उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने राजनेताओं तथा प्रशासनिक अधिकारियों के बीच बढ़ते गठजोड़ पर व्यक्त की चिंता

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 22अप्रैल। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने देश में प्रशासनिक सेवाओं की स्थिति पर चिंतन करते हुए नौकरशाही में प्रतिभा को बढ़ावा देने में सक्षम बनाने के लिए सुधारों की अपील की, जिससे कि उभरती चुनौतियों तथा बदलते समय की जटिलताओं से निपटा जा सके। उन्होंने आज सिविल सेवा दिवस के अवसर पर हैदराबाद के डॉक्टर मारी चेन्ना रेड्डी मानव संसाधन विकास संस्थान के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रशासनिक सेवाओं को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की।

श्री नायडु ने कहा कि जहां इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) की स्थापना अंग्रेजों द्वारा शोषणकारी औपनिवेशिक शासन को बनाए रखने के लिए की गई थी, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की परिकल्पना न्याय, स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारा सुनिश्चित करने के संविधान के व्यापक उद्देश्यों द्वारा निर्देशित आजाद भारत के कल्याण तथा विकास एजेंडा का अनुसरण करते हुए तथा कुछ खास अधिकारों तथा हकदारियों पर आधारित लोगों के जीवन की मर्यादा सुनिश्चित करते हुए लोगों के लिए और लोगों के साथ काम करने के लिए की गई थी। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि प्रशासनिक सेवाएं इस विजन को प्राप्त करने में सक्षम सिद्ध नहीं हो पा रही है।

स्वतंत्रता के बाद से भारत की विकास यात्रा का उल्लेख करते हुए श्री नायडु ने कहा कि अन्य मुद्दों के अतिरिक्त निर्धनता, अशिक्षा, लैंगिक तथा सामाजिक भेदभाव को दूर करने में अभी काम किया जाना बाकी है। इन मुद्दों के समाधान के लिए और अधिक प्रयास करने की प्रशासनिक अधिकारियों से अपील करते हुए श्री नायडु ने कहा कि सिविल सेवा दिवस आत्मनिरीक्षण करने तथा इन सेवाओं के लिए अवसरों व चुनौतियों को समझने का अवसर है।

श्री नायडु ने कहा, “प्रशासनिक सेवाओं ने हमारी इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन वर्तमान समय की चुनौतियों को पूरा करने के लिए इसके पुनरुद्धार तथा पुनःस्थापन की आवश्यकता है।”

श्री नायडु ने इन कारणों को दूर करने की अपील की ताकि प्रभावी निर्णय लेने में सक्षम हो सके तथा सेवा प्रदान करने में उल्लेखनीय रूप से सुधार हो। उन्होंने अच्छा प्रदर्शन करने वालों को प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत करने तथा सामान्यता की जगह प्रशासनिक सेवाओं में प्रतिभा को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया।

श्री नायडु ने प्रोत्साहनों तथा दंड एवं प्रदर्शन मूल्यांकन की त्रुटिपूर्ण प्रणाली को रेखांकित किया जिनमें अच्छा और निम्न प्रदर्शन करने वालों के बीच समुचित रूप से अंतर नहीं किया जाता। उन्होंने जोर देकर कहा, “ प्रशासिनक अधिकारियों की निरंतरता नए विचारों, पहलों तथा प्रक्रियाओं के माध्यम से नीतियों एवं कार्यक्रमों के निर्माण तथा कार्यान्वयन में उनके योगदान के नियमित आकलन पर आधारित होनी चाहिए।”

उपराष्ट्रपति ने राजनेताओं तथा प्रशासनिक अधिकारियों के बीच बढ़ते अनुमानित गठजोड़ तथा लोगों एवं देश के लिए इसके दुष्परिणामों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से स्पष्ट तथा ईमानदार होने और सच के पक्ष में खड़ा होने तथा राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष सत्य प्रस्तुत करने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि सही और अच्छे सुझावों को स्वीकार करने वाले राजनेता किसी बुरे निर्णय से दंडित होने का जोखिम मोल नहीं लेंगे और इसलिए अधिकारियों को स्पष्ट रूप से सत्य एवं विभिन्न परिदृश्यों को प्रस्तुत करना चाहिए।

श्री नायडु ने कहा, “जब आपको विशिष्ट तरीके से किसी विशिष्ट मुद्दे को प्रस्तुत करने को कहा जाता है जो सरकारी पक्ष के अनुकूल है तो आवश्यकता इस बात की है कि आप सत्य बोले और अगर आवश्यक हो तो इसे लिखित में प्रस्तुत करें। अगर आपकी बात नहीं मानी जाती है तो संबंधित प्राधिकारी को दंडित किया जाएगा। राजनीतिक और स्थायी कार्यकारियों को तालमेल के साथ तथा सही तरीके से काम करना चाहिए। राजनीतिक नेतृत्व में जरूर बदलाव आना चाहिए।”

