समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3जून। देश में पिछले 2 साल से कोरोना महामारी के कारण तमाम परेशानियां आई कितनों नें अपने नौकरी से हाथ धोए तो कितनी कंपनियां ही बंद हो गई। यहां तक की मध्यमवर्गिय परिवरों की स्थितियां भी बेहद निचले स्तर पर आ गए। हालांकि अब लोगों की जिंदगी धीरे- धीरे पटरी पर आ रही है। लेकिन इस दौरान अगर कुछ ज्यादा नुकसान हुआ तो वो महिलाओं का…जहां एक तरफ कोरोना के कारण उनकी नौकरियां तो गई है लेकिन उन पर घर और परिवार का इतना ज्यादा जबाव पड़ा कि काफी महिलाओं ने नौकरी और जॉब छोडकर घर में रहना ज्यादा उचित समझा।
महज दो साल में देश में कामकाजी महिलाओं की संख्या 19 फीसदी से घटकर महज 9 फीसदी रह गई है।2010 में, महिलाओं ने देश के कार्यबल का 26% हिस्सा बनाया कोरोना महामारी ने देश के जॉब मार्केट को बुरी तरह प्रभावित किया है।
विश्व बैंक के अनुसार, भारत के कार्यबल में कामकाजी महिलाओं की संख्या 2010 में 26% थी, जो 2020 में 19% से कम थी, और कार्यबल में कामकाजी महिलाओं की संख्या 2022 में गिरकर 9% हो गई है क्योंकि कोरोना महामारी बिगड़ गई है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कार्यबल में लौटने की संभावना कम है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है।
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स विश्लेषण के अनुसार, देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच रोजगार का अंतर 58 फीसदी है, जिसे अगर हटा दिया जाता है, तो 2050 तक भारत की अर्थव्यवस्था को लगभग एक-तिहाई तक बढ़ा सकता है। यह निश्चित डॉलर मूल्य के संदर्भ में 6 ट्रिलियन (लगभग 465.60 लाख करोड़ रुपये) के बराबर है।
महिलाएं भारत की कुल जनसंख्या का 48% हैं लेकिन देश के सकल घरेलू उत्पाद में उनका योगदान केवल 17% है। चीन में जीडीपी में महिलाओं का योगदान 40% तक है। लैंगिक असमानता को समाप्त करके कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ाने से 2050 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20 20 ट्रिलियन (लगभग 1,552 लाख करोड़ रुपये) जोड़ने में मदद मिलेगी।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, महामारी से ठीक पहले भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई थी। कार्यबल में कामकाजी महिलाओं की गिरावट चिंताजनक है। दूसरी ओर, सरकार ने कामकाजी महिलाओं के लिए काम करने की स्थिति में सुधार के लिए बहुत कम काम किया है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं।