पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 85वीं गोष्ठी का आयोजन
"प्रेम – सरोकार और राष्ट्र भाव” को समर्पित रही- अवधेश सिंह
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 31 मार्च। पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 85वीं गोष्ठी का 24 महीने के बाद सार्वजनिक रूप में पुनः आयोजन वैशाली सेक्टर 4 स्थित सेंट्रल पार्क में सम्पन्न हुआ।
दो सत्रों में देर शाम तक काव्य के विभिन्न रसों में डूबी गोष्ठी के पहले सत्र में वैभव भट्ट व अन्य विद्यार्थियों के साथ सरस्वती माँ पर भक्ति गीत गायन हुआ। पिछली बाल साहित्य राष्ट्र गान प्रतियोगिता 2021 के विजेता प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र और पुरस्कार वितरण सम्पन्न हुआ।
साहित्य अकादेमी सम्मान प्राप्त प्रख्यात बाल साहित्यकार दिविक रमेश एवं बाल लेखक रामेश्वर काम्बोज हिमांशु की देख रेख चयन द्वारा बाल राष्ट्र गान प्रतियोगिता के विजेता विद्यार्थियों में क्रमश वैभव भट्ट , यशस्वी दहिया, मुक्ता सिंह, जाफ़िया , स्वाति यादव , अक्षरा, भारती ,साहिल ,लवी, अफशां , आयुष , रागिनी, सुमित आदि को प्रमाण पत्र, पुरस्कार स्वरूप पुस्तकें आदि प्रदान किये गये। पुरस्कृत स्कूल में कंपोजिट स्कूल वैशाली, नगर निगम स्कूल,सीमापुरी रहे।
दूसरे सत्र में मुख्य अतिथि और अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात पत्रकार और कवि कुमार राकेश के सानिध्य में तथा कवि अवधेश सिंह के संचालन में देर शाम तक सरस काव्य पाठ सम्पन्न हुआ । आमंत्रित कवियों में ईश्वर सिंह , रामेश्वर दयाल शास्त्री , इन्द्र्कुमार सुकुमार , सुरेन्द्र अरोड़ा ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं । तथा उपस्थिती कवियत्रियों सुश्री शशि किरण , पूनम कुमारी और गीता गंगोत्री ने काव्य पाठ किया । इस अवसर पर संस्था की ओर से कोरोना काल में योग कक्षाओं के द्वारा जन सामान्य को स्वास्थ्य जागरूकता कर रहे कपिल देव नागर को शाल पहनाकर सम्मानित किया गया ।
मुख्य अतिथि प्रख्यात पत्रकार एवं तत्क्षणिक अनुभूतियों को शब्द बद्ध करने वाले कवि कुमार राकेश ने सभी कवियों पर समांतर टिप्पणी करते हुए अपनी संवेदनाओं से सबको परिचित कराया , कुमार राकेश ने पढ़ा – “डरना क्यों / डराना क्यों / दोस्त हैं हम / तो मुंह चुराना क्यों” । जब होती है दिल की बात / या दिमाग की / मन की बात / या मिजाज की / तब तुम्हें पता है / नींद गायब हो जाती है / और दिल दिमाग एक हो जाते हैं / सिर्फ बचता है / परस्पर स्नेह सम्मान प्यार / जो हैं किसी भी रिश्ते के/ मजबूत आधार”।
डॉ ईश्वर सिंह ने सामयिक सरोकारों पर अनुभूतियों को प्रदर्शित करती कविता का पाठ किया – जगना अच्छा है पर मुझको / सोना अच्छा लगता है जी / सच पूछो तो अपने जैसा / होना अच्छा लगता है जी / बेशक तुम्हें अचंभा होगा / मेरी इन बातों को सुनकर / कुछ मौकों पर मुझे यकीनन / रोना अच्छा लगता है जी”॥
होली पर रामेश्वर दयाल शास्त्री ने हुंकार करते हुए ओजस्वी स्वर में पढ़ा “ होली हुडदंग / होली के रंग संग पीते मद्य भंग कुछ / करें हुड़दंग कुछ कीच धूलि भखि रहे / प्रेम से मिलाप आप छोड़िके खिलाप कुछ / सुरा सुन्दरी को जाप प्रेम सहित जपि रहे / देखि सुकमारी नारी पहुँचते अगारी कुछ / नृत्य करें जारी और बड़-बड़ बकि रहे / मित्रों के साथ जात करें घूसा लात कुछ / देखि के दयाल हवालात बीच नपि रहे”…….।
होली रास का दृश्य प्रस्तुत करते हुए कवयित्री गीता गंगोत्री ने सुर में पढ़ा –“ सुनो रे कान्हा खेलेंगे तुम संग होली / बड़ी मुश्किल से शुभ घड़ी आई / दुख संताप की हुई है बिदाई / सुनो रे कान्हा फूलो से भर दो झोली / सुनो रे कन्हा राधा खेलेगी आज होली / कितनी कठिन थी पिछली रातें / कैसे कैसे दिन हम काटे / आज राम जी ने बदली छाँटे / रंग खुशियों के घर घर बाँटे / सुनो रे कान्हा रहे ना तन कोई कोरी / आओ रे कान्हा राह तके अँखियाँ मोरी”….. ।
कवि अवधेश सिंह ने गजल को जिंदिगी के अरमानों से जोड़ते हुए पढ़ा “जिंदिगी एक गजल है तो मुकम्मल क्यों नहीं होती , तमाम मुश्किलें दुनिया से हल क्यों नहीं होती” । कवयित्री शशि किरन ने छंद मुक्त कविता “माँ का सिंगार दान” पढ़ी।
लघुकथा कार एवं कवि सुरेन्द्र अरोड़ा ने इंसानी रिश्तों की खटास पर चोट करती कविता पढ़ी “जिंदगी बहुत छोटी सी है / कभी स्वयं से किसी को न रूठने दीजिए / रूठ जाय कोई तो पलक झपकते ही /उसे मनाने का उपक्रम कीजिए / जो हो जाय इंतजार कुछ लंबी / तो बिना गलती के ही गलती अपनी मान कर / पास आने का उसे निमंत्रण दीजिए / अस्वीकार हो निमंत्रण तब भी”… ।
“न बन बादल कोई भरा” शीर्षक की कविता के माध्यम से कवयित्री पूनम कुमारी ने मन के स्पंदन को प्रकृति की हलचलों से जोड़ते हुए छंद मुक्त कविता पढ़ी ।
इस अवसर पर स्थानीय श्रोताओं ने भाग लिया और काव्य पाठ की प्रशंसा की ।