राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय वायु सेना (गरुड़) के 924678 सार्जेंट श्याम वीर सिंह को वायु सेना पदक (वीरता) प्रदान किया
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15अगस्त। भारतीय वायु सेना (गरुड़) के 924678 सार्जेंट श्याम वीर सिंह एक गरुड़ उड़ान के पद पर तैनात है।
वह एक ऑपरेशन के दौरान, गरुड़ टीम के स्काउट के तौर पर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए 96 घंटे के एक मिशन पर थे। इस मिशन को 13,000 फीट की ऊंचाई पर (आतंकवादियों की उपस्थिति के बारे में एक विशिष्ट खुफिया जानकारी मिलने पर) अंजाम दिया जा रहा था। इस ऑपरेशन को पुलवामा के त्राल जिले के धाचीगाम रिजर्व फॉरेस्ट में चलाया गया था।
21 अगस्त 2021 को लगभग प्रातः 0630 बजे गरुड़ दल अपने लक्ष्य वाले इलाके की ओर बढ़ रहा था। इसी दौरान अचानक, एक आतंकवादी ने बाहर आकर सुरक्षा बलों पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी। ऐसे में सार्जेंट श्याम वीर ने जबरदस्त धैर्य और साहस का परिचय देते हुए इस भारी गोलाबारी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी। इन शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों से विचलित हुए बिना, सार्जेंट श्याम वीर ने असाधारण साहस का परिचय दिया और एक अनुकूल सामरिक स्थिति में पहुंचते हुए दस मीटर की दूरी से आतंकवादी पर धावा बोलते हुए उसे मार गिराया। बाद में इस आतंकवादी की पहचान जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन के श्रेणी ए आतंकवादी के रूप में हुई।
इस अदम्य साहसपूर्ण कार्य के लिए सार्जेंट श्याम वीर सिंह को वायु सेना पदक (वीरता) से सम्मानित किया गया है।
राष्ट्रपति ने सार्जेंट परमेंदर सिंह परमार, फ्लाइट गनर को वायु सेना पदक (शौर्य) प्रदान किया
912788 सार्जेंट परमेंदर सिंह परमार, फ्लाइट गनर एक एमआई-17 वी5 हेलीकॉप्टर यूनिट में तैनात हैं।
13 सितंबर 2021 को जामनगर के जिला प्रशासन से गुजरात में कलावाड़ के समीप बंगा गांव से छह नागरिकों को बचाने के संबंध में एक संदेश प्राप्त हुआ था। बचाव अभियान के तहत एक इमारत से उन छह लोगों को जीवित बचा लिया गया जो नदी के भारी बहाव में डूबने के कगार पर थे। गांव पहुंचने पर चालक दल ने उफनती नदी के बीच एक जर्जर घर को देखा। उन्होंने जल्द ही स्थिति की गंभीरता को भांप लिया क्योंकि भारी बारिश हो रही थी और नदी का प्रवाह तेजी से बढ़ रहा था।
सार्जेंट परमार और एक अतिरिक्त फ्लाइट गनर ने इमारत की छत पर विंच क्रेडल को नीचे करके नागरिकों को बचाने की कोशिश की लेकिन उसे पकड़ने के लिए कोई भी नहीं आया। आसपास की इमारतों के ऊपर अन्य नागरिकों को जर्जर इमारत की ओर इशारा करते हुए देखकर उन्होंने अनुमान लगाया कि फंसे हुए नागरिक छत पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। चालक दल ने सामने के मुख्य दरवाजे से नागरिकों को बचाने के दो असफल प्रयास किए, लेकिन नदी के भारी बहाव और भय के कारण नागरिक विंच क्रेडल पर नहीं चढ़ सके। ऑपरेशन के दौरान बारिश की तीव्रता के साथ-साथ नदी का बहाव भी बढ़ गया था। सार्जेंट परमार ने आकलन किया कि यदि समय पर कार्रवाई नहीं की गई तो जर्जर इमारत में फंसे लोग जल्द ही बह जाएंगे। खुद के बह जाने के खतरे के बावजूद उन्होंने अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना