भारत एक वैश्विक जैव-विनिर्माण केंद्र बनने की ओर अग्रसर है और 2025 तक दुनिया के शीर्ष 5 देशों में शामिल हो जाएगा- डॉ. जितेन्द्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बायोटेक शोधकर्ताओं और स्टार्ट-अप के लिए ‘एकल राष्ट्रीय पोर्टल’ लॉन्च किया
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21मई। “एक राष्ट्र, एक पोर्टल”की भावना को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री, डॉ. जितेनन्द्र सिंह ने आज बायोटेक शोधकर्ताओं और स्टार्ट-अप्स के लिए एकल राष्ट्रीय पोर्टल लॉन्च किया।
पोर्टल ‘’बायोआरआरएपी’’ देश में जैविक अनुसंधान और विकास गतिविधियों के लिए नियामक अनुमोदन की मांग करने वाले सभी लोगों की जरूरत पूरी करेगा और इस प्रकार ‘’ईज ऑफ साइंस के साथ-साथ ईज ऑफ बिजनेस’’ के लिए भी एक बड़ी राहत प्रदान करेगा।
बायोलॉजिकल रिसर्च रेगुलेटरी अप्रूवल पोर्टल (बायोआरआरएपी) लॉन्च करने के बाद डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा भारत एक वैश्विक बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर अग्रसर है और यह 2025 तक दुनिया के शीर्ष 5 देशों में शामिल हो जाएगा।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यह पोर्टल हितधारकों को एक विशिष्ट बायोआरआरएपी आईडी के माध्यम से किसी विशेष अनुप्रयोग के लिए दी गई मंजूरी को भी अनुमति प्रदान करेगा। उन्होंने डीबीटी के इस अनूठे पोर्टल को भारत में ‘ईज ऑफ डूइंग साइंस एंड साइंटिफिक रिसर्च और ईज ऑफ स्टार्ट-अप्स’ की दिशा में एक कदम बताया। उन्होंने कहा कि जैव-प्रौद्योगिकी तेजी से भारत में युवाओं के लिए अकादमिक और आजीविका के साधन के रूप में उभर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में देश में 2700 से अधिक बायोटेक स्टार्ट-अप्स और 2500 से अधिक बायोटेक कंपनियां काम कर रही हैं।
इस पोर्टल के लॉंच को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण बताते हुए, डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यह पोर्टल अंतरविभागीय तालमेल को मजबूत करेगा और जैविक अनुसंधान के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने तथा उनके लिए अनुमति प्रदान करने वाली एजेंसियों के कामकाज में जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रभावकारिता का समावेश करेगा। जैव प्रौद्योगिकी विभाग को बायोआरआरएपी पोर्टल शुरू करने के बारे में बधाई देते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यह सुझाव दिया कि विभाग को अपनी प्रक्रियाओं को सरल और प्रभावी बनाने के लिए अन्य तंत्र को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि जैव प्रौद्योगिकी के अलावा जैव-विविधता से संबंधित जैविक कार्य, वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण और सुरक्षा की नवीनतम विधियां, वन और वन्यजीव, जैव-सर्वेक्षण तथा जैविक संसाधनों के जैव-उपयोग भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भारत में गति पकड रहे हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न जैविक क्षेत्रों में अनुसंधान लगातार भारत में अपना विस्तार कर रहा है जिसमें विभिन्न सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के अनुदान मदद कर रहे हैं। इनमें से कई शोध एक या एक से अधिक नियामक एजेंसियों के दायरे में आते हैं जो पहले शोध प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं और उसके बाद शोधकर्ता उस विशिष्ट शोध पर कार्य करता है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यह भी कहा कि वर्तमान में एक पोर्टल पर शोध प्रस्ताव के लिए अपेक्षित नियामक अनुमोदन का पता लगाने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है इसलिए, ऐसे जैविक शोधों को अधिक विश्वसनीयता और मान्यता प्रदान करने के लिएभारत सरकार ने एक वेब प्रणाली विकसित की है, जिसके तहत प्रत्येक अनुसंधान, जिसमें नियामक निरीक्षण की आवश्यकता होती है, उसकी पहचान “बायोआरआरएपी आईडी”नामक एक विशिष्ट आईडी द्वारा की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि यहपोर्टल एक गेटवे के रूप में काम करेगा और शोधकर्ता को नियामक मंजूरी के लिए अपने आवेदनों को अनुमोदन के चरणों को देखने और विशेष शोधकर्ता/संगठन द्वारा किए जा रहे सभी शोध कार्यों के बारे में प्रारंभिक जानकारी प्राप्त करने में भी मदद करेगा।