जग का मुजरा- आधा हक़ीकत आधा फ़साना

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पार्थसारथि थपलियाल
पार्थसारथि थपलियाल

पार्थसारथि थपलियाल

दुनिया एक रंगमंच है। इस रंगमंच में कब यवनिका पतन होता है पता ही नही चलता। इस रंग मंच में अदाकार आते हैं अपने अपने किरदार अदा कर चले जाते हैं। रंगमंच उठने के बाद पीछे जो छूट जाती हैं वे उस उजले नाटक की काली निशानियां होती हैं। लोक नाटकों में खासकर उत्तर भारत की बात करें तो कुचामणि खयाल, रम्मत, भगत, स्वांग, सांग और नौटंकी लोकनाटक के रूप हैं। नाटक और नौटंकी में वही अंतर होता है जो गमले के फूलों और जंगली के फूलों में होता है। हाल के दिनों की कुछ घटनाओं पर गौर करेंगे तो पता चल जाता है।
बात वर्ष 2020 की है। दुनिया मे कोरोना का रोना सभी जगह था। एक दिन अचानक यह पता चलता कि तब्लीगी जमात के मौलाना साद के आमंत्रण 2000 से अधिक मुस्लिम धर्म प्रचारक तब्लीगी सेंटर दिल्ली में उपस्थित हैं। सरकार चौकन्नी हुई। सब से अधिक चौकन्ना था अफवाही नौटंकी मीडिया। मौलाना साद के गिरफ्तारी आर्डर जारी हुये। कुछ आदेश हाथी के दांतों की तरह होते हैं। कोर्ट ने मौलाना को गिरफ्तार न कर पाने की हीलाहवाली के कारण पुलिस को फटकारा। कहाँ गए मौलाना साद। रसूख न होता तो साद की जगह कहाँ होती? शुरू में मौलाना साद की हेंकड़ी देखने लायक थी। शायद 2020 की मार्च 16 की बात हो एक स्कॉलर जिनका नाम सरेश ज़फरवाला है, चुगलखोर मीडिया में बता रहे थे- ‘मौलाना साद वैसे नही हैं जैसे प्रोजेक्ट किया जा रहा है’। सच कहूँ बात समझ मे आ गयी कि लोकतंत्र की नौटंकी नौचंदी मेले में शुरू हो गई।
1974 में एक फ़िल्म आई थी रोटी। इस फ़िल्म का एक गाना जिसे लिखा था आनंद बक्षी ने और गाया था किशोर कुमार ने, बहुत लोकप्रिय हुआ था-
ऐ बाबू ये पब्लिक है पब्लिक
ये जो पब्लिक है सब जानती है
ये जो पब्लिक है
ये जो पब्लिक है सब जानती है
ये जो पब्लिक है
अजी अंदर क्या है बाहर क्या है
अंदर क्या है बाहर क्या है
ये सब कुछ पहचानती है….
लोकतंत्र में लोगों की याददास्त… आर्यन खान का केस याद है आपको? भाई साहब भूलिये नही। बॉलीवुड की बहुत बड़ी हस्ती शाहरुख खान साहब के साहबजादे-आर्यन खान। इन साहब के प्रति मेरा कोई बुरा इरादा नही। लेकिन प्रकरण इनके नाम पर शुरू हुआ 3 अक्टूबर 2021 को। तथाकथित क्रूज ड्रग पार्टी में कॉर्डेलिया क्रूज से मुम्बई से गोवा जा रहे थे। बड़ा हंगामा तमाशाई मीडिया ने खड़ा किया था। स्वापक नियंत्रण ब्यूरो यानी एन सी बी ने इस क्रूज पर छापा मारा। लड़के पार्टी एन्जॉय कर रहे थे। उन दिनों एनसीबी के एक करामाती अफसर समीर वानखेड़े का नाम खूब चला, जिन्होंने मीडिया को ये खुराक दी कि इस ड्रग पार्टी में एनसीबी ने तथाकथित कोकीन, हशीश, एमडी और कई अन्य ड्रग्स जब्त किए थे। 26 दिनों तक आर्यन को जेल में रहना पड़ा। मामला दो बार कोर्ट में पहुंचा। दोनों बार जमानत याचिका कोर्ट ने रद्द की। इसका मतलब साक्ष्य मजबूत थे। समझ रहे है आप! यहाँ भी सलमान प्रकरण वाला काला हिरण कांटा चुभने से खुद ही मर गया होगा। आपको याद होगा महाराष्ट्र का वह मंत्री जिसका नाम नवाब मलिक है, वे आजकल जेल में हैं, उन दिनों समीर वानखेड़े को जेल में डालने के लिए, समीर की वंशावली भाटों की तरह सुनाया करते थे। वे शिकार करने आये थे शिकार बनके चले।
खैर, अभी तीन दिन पहले एन सी बी के डायरेक्टर जनरल एस एन प्रधान मीडिया को बता रहे थे कि ‘पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में चार्ज शीट में 14 लोगों में से आर्यन सहित 6 लोगों को कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है’। कोर्ट ने अच्छा किया। नही तो अब तक अक्सर जांच में हेरोइन के जगह आटा बताकर अभियुक्तों को बचाया जाता रहा है। उस 7 महीने की प्रताड़ना का क्या होगा? क्या एन सी बी ने सस्ती लोकप्रियता के लिए गिरफ्तारी की थी? या यहां भी काला हिरण…..अगर साक्ष्यों के अभाव था तो कोर्ट ने बेल एप्लीकेशन क्यों रिजेक्ट की थी।
आर्यन ड्रग केस किसी जासूसी उपन्यास से कम नही।
यही तो जग का मुजरा है। मुजरे को सिर्फ देखें…।
1967 में एक फ़िल्म आई थी-तीसरी कसम। इस फ़िल्म में शैलेन्द्र का लिखा एक गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था उस गाने ने हमें आज तक बर्बाद करके रखा है। वो गाना था-
सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है
न हाथी है ना घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है
सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है…

लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)

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