स्वेच्छा से इमारत के दरवाजे पर तेजी से उतर गए। नीचे पहुंचने पर उन्होंने छत की सीढ़ी और एक दीवार के बह जाने के साथ ही नदी के कहर को महसूस किया। उन्होंने लोगों को जल्द निकालने के लिए तत्काल एक योजना बनाई और छह नागरिकों में से दो को एक साथ विंच क्रेडल पर चढ़ने में मदद की। अंतत: सभी को बचा लिया गया और सबसे आखिर में वह उस जर्जर इमारत से निकल आए। तेजी से अनियंत्रित हो रही स्थिति की गंभीरता का आकलन करने की उनकी क्षमता, समय पर हस्तक्षेप, व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह न करना और खतरे के बीच अदम्य साहस दिखाने के कारण सभी छह फंसे हुए लोगों को जीवित बचा लिया गया। अदम्य साहस के इस कार्य के लिए सार्जेंट परमेंदर सिंह परमार को वायु सेना पदक (शौर्य) से सम्मानित किया जाता है।
राष्ट्रपति ने ग्रुप कैप्टन रवि नंदा (27686) फ्लाइंग (पायलट) को वायु सेना मेडल (वीरता) प्रदान किया
ग्रुप कैप्टन रवि नंदा (27686) फ्लाइंग (पायलट) सी-130जे ट्रांसपोर्ट स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर हैं।
20 अगस्त 2021 को ऑपरेशन देवी शक्ति के एक हिस्से के तौर पर अफगानिस्तान के अस्थिर युद्धग्रस्त राष्ट्र में एक विशेष ऑपरेशन का जिम्मा उन्हें दिया गया। वहां से दूतावास के कर्मचारियों को 16 अगस्त 21 को ही निकाल लिया गया था, इसलिए जमीनी स्तर की भरोसेमंद खुफिया जानकारी हासिल करने का कोई स्रोत नहीं था। वे काबुल के संघर्ष क्षेत्र के बीचों बीच उड़ान भर कर जाने के मिशन के कमांडर थे, ताकि वहां जान के आसन्न खतरे का सामना कर रहे भारतीयों को तत्परता से निकालने के लिए एक ‘विशेष सरकारी टीम’ को वहां दाखिल किया जा सके।
उन्होंने इस आधी रात के बेहद उच्च जोखिम वाले मिशन का नेतृत्व किया। इसमें उन्होंने अत्यधिक खतरों का सामना किया। उनके सामने एक पूरी तरह से अनियंत्रित हवाई क्षेत्र था, अज्ञात हवाई प्लेटफार्मों का घना यातायात था, बेहद कठिन पहाड़ी इलाकों के बीच में बेहद सीमित विजुअल संकेत थे और इनसे भी अधिक ये कि वहां एक शत्रुतापूर्ण ज़मीनी स्थिति थी जिसमें छोटे हथियार, रॉकेट से छोड़े जाने वाले ग्रेनेड और शोल्डर लॉन्च मिसाइलें मौजूद थीं। लक्षित हवाई क्षेत्र में खुफिया जानकारी की कमी के कारण ऊंचे स्तर की अप्रत्याशितता और खतरे मौजूद थे। कट्टरपंथी लड़ाकों की उपस्थिति में एक अस्थिर युद्ध क्षेत्र में पैदा हुए अभूतपूर्व खतरों के बीच इस खतरनाक मिशन में उड़ान भरते हुए उन्होंने असाधारण पेशेवर साहस, धैर्य और नेतृत्व का प्रदर्शन किया। एक उथल पुथल भरी जमीनी स्थिति के बीच, हवाई अड्डे के आसपास छिटपुट गोलीबारी और जीवन और उपकरणों के लिए संभावित खतरे के बीच, उन्होंने काबुल में सुरक्षित रूप से उतरने के लिए नाइट विजन गॉगल्स (एनवीजी) का प्रभावी ढंग से उपयोग किया। उन्होंने इस परिस्थिति में तीव्र जागरूकता, गतिशील निर्णय क्षमता दिखाई और एक घंटे से अधिक समय तक विमान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्पेशल फोर्सेज़ की अपनी टीम को नियंत्रित किया। उन्होंने अंधेरी रात में एक कुशलतापूर्ण सामरिक प्रस्थान की योजना बनाई और 87 भारतीयों को सुरक्षित रूप से दुशांबे पहुंचाया।
असाधारण साहसपूर्ण इस कृत्य के लिए ग्रुप कैप्टन रवि नंदा को वायु सेना मेडल (वीरता) से सम्मानित किया जाता है।
