गुजरात समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में मवेशियों और भैंसों में तेजी से फैल रहा है लम्पी वायरस

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5अगस्त। गांठदार त्वचा रोग ने दूध के उत्पादन को लेकर खतरे की घंटी बजा दी है. बता दें कि यह गंभीर वायरल संक्रमण गुजरात समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में मवेशियों और भैंसों के बीच फैल रहा है. जिसके चलते राज्य सरकारें भी अब अलर्ट मोड पर आ गई हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए युद्धस्तर पर तैयारी शुरू कर दी गई है. अकेले गुजरात में ही करीब 1 लाख मवेशियों का टीकाकरण अभियान लॉन्च किया गया है. सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में ही सिर्फ एक महीने के भीतर की करीब 50 हजार मवेशी चपेट में इस वायरल संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं.

अहमदाबाद स्थित, हेस्टर बायोसाइंस लिमिटेड के एमडी और सीईओ राजीव गांधी खुलासा करते हैं कि डेयरी उद्योग के लिए बनाए गए गॉट पॉक्स के टीके को कई राज्य सरकारें और प्राइवेट प्लेयर्स स्टॉक कर रहे हैं. सरकार की ओर से मवेशियों और भैंसों में गांठदार त्वचा रोग के कारण होने वाली मौतों को रोकने और मृत्यु दर कम करने के लिए इसी टीके के उपयोग की सलाद दी जाती है. बता दें कि हेस्टर बायोसाइंस भी एक पशु स्वास्थ्य देखभाल और पोल्ट्री कंपनी है, जो कि डेयरी पशुओं में कई जानलेवा बीमारियों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक टीके बनाती है.

गॉट पॉक्स टीके के उत्पादन में अग्रणी हेस्टर कंपनी फिलहाल लम्पी स्किन डिजीज के प्रसार को रोकने के लिए सभी तरह से अपने उत्पादन को बढ़ाने का काम कर रहा है, ताकि बीमारी से मुकाबला किया जा सके. गांधी कहते हैं, “हम इस महीने 1,50,000 शीशियों का उत्पादन कर रहे हैं, जो कि लगभग 5 मिलियन खुराक हैं. यह हमारे 35 वर्षों के इतिहास में इस टीके पर निर्मित सबसे अधिक डोज हैं.”

क्या है गांठदार त्वचा रोग (लम्पी वायरस)
यह रोग वेक्टर जनित है, जो मक्खियों, मच्छरों और यहां तक कि टिक्कों से फैलता है और इसकी मृत्यु दर उच्च होती है. एलएसडी से प्रभावित जानवरों में तेज बुखार, सतही लिम्फ नोड्स, त्वचा के छाले या निशान, क्षीणता और कम दूध उत्पादन के लक्षण दिखाई देते हैं. गुजरात सरकार द्वारा एकत्र किए गए आधिकारिक आंकड़ों का दावा है कि 50,000 से अधिक गायों को संक्रमित किया गया है और 1,500 की मौत हो गई है, हालांकि वास्तविक संख्या काफी अधिक हो सकती है.

दूध उत्पादन पर कितना खतरा ?
गुजरात कॉ-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) के प्रबंधन निदेशक आर. एस सोढी कहते हैं, ‘अगर ठीक से ख्याल नहीं रखा गया तो अपनी आजीविका के लिए मवेशियों पर निर्भर रहने वाले किसानों और पशुधन मालिकों पर इस बीमारी का बहुत भारी प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है.’

यह पूछे जाने पर कि इस बीमारी का अब तक राज्य में दूध उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ा है, सोढ़ी का कहना है कि अभी चिंता की कोई बात नहीं है. “दूध की खरीद में अब तक प्रति दिन केवल 50,000 लीटर की गिरावट आई है, जो कि 20 मिलियन लीटर से अधिक की हमारी दैनिक खरीद में केवल 0.25% की गिरावट है. यह बीमारी ज्यादातर मानसून के मौसम में फैलती है और हमें उम्मीद है कि चीजें जल्द ही नियंत्रण में आ जाएंगी.’

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