते हुए सबसे बड़े पलायन की कहानी है। देश में कश्मीर पंडित ही शायद इकलौती ऐसी कौम है जिसे उनके घर से आजादी के बाद बेदखल कर दिया गया है और करोड़ों की आबादी वाले इस देश के किसी भी हिस्से में कोई हलचल तक न हुई। जिस कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक होने वाले देश का दम बार बार बड़े बड़े नेता भरते रहे हैं, उसके हालात की ये बानगी किसी भी इंसान को सिहरा सकती है।
घाटी में जो कुछ हुआ वह दर्दनाक रहा
कोई 32 साल पहले शुरू होती फिल्म की इस कहानी की शुरुआत ही एक ऐसे लम्हे से होती है जो क्रिकेट के बहाने एक बड़ी बात बोलती है। घाटी में जो कुछ हुआ वह दर्दनाक रहा है। उसे पर्दे पर देखना और दर्दनाक है। आतंक का ये एक ऐसा चेहरा है जिसे पूरी दुनिया को दिखाना बहुत जरूरी है। कहानी कहने में इसके एक डॉक्यूमेंट्री बन जाने का भी खतरा था, लेकिन सच्चाई लाने के लिए खतरों से किसी को तो खेलना ही होगा।
‘शिंडलर्स लिस्ट’ तक पहुंचने की कोशिश करती फिल्म
सिनेमा के लिहाज से ये फिल्म ‘शिंडलर्स लिस्ट’ तक पहुंचने की कोशिश करती फिल्म है। यहां का नरसंहार भले उस पैमाने सा ना हो लेकिन इसका भयानक और वीभत्स एहसास उससे कुछ कम भी नहीं है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पूरी तरह से विवेक अग्निहोत्री की फिल्म है। फिल्म की रिसर्च इतनी तगड़ी है कि एक बार फिल्म शुरू होती है तो दर्शक फिर इससे आखिर तक बाहर निकल नहीं पाते।
फिल्म को तकनीकी रूप से और बेहतर होना चाहिए था
वे एंड क्रेडिट्स के वक्त एकदम गुमसुम और खामोश से बस खड़े के खड़े रह जाते हैं और पता ही नही चलता कि पूरा हॉल खड़े होकर एक निर्देशक के कर्म को शाबासी दे रहा है। शिकायत कुछ लोगों को ये हो सकती है कि फिल्म अपने विषय के हिसाब से कैनवास का विस्तार नहीं पा सकी और फिल्म को तकनीकी रूप से और बेहतर होना चाहिए था। लेकिन, जिन हालात और जिस बजट में ये फिल्म बनी दिखती है, उसमें ऐसी कोई उम्मीद भी इस फिल्म से नहीं करनी चाहिए।
ये फिल्म अपना प्रचार अपने आप करती है
मौजूदा दौर में सिनेमा की कड़वी सच्चाई यही है कि एक तेलुगू फिल्म का हिंदी संस्करण एक हिंदी फिल्म से ज्यादा स्क्रीन्स पर दिखाया जा रहा है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर कहीं किसी तरह का शोर शराबा नहीं। कहीं किसी तरह का हैशटैग रिलीज से पहले ट्रेंड करने में किसी बड़ी सेलिब्रिटी का सहयोग भी नहीं। ये फिल्म अपना प्रचार अपने आप करती है। बतौर निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म में जज्बात बोए हैं और एहसास काटे हैं। चिनार जैसे ऊंचे इम्तिहान में वह पूरे नंबरों के साथ पास हुए हैं तो बस इसलिए कि उनके साथ कंधे से कंधा मिलाने वाले कलाकारों और तकनीशियनों ने फिल्म में काबिले तारीफ काम किया है।
अनुपम खेर अरसे बाद अपने पूरे रंग मे दिखे
फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को इसके कलाकारों की बेहतरीन अदाकारी के लिए भी देखा जाना चाहिए। अनुपम खेर अरसे बाद अपने पूरे रंग मे दिखे हैं। वह परदे पर जब भी आते हैं, दर्द का एक दरिया सा उफनाता है और दर्शकों को अपने साथ बहा ले जाता है। उनका अभिनय फिल्म में ऐसा है कि इसे देखने के बाद अगले साल का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार उनके नाम होना बनता ही है। दर्शन कुमार ने फिल्म के अतीत को वर्तमान से जोड़ने का शानदार काम किया है। उनके कैंपस वाले भाषण और इस दौरान उनकी भाव भंगिमाएं देखने लायक हैं। चिन्मय मांडलेकर का अभिनय फिल्म की एक और मजबूत कड़ी है।
कैमरे के सहारे फिल्म का दर्द धीरे धीरे रिसते देने में कामयाबी पाई
तकनीकी तौर पर फिल्म बहुत कमाल की भले न हो लेकिन उदय सिंह मोहिले ने अपने कैमरे के सहारे फिल्म का दर्द धीरे धीरे रिसते देने में कामयाबी पाई है। फिल्म की अवधि इसकी सबसे कमजोर कड़ी है। फिल्म की अवधि कम करके इसका असर और मारक किया जा सकता है। फिल्म का संगीत कश्मीर के लोक से प्रेरणा पाता है और हिंदी भाषी दर्शकों को इसे समझाने के लिए विवेक ने मेहनत भी काफी की है। मुख्यधारा की फिल्म के हिसाब से फिल्म का संगीत हालांकि कमजोर है। लेकिन, इस सबके बावजूद फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ कथानक के लिहाज से इस साल की एक दमदार फिल्म साबित होती है।