मासूमों के लिए नेट पर ऐसे बुना जाता है ‘सेक्स जाल’, समझें पूरी कहानी     

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समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली, 23 अप्रैल। आये दिन भारत में बलात्कार और लव सेक्स और धोखा जैसी हजारों वारदात हो चुकी हैं। देश की मासूम बेटियां कैसे दरिंदों के चंगुल में फंस जाती हैं इससे जानने के लिए ये खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यहां हम यही बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जब एक बच्चे ने ‘आरंभ’ से संपर्क किया तो वह काफी परेशान था। 11 साल की बहन के स्नैपचैट अकाउंट पर उसने मैसेज देखा, जिसे किसी एडल्ट ने भेजा था। लिखा था कि अपनी तस्वीरें भेज दो। लड़के ने अपने स्तर पर ऐक्शन लेने के बारे में सोचा और एक यंग लड़की के तौर पर फेक स्नैपचैट अकाउंट बना लिया। वह जानना चाहता था कि सामने वाला शख्स किस तरह की बातें करता है।

कार्टून पोर्नोग्राफी और बाद में पोर्न कंटेंट भेजने लगा

रंभ कार्यक्रम चलाने वाले रति फाउंडेशन के निदेशक सिद्धार्थ बताते हैं कि इंटरनेट चैट रूम के जरिए बच्चों को शिकार बनाने का यह स्पष्ट उदाहरण है। हाय और हैलो के बाद बातें आगे बढ़ीं। उधर से मैसेज आया, ‘मैं तुम्हें मिस कर रहा था, कहां चली गई थी।’ इसके बाद वह आदमी कार्टून पोर्नोग्राफी और बाद में पोर्न कंटेंट भेजने लगा। वह लड़की पर तस्वीरें भेजने का दबाव बनाने लगा। कुछ ऐसे ही शुरू होता है ऑनलाइन बच्चों के शोषण का घिनौना खेल, जिसके खिलाफ आरंभ जैसा एनजीओ काम कर रहा है।

देश में ऑनलाइन बाल शोषण के मामले बढ़ रहे

इंटरनेट ग्रूमर्स अक्सर 7 से 10 साल के बच्चों को निशाना बनाते हैं। आखिर में ये तस्वीरें इंटरनेट तक पहुंच जाती हैं। ऑनलाइन बाल शोषण के मामले बढ़ रहे हैं और लोगों के पास विकल्प कम दिखते हैं। यूके स्थित इंटरनेट वॉच फाउंडेशन (आईडब्ल्यूएफ) दुनियाभर में इंटरनेट से बाल यौन शोषण सामग्री को हटाने के लिए काम करता है। भारत में उन्होंने आरंभ एनजीओ के साथ साझेदारी की है, जो सर्वाइवर्स की मदद करने के लिए एक हॉटलाइन चलाता है। ऊपर जिक्र किए गए केस में आरंभ और साइबर क्राइम पोर्टल की मदद से लड़का ग्रूमर्स की प्रोफाइल को सभी प्लेटफॉर्म से डिलीट करने में सफल रहा।

आईडब्ल्यूएफ निभा रहा महत्वपूर्ण भूमिका

सिद्धार्थ कहते हैं कि जैसे ही कोई हमें यूआरएल और कोई अतिरिक्त सूचना भेजता है, प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। भेजी गई सूचनाएं बच्चे या घटना के बारे में हो सकती है। यूआरएल आईडब्ल्यूएफ को भेजा जाता है, जो इस काम के लिए बेहद प्रशिक्षित हैं और उनके पास इस तरह के कंटेंट को देखने की अनुमति है।

अंतरराष्ट्रीय एजेंसी से किया जाता है संपर्क

आईडब्ल्यूएफ में इंटरनेट कंटेंट एनालिस्ट हेनरी बताती हैं कि उनका काम दो तरीके से होता है- पहला, जब यह कंटेंट उनके पास भेजा जाता है और दूसरा पहले से सक्रियता दिखाने का काम है, जिसमें वे बच्चों के यौन शोषण से संबंधित सामग्री सर्च करते रहते हैं। वह कहती हैं कि अगला कदम इस बात पर निर्भर करता है कि यह गैरकानूनी कंटेंट कहां मौजूद है। हेनरी सुरक्षा कारणों से छद्म नाम का इस्तेमाल करती हैं। अगर कंटेंट यूके में है तो वे स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करती हैं और कंटेंट को हटाया जाता है। दूसरे देशों के लिए वे सहयोगी हॉटलाइन्स या अगर नहीं है तो इंटरपोल या अपराध रोकने के लिए जिम्मेदार अंतरराष्ट्रीय एजेंसी से संपर्क किया जाता है।

