पार्थसारथि थपलियाल
सच कहूँ, मुझे राहुल गांधी से व्यक्तिगत रूप से कोई परेशानी नही है। होनी भी नही चाहिए। परेशानी तब हो जब हमारा साझा खेत हो या साझी दुकान हो। या साझा काम हो। लेकिन जब से यह ज्ञान बढ़ा कि राहुल गांधी कोंग्रेस के पी एम मैटीरियल हैं, तब से उनके राजनीतिक वक्तव्यों के माध्यम से उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर समझना शुरू कर दिया। तबसे
परेशानी इसलिए होती है कि कांग्रेस में पार्टी को बचाने की बजाय सभी चिंतन बैठकों में इसी चिंता पर चिंतन होता है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री कैसे बनाया जाय। बचपन की बात थी हमारे गाँव मे एक कोल्हू था। लोग अपनी अपनी बारी से आते और सरसों की पिराई करके किसी बर्तन में तेल अपने घर ले जाते थे। एक बुजुर्ग से इंसान थे, वे अक्सर तेल पिराई करने के लिए आने वाले लोगों के साथ यहां की वहां की और जहां की बातें करते और बांस के बनाये हुक्के के धुंए में सब उड़ाता रहता था। सरसों पेरने वाला बड़ी मस्त चाल के साथ कोल्हू चला रहा था। लोगों की लाइन बढ़ती जा रही थी लेकिन पेरने वाले कि चाल में तेज़ी नहीं आ रही थी। कुछ जवान लड़के भी कोल्हू के पास खड़े थे जो बार बार कह रहे थे ताऊ! आप हटो, हम घुमा देते हैं। वे नही माने। दिन नवम्बर के थे, पहाड़ों में अधिक देर तक धूप रहती नही। शाम जल्दी हो जाती है.. लोग चिल्लाने लगे.. जल्दी करो इतनी देर में तो तीन लोगों का काम हो चुका होता..एक बुजुर्ग जो उधर से निकल रहा था, बात समझ चुका था..कड़क कर बोला हट जा कोल्हू से..ये लड़के घुमा देंगे कोल्हू। “बूढ़ा बैल न करे न हटे”। बात बचपन की थी तब समझ मे नही आई थी।
आइडिया ऑफ इंडिया के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए इंग्लैंड गए कांग्रेस के युवा नेता (उनका पद ज्ञात नही) राहुल गांधी के कई वक्तव्य सुनने के बाद राज समझ मे आया कि जी 23 भी इसीलिए चिंतित है। इंग्लैंड में “पूरे देश मे तेल छिड़कने वाला वक्तव्य” एक अनुभवी राजनेता जैसा वक्तव्य नही था। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में भारत को राज्यों का संघ बताया। राष्ट्र और नेशन की अवधारणा को नही स्पष्ट कर सके ऐसी स्थिति में केम्ब्रिज में अध्ययन के लिए गए भारतीय अधिकारी सिद्धार्थ वर्मा द्वारा भारतीय राष्ट्र को संविधान के माध्यम से, भारतीय शास्त्रों और चाणक्य के राजनीतिक चिंतन से समझाया तो लगा कि 2-3 माह पहले उनके द्वारा उठाया गया “हिन्दू और हिंदुत्व” की परिभाषा पर फैलाया गया भ्रम भी इसी तरह का था। केम्ब्रिज वाले इंटरव्यू में हिंसा पर अपना पक्ष प्रस्तुत न कर पाना लंबे पॉज के बाद दर्शकों की तालियां बजना” …. किसी नेता का उजाला पक्ष तो नही।
राहुल गांधी पर यह टिप्पणी निजी नही है। वे अपने परिवार के लाडले हैं। भारत के सम्मानित नागरिक हैं। निजी तौर पर वे नेशन को कैसे भी परिभाषित करें किसी को कोई फर्क नही पड़ता, लेकिन जो राजनेता भारत की सबसे पुरानी पॉलिटिकल पार्टी का हो, जो पार्टी 55-60 साल देश पर शासन कर ली हो, उस पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार का राष्ट्रीय ज्ञान, समझ और परिपक्वता अगर अधकचरी हो तो ऐसे व्यक्ति को स्वयं ही अपने मन को नियंत्रित कर लेना चाहिए। जो राजनेता 2004 से लगातार प्रधानमंत्री पद की कोचिंग ले चुका हो, जिससे पूरी कांग्रेस पार्टी उम्मीद लगायी हो उसका प्रदर्शन इस हद का हो तो क्या उसे देश का नेतृत्व करना चाहिए? एक उदाहरण से समझते हैं- मानो कि उपग्रह लॉन्चिंग के लिए लॉन्चिंग पैड पर खड़ा हो, उल्टी गिनती शुरू हो चुकी हो तब उपग्रह में मैन्युफैक्चरिंग कमी का पता चले तो क्या करना चाहिए? राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं या नही, लेकिन कोई तो है जो चाहता है। वरना दुनिया में 18-19 साल अभ्यास के लिए किसी राजनेता को नही मिले। क्योंकि कुछ लोग उनमें प्रधानमंत्री की प्रतिभा देखते हैं, देखते है या देखने का ढोंग करते हैं उन्हें यह छूट नही दी जानी चाहिए। एक कमजोर शासक सदैव दरबारियों और धूर्तों की कठपुतली बना रहता है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है इसमें प्रयोग की आवश्यकता नही है।
पंजाबी में एक कहावत है-
पंचां दी राय सर मथे, परनाला उत्थे दा उत्थे।।
लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)