कल्याण के नाम पर ‘फ्रिबिज’ (छूट) पर होने वाले भारी व्यय के कारण कई राज्यों में वित्त की स्थिति पर चिंता से संबंधित हाल की रिपोर्टों का उल्लेख करते हुए कल्याण से जुड़ी चिंताओं तथा विकास की आवश्यकताओं को समन्वित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। श्री नायडु ने विशेष रूप से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से उदार और ईमानदार रहते हुए ऐसी जिम्मेदारी का निर्वहन करने का आग्रह किया।

श्री नायडु ने वर्तमान कार्यशील परितंत्र में प्रशासनिक अधिकारियों के सामने आने वाली कुछ बाधाओं तथा चुनौतियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आंतरिक विशेषज्ञता की अनुमति न देते हुए नियमित स्थानांतरण, चुने हुए अधिकारियों को आकर्षक नियुक्ति दिए जाने, लोगों की बढ़ती अपेक्षाओं तथा सेवाओं की प्रदायगी के लिए बेसब्री, तेजी के साथ तकनीकी प्रगति तथा बढ़ती सार्वजनिक जांच, वैश्विक स्तर पर बढ़ता परस्पर संपर्क और उभरती चुनौतियां प्रशासनिक अधिकारियों को हमेशा दबाव में बनाए रखती है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए श्री नायडु ने अधिकारियों से व्यक्तिगत स्तर पर सदैव समानता, मन की शांति, आत्मविश्वास, सहानुभूति तथा कौशल उन्नयन के द्वारा सजग बने रहने की अपील की। उन्होंने अधिकारियों से उनकी जिम्मेदारियों के बेहतर निर्वहन के लिए साहस, चरित्र, क्षमता, करूणा, भाईचारा तथा संवाद कौशल की भावना विकसित करने की अपील की।

प्रशासनिक अधिकारियों से राजनीतिक रूप से तटस्थ रहने का आग्रह करते हुए उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक रूप से तटस्थ रहने तथा निर्धनों और जरूरतमंदों के साथ खड़े रहने के आदर्शवाद से प्रेरित होने को कहा, जिन्हें उनकी सहायता की सर्वाधिक आवश्यकता है। उन्होंने अधिकारियों को याद दिलाया कि प्रत्येक फाइल में एक लाइफ होती है और राष्ट्र की प्रगति और जीवनकाल समुचित एवं प्रभावी निर्णय लेने के माध्यम से फाइलों की प्रभावी प्रोसेसिंग पर निर्भर करती है।

यह बताते हुए कि सक्षम सार्वजनिक सेवा देश की प्रगति और रूपांतरण के लिए अनिवार्य है, श्री नायडु ने प्रशासनिक अधिकारियों से उन्हें सभी आवश्यक माध्यमों के साथ सुसज्जित करने का आग्रह किया जिससे कि वे ‘परफॉर्म, रिफॉर्म और ट्रांसफॉर्म’ कर सकें। जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तावित है।

श्री नायडु ने सुझाव दिया कि प्रशासनिक अधिकारियों को सेवा प्रदान करने के तंत्रों पर फोकस करने की आवश्यकता है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के उदाहरण का उल्लेख करते हुए उन्होंने यह सुनिश्चित करने की अपील की कि शासन का लाभ सर्वाधिक प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचे। उन्होंने रेखांकित किया कि लक्ष्य ‘अंत्योदय’- निर्धनों में सबसे निर्धन का उत्थान होना चाहिए।

प्रशासनिक अधिकारियों से अपने दायित्व के निर्वहन में कभी भी शंका में न रहने की अपील करते हुए और अगर वे अपने आपको इस स्थिति में पाते हैं तो ऐसी स्थिति के लिए श्री नायडु ने उन्हें महात्मा गांधी का स्मरण करने का सुझाव दिया जिन्होंने ऐसी स्थिति में आगे का रास्ता ढूंढ़ने के लिए कतार में खड़े अंतिम निर्धन व्यक्ति के बारे में सोचने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा, ‘जब कभी शंका हो तो संविधान का और अपनी चेतना का अनुसरण करें।’

प्रशासन के माध्यम के रूप में स्थानीय भारतीय भाषाओं के उपयोग के महत्व पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने विभिन्न राज्यों में नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों से बेहतर लोक संपर्क के लिए भाषा सीखने तथा लोगों से उनकी स्थानीय भाषा में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने राज्य के आधिकारिक पत्र व्यवहार के लिए स्थानीय तथा भारतीय भाषाओं को महत्व देने का भी सुझाव दिया।

कार्यक्रम के दौरान एमसीआरएचआरडी के महानिदेशक श्री हरप्रीत सिंह, एमसीआरएचआरडी के अपर महानिदेशक श्री बेनहर महेश दत्त एक्का, एमसीआरएचआरडी की संयुक्त महानिदेशक श्रीमती अनिता राजेन्द्र, अधिकारी प्रशिक्षु तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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