एक ही सामग्री कई बार कर दी जाती है अपलोड

सिद्धार्थ कहते हैं, ‘ आईडब्ल्यूएफ कंटेंट को ब्लॉकिंग लिस्ट में रखता है… इसे सोर्स से हटाया जाता है। एक बार ऐसा होने के बाद इसे एक विशिष्ट आईडी दी जाती है, जिससे अगली बार अपलोड होने पर उसे ट्रैक किया जा सके। लेकिन यह प्रक्रिया फुलप्रूफ नहीं है।’ हेनरी ने कहा कि एक ही सामग्री को बार-बार अपलोड होते देखना काफी निराश करता है।

उम्र भी महत्वपूर्ण है

उम्र को लेकर संदेह होने पर, बच्चा माइनर है या नहीं, आईडब्ल्यूएफ एक विजुअल एनालिसिस करता है। जैसे, एक मामला सामने आया था जब एक लड़की ने एफआईआर दर्ज कराई कि उसकी उम्र 15 साल है और बाल यौन शोषण सामग्री (सीएसएएम) ऑनलाइन फैलाई जा रही है। कंटेंट में उसकी उम्र ज्यादा लग रही थी, ऐसे में आईडब्ल्यूएफ  ने आरंभ से उसकी उम्र जांचने को कहा और फिर कंटेंट को हटाया गया। भारत में ऐसे कंटेंट होस्ट ज्यादा नहीं है। 2020 में ऐसे 13 अलग-अलग कंटेंट मिले थे। 2021 में बाहर कंटेंट होस्ट किया गया और 10,996 अलग-अलग कंटेंट पता चले।

आपत्तिजनक सामग्री बी और सी

सिद्धार्थ एक केस के बारे में बताते हैं, ‘किसी ने हमें सूचना दी कि उनके परिवार में 15 साल की एक लड़की है, उसे करीब 20 साल का एक शख्स ब्लैकमेल कर रहा है, जिससे वह ऑफलाइन मिली थी।’ इसके बाद दोनों ऑनलाइन बातचीत करने लगे। आकर्षण धीरे-धीरे जबर्दस्ती में तब्दील हो गया। सिद्धार्थ बताते हैं कि पहला अंतरंग मटेरियल ए कैटेगरी का नहीं था। सामग्री के हिसाब से उसकी कैटेगरी तय की जाती है। ए में ज्यादा घिनौना और हिंसक दृश्य रखा जाता है जिसमें सेक्स भी हो सकता है। बी कैटेगरी में सेक्स सीन छोड़कर बाकी और सी में कामुक मुद्राएं आती हैं। उन्होंने बताया कि उस शख्स की डिमांड बढ़ती गई और प्रेशर में तस्वीरें बढ़ती गईं। इसके बाद उसने लड़की की फेक प्रोफाइल बनाई और उसके पूरे परिवार को जोड़ दिया। इस केस में पहले काउंसलिंग की गई और उसके बाद एफआईआर दर्ज कराई गई। लड़का जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुका है लेकिन लड़की के परिवार को अपना टाउन छोड़कर जाना पड़ा। उसकी पढ़ाई रुक गई और अब आरंभ के साथ उसकी काउंसलिंग चल रही है।

आरंभ एनजीओ बच्चों को अपने परिवार से बातचीत करने में मदद करता है

मनोवैज्ञानिक और तकनीकी हेल्प के साथ ही, आरंभ एनजीओ बच्चों को अपने परिवार से बातचीत करने में मदद करता है, जिससे बच्चे अपने परिजनों को हालात के बारे में पूरी बात बता सकें। आगे परिवार को केस रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। आरंभ की ओर से अब कानूनी मदद देना भी शुरू किया गया है। लेकिन सिद्धार्थ कहते हैं कि मुश्किल यह है कि हम बच्चे को गारंटी नहीं दे सकते हैं कि कंटेंट फिर से ऑनलाइन नहीं आएगा। हां, इतना जरूर है कि हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे कि अगर दोबारा ऐसा होता है तो वे पहले से ज्यादा तैयार हैं।

 

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