विज्ञान और प्रौद्योगिकी को ज्यादा से ज्यादा रोजगार प्रदान करने में सक्षम बनाना चाहिए: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु

उपराष्ट्रपति ने’’डॉ वाई नायुदम्मा: निबंध, भाषण, नोट्स और अन्य’ पुस्तक का विमोचन किया

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 19अप्रैल। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने लोगों की सामान्य भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और उनकी गंभीर समस्याओं को हल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि ’विज्ञान से समाज की भलाई होनी चाहिए न कि कुछ अभिजात वर्ग की। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास का एजेंडा तय करने के लिए लोगों की आकांक्षाओं और लक्ष्यों की आवश्यकता बताई।

विजयवाड़ा के पास स्थित अतकूर स्थित स्वर्ण भारत ट्रस्ट में आज पुस्तक शीर्षक डॉ. वाई. नायुदम्मा: निबंध, भाषण, नोट्स और अन्य’ का विमोचन करने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री नायडु ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लोगों को अपना गुलाम नहीं बनाना चाहिए। प्रसिद्ध वैज्ञानिक, डॉ. यलवर्थी नायुदम्मा की जन्म शताब्दी के अवसर पर विमोचित पुस्तक का संकलन और संपादन पूर्व आयकर आयुक्त डॉ. चंद्रहास और डॉ. के. शेषगिरी राव ने किया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य के बारे में डॉ. नायुदम्मा की परिकल्पना की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह सामाजिक मूल्यों से प्रेरित, सामान्य भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग चाहते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा, ’’उन्होंने लक्ष्यों व उद्देश्यों और मूल्यों के एक स्पष्ट समुच्चय की रूपरेखा तैयार की थी जिसका अनुप्रयोग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के साधन के तौर पर और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बदलाव के उत्प्रेरक के रूप मार्गदर्शन के लिए किया जाना चाहिए।

डॉ. वाई. नायुदम्मा के दर्शन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए, श्री नायडु ने सभी संबद्ध लोगों को सलाह दी कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साधनों की खोज और अनुप्रयोग के बारे में विभिन्न मुद्दों और सरोकारों की उचित समझ विकसित करने के लिए पुस्तक को पढ़ें। उन्होंने उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए पुस्तक को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बनाने का भी सुझाव दिया ताकि नवोदित वैज्ञानिकों को उनके सीखने के प्रारंभिक चरण में सही समझ और अभिविन्यास प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष रूप से, पिछली दो शताब्दियों के दौरान तेजी से हुई प्रगति का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब मानव को ’प्रौद्योगिकी पशु’ कहा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बेहतर जीवन के लिए निरंतर खोज ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंधाधुंध खोज और अनुप्रयोग के उद्देश्य, प्रासंगिकता, मूल्यों और परिणामों के बारे में कुछ गंभीर समस्याओं और चिंताओं को जन्म दिया है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर अपनाई जा रही विकास की रणनीतियों के परिणामस्वरूप तेजी से संसाधनों की कमी, पारिस्थितिक असंतुलन और असमानताओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की और सतत और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए वैकल्पिक विकास मॉडल की आवश्यकता बताई।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि एकांत विज्ञान के अनुशीलन से स्वतः मानवता की सेवा नहीं हो सकती है।
देश में चर्मशोधन उद्योग के आकार और स्वरूप को बदलने में डॉ. नायुदम्मा के अग्रणी योगदान को याद करते हुए श्री नायडु ने कहा कि कुछ पारंपरिक समुदायों द्वारा अपनाए जाने वाले इस पेशे को दूसरों द्वारा बदबू और काम की प्रकृति के कारण हेय दृष्टि से देखा जाता था।
डॉ. नायुदम्मा ने ऐसे मुद्दों का गहन विश्लेषण किया और बदबू को दूर करने और इसमें शामिल लोगों के कौशल में सुधार करके इस पेशे को व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने में सक्षम बनाया। उन्होंने बताया उनके काम से चर्मशोधन उद्योग की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाने में मदद की। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि ’विज्ञान और प्रौद्योगिकी से अधिक से अधिक रोजगार पैदा होना चाहिए।

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