समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 अप्रैल। असम सरकार राज्य के मुसलमानों को एक अलग समूह के रूप में पहचान के लिए नया आईडी प्रपोजल लाई है। इसे लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि यह प्रोपोजल समुदाय के भले के लिए लाया गया है या फिर मुसलमानों के बीच विभाजन के मकसद से ऐसा किया जा रहा है। पिछले हफ्ते, एक पैनल ने मुस्लिम समुदाय की पहचान के लिए पहचान पत्र या प्रमाण पत्र और अधिसूचना जारी करने की सिफारिश की थी। बंगाली भाषा बोलने वाले मुस्लिम जो बांग्लादेश से आए थे, उनको प्रस्ताव में शामिल नहीं किया गया है।
इनके अलावा, असम में अपनी उत्पत्ति का दावा करने वाले मुसलमानों को मुख्य चार समूहों में विभाजित किया गया है। ये समूह गोरिया और मोरिया (ऊपरी असम से), देशी (निचले असम से) और जुल्हा मुस्लिम (चाय बागानों से) हैं। पैनल का गठन पिछले साल जुलाई में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की विभिन्न क्षेत्रों के असमिया मुसलमानों के साथ बैठक के बाद किया गया था। सरमा का इन लोगों से मुलाकात का मकसद समुदाय का कल्याण था। बैठक में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि असमिया मुसलमानों की विशिष्टता को संरक्षित किया जाना चाहिए।
सात उप-समितियों में विभाजित, पैनल ने 21 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट पेश की। पैनल ने शिक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, स्वास्थ्य, कौशल विकास और महिला सशक्तिकरण से संबंधित मामलों पर भी सुझाव दिए। सिफारिशों को स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ये काम करने योग्य हैं।
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के विधायक अमीनुल इस्लाम ने कहा कि पैनल का प्रस्ताव एक “राजनीतिक बयानबाजी” का हिस्सा था। उनका आरोप है कि राज्य सरकार मुसलमानों के बीच विभाजन लाना चाहती है, इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पास इसका कोई आधार नहीं है कि असमिया कौन हैं। साथ ही उन्होंने यह भी सवाल किया कि असमिया और बंगाली मुसलमानों के बीच कई शादियां हुई हैं। ऐसे परिवारों की पहचान कैसे की होगी?