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने डीबीटी अधिकारियों को इस विशिष्ट राष्ट्रीय पोर्टल के बारे में व्यापक प्रचार करने का निर्देश देते हुए इस पोर्टल के माध्यम से पंजीकरण और नियामक अनुमोदन की सभी बारीकियों का पता लगाने वाली लघु अवधि की फिल्में बनाने का भी निर्देश दिया।
वैश्विक बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभर रहे भारत के बारे में पुन: जानकारी देते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत विश्व स्तर पर जैव प्रौद्योगिकी के 12 शीर्ष गंतव्यों में से एक है और यह एशिया प्रशांत क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा जैव प्रौद्योगिकी गंतव्य है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 तक वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाजार में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का योगदान बढ़कर 19 प्रतिशत होने की उम्मीद है। जो 2017 में केवल तीन प्रतिशत था। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जैव अर्थव्यवस्था का योगदान में भी लगातार वृद्धि हो रही है और यह पिछले वर्षों में बढकर 2020 में 2.7 प्रतिशत हो गया जो 2017 में केवल 1.7 प्रतिशत था। वर्ष 2047 के शताब्दी वर्ष में यह 25 वर्षों की जैव-अर्थव्यवस्था यात्रा के बाद नई ऊंचाइयों पर पहुंच जाएगा।
कोविडमहामारी का उल्लेख करते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने भारतीय वैज्ञानिक संगठन और उद्यमों की ताकत की सराहना करते हुए कहा कि हमारे संस्थान विभिन्न टीके, निदान और अन्य उपकरण लेकर आए हैं जिन्होंने कोविड-19 परिस्थितियों से लड़ने में हमारी बहुत मदद की है। इसके अलावा हमारे नियामक चाहे वो जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद या केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन हो सभी ने नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और अनुमोदन के लिए समय-सीमा को कम करने के बारे में अथक कार्य किया है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि कोविड महामारी के दौरान यह देखा गया है कि अनुमोदन के लिए विभिन्न नियामक एजेंसियों को प्रस्तुत किए गए आवेदनों को लिंक करने की आवश्यकता है ताकि सभी आवेदनों की स्थिति के बारे में एक ही स्थान पर जानकारी प्राप्त हो सके। इसके अलावा यह भी अनुभव किया गया है कि एक देश के रूप में हमारे पास सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में काम कर रहे हमारे शोधकर्ताओं द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों का भंडार भी होना चाहिए। इससे न केवल हमें अपनी वैज्ञानिक शक्ति और विशेषज्ञता को समझने में सहायता मिलेगी बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान के परिणाम प्राप्त करने के लिए सक्षम नीतियां बनाने में भी मदद मिलेगी।
अपने संबोधन में, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश एस गोखले ने कहा कि जो बायोआरआरएपी विकसित किया गया है वह इस पोर्टल पर जमा किए गए सभी शोध अनुप्रयोगों के लिए बायोआरआरएपी आईडी बनाता है और इस आईडी का उपयोग करके संबंधित नियामक एजेंसियों को आगे आवेदन जमा करने की प्रक्रिया शुरू करनी है। उन्होंने कहा कि यह पोर्टल केवल शोध संबंधी गतिविधियों के लिए समर्पित है न कि उत्पाद विकास के लिए।