
*कुमार राकेश
भारत और कांग्रेस कभी एक दुसरे के पूरक थे,अब नहीं है और रहेंगे भी नहीं.ये समय की मांग है.समय की सोच है.समय की जरुरत है.समय तेजी से बदल रहा है.भारत भी बहुत तेजी से बदल रहा है.कई मामलो में भारत विश्व के कई विकसित देशो से आगे निकल चुका है .समग्र आर्थिक दृष्टिकोण से भी भारत जल्द ही उन तमाम विकसित देशो की श्रेणी में खड़ा हो जायेगा,ऐसा देश को भरोसा व विश्वास मिल रहा है,देश में कार्यरत मोदी सरकार से.
कांग्रेस का राजेस्थान के उदयपुर में त्रि-दिवसीय चिंतन शिविर शुरू हुआ है.ये शिविर 13 मई से 15 मई तक चलेगा.मृत पड़ी पार्टी में एक जान डालने की ये कवायद है.एक कोशिश है.देखना है कि ये कोशिश कितनी सफल होती है.कांग्रेस के कुछ नेता इस शिविर को 2002 के उस चिंतन शिविर से जोड़कर देख रहे हैं ,जब केंद्र में भाजपा नीत अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी.उसके बाद 2004 में कांग्रेस सत्ता में वापस आ गयी थी.मेरे विचार से 2004 में भाजपा की हार के कई कारण थे.उसमे कांग्रेस किस्मलो उनके कर्मो से नहीं ,किस्मत से सरकार मिल गयी थी.
तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और उनके कुछ विश्वस्तो द्वारा चलाये गए इंडिया शाइनिंग और समय पूर्व चुनाव की वजह से भाजपा हारी थे.इसलिए किस्मत से कांग्रेस को सत्ता मिल गयी थी.फिर कांग्रेस 2004-2014 तक सत्ता पर ऐन केन प्रकारेण काबिज़ रही.
परन्तु आज की स्थिति उलटी है.वो अटल जी थे.वो लाल कृष्ण जी कई गलतियाँ थी.उस हर में अटल सरकार में यशवंत सिन्हा जैसे विभीषण थे.कई नौकरशाहों की पुरानी कांग्रेस भक्ति थी.विकास बहुत हुआ था,परन्तु नकारे नौकरशाहो व कुछ कांग्रेस भक्त मंत्रियों की अकर्मण्यता की वजह से भाजपा 2004 में हारी थी.आज देश में नरेंद्र भाई मोदी की सरकार है.सरकार और शासन में एक गज़ब की स्फूर्ति व स्व-अनुशासन है.मोदी नाम का एक अलग कार्य शैली है.वो भय विकास की गति को बढ़ने को लेकर है.न की एक दुसरे को नीचा दिखाने को लेकर.विश्व में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है और बढ़ रहा है.भारत पहले याचक की भूमिका में था,आज दाता की सशक्त भूमिका में हैं.कोरोना काल में पूरी दुनिया ने ये महसूस कर लिया है ,सिवाय कांग्रेस के.
कांग्रेस की कई चिंतन बैठके पहले हुयी हैं.हम आपको ये भी बता दे कि ये चिंतन शब्द भी कांग्रेस ने भाजपा से नक़ल कर लिया है.पहले कांग्रेस की सिर्फ बैठके हुआ करती थी,जबकि भाजपा की चिंतन शिविर और अनुशासन सत्र आदि .वैसेभारत की सनातन संस्कृति है बेहतर को अपनाने का..उसे सबको अपनाना चाहिए.शायद इससे देश को लाभ हो.देश उत्थान के लिए सब हथकंडा जायज़ है.कहते है -समरथ को नहीं दोष गोसाई .
कांग्रेस के 2022 वाली तर्ज़ पर पार्टी ने 2013 में एक बड़े शिविर का आयोजन 2013 में भी जयपुर में किया था.हालांकि उस वक़्त राज्य के साथ केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार थी.उस शिविर में प्रियंका गाँधी वाड्रा को लांच करने की बात थी,जो नहीं हो सका.उसके लिए उनकी मां और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी खुद जिम्मेदार बतायी गयी थी.उस काल में राहुल गाँधी ने एक निरीह व मासूम व्यक्ति के तौर पर देश के सामने स्वयं को महिमा मंडित किया था.जयपुर के उसे बिरला केंद्र में पूरा माहौल उनके लिए आंसुओं के साथ गमगीन हो गया था.मंच पर बैठे सभी नेता रो रहे थे,कुछ को छोड़कर.उस भाषण का आम जन पर ये प्रभाव रहा कि 2014 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी थी.आजतक सत्ता से बाहर है ,सम्भवतः 2024 और उसके बाद भी सत्ता से बाहर ही रहेंगी .जैसा कि आज कांग्रेस की समग्र स्थिति हैं.
शायद वो 2013 का शिविर का विशेष प्रभाव रहा हो,जिससे 2014 में कांग्रेस की करारी हार हुयी.बाद में2019 में भी कांग्रेस की बुरी हार हो गयी.लगता है उससे आगे भी कांग्रेस को हारो का हार ही मिलने वाला हैं.ऐसा उदयपुर में 13 मई को पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी के भाषणों से प्रतीत हो रहा है.उनके सभी विचार पूरे हिंदुस्तान के लिए कम,परन्तु सिर्फ मुसलमान समाज केलिए ज्यादा था.पर अब उनका वो मुस्लिम कार्ड भी नहीं चलने वाला.शायद सोनिया जी को ये एहसास होना चाहिए कि भारत का सजग मुस्लिम समाजये समझ चुका है कि कांग्रेस ने उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया,जबकि भाजपा से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी और उनकी सरकार सच में सबका साथ,सबका विश्वास के नारे पर काम कर रही है,जैसा कि गुजरात के भरूच में १२ मई 2022 को पूरी दुनिया ने देखा-प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई और दिव्यांग अयूब भाई व उनके बेटी के प्रति अद्भुत परस्पर प्रेम,सद्भाव व आशीर्वचन का भावपूर्ण दृश्य..!!!!!!!!!
*कुमार राकेश