राष्ट्रपति ने ग्रुप कैप्टन राहुल सिंह फ्लाइंग (पायलट) को वायु सेना मेडल (वीरता) प्रदान किया
ग्रुप कैप्टन राहुल सिंह (27001) फ्लाइंग (पायलट) सी-17 ट्रांसपोर्ट स्क्वाड्रन में तैनात हैं।
15 अगस्त 21 को, ऑपरेशन देवी शक्ति के हिस्से के रूप में, अधिकारी को तालिबान के द्वारा उस समय अफगानिस्तान को नियंत्रण में लिए जाने की स्थिति में काबुल से भारतीय दूतावास के कर्मचारियों और प्रवासी भारतीयों को निकालने के लिए तीन सी -17 विमानों के मिशन कमांडर के रूप में जिम्मेदारी दी गई थी । मैनपैड्स (मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम) और हवाई अड्डे के चारों ओर छोटे हथियारों से गोलीबारी के साथ किसी नेविगेशन सहायता न होने और संचार के पूरी तरह बंद होने की वजह से उपजे वास्तविक खतरे के बीच, मिशन को जटिल योजना और व्यापक तैयारी की आवश्यकता थी। उड़ान रात में काबुल हवाई अड्डे पर उतरी और पिछले सी-17 विमान द्वारा खाली किए गए स्थान पर विमान को खड़ा किया गया। करीब चार घंटे तक अपनी जगह पर बने रहने के बाद भी बाकी लोगों के हवाईअड्डे पर पहुंचने की संभावना कम ही थी। इस समय पर स्थिति और प्रतिकूल हो गई जब छिटपुट गोलीबारी के बीच नागरिकों के झुंड दक्षिणी हिस्से की दीवार टूटने के साथ अंदर दाखिल होकर उत्तरी भाग में खड़े विमानों की ओर भाग रहे थे। बेहतर और तेजी के साथ लिए निर्णय से अधिकारी ने विमान को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के लिए दुशांबे के लिए तेजी के साथ प्रस्थान किया। दुशांबे में, वह सैटकॉम के माध्यम से एयर हेडक्वार्टर ऑपरेशन रूम और इंडियन एयर अताशे के साथ लगातार संपर्क में रहे ताकि जमीन की स्थितियों की लगातार जानकारी मिले और एक बार फिर एयरपोर्ट पर उतरने की कोशिश की जा सके । आधी रात के करीब, एक अवसर को देखते हुए अधिकारी ने एनवीजी (नाइट विजन गॉगल्स) का उपयोग करके संभावित ब्लाइंड लैंडिंग के लिए काबुल की ओर उड़ान भरी। काबुल हवाई अड्डे से कुछ ही दूर, उड़ान को डूरंड लाइन के पास करीब एक घंटे के लिए हवा में ही (कीमती ईंधन जलाते हुए) रहना पड़ा क्योंकि अब खाली हो चुके एटीसी टावर और रडार अप्रोच सर्विस के साथ संचार स्थापित नहीं किया जा सका। अधिकारी ने ऐसे हालातों में तेजी से निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन करते हुए यूएसएएफ एयरबोर्न कंट्रोल से संपर्क किया और जमीनी स्थिति की सटीक जानकारी प्राप्त की। साथ ही वे सैटकॉम के माध्यम से जमीन पर मौजूद एयर अताशे के साथ संपर्क में थे। काफी देर तक बातचीत के बाद अंततः विमान को अपने जोखिम पर उतरने के लिए मंजूरी दे दी गई। पार्किंग के बाद, अधिकारी ने यूएस ग्राउंड फोर्स कमांडर के साथ संपर्क स्थापित किया और गरुड़ बलों को विमान के चारों ओर एक रक्षात्मक परिधि स्थापित करने का निर्देश दिया। 153 लोगों के चार घंटे की देरी से पहुंचने के बाद; किसी भी ग्राउंड नेविगेशन मदद के न होने के बीच जमीनी हमले से बचने के लिए अधिकारी ने तुरंत विमान को पार्किंग एरिया से बाहर निकाला और एक सामरिक प्रस्थान को सटीकता के साथ अंजाम दिया।
असाधारण साहस के इस कार्य के लिए ग्रुप कैप्टन राहुल सिंह को वायु सेना मेडल (वीरता) से सम्मानित किया जाता है।
राष्ट्रपति ने फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव (35147) फ्लाइंग (पायलट) को वायु सेना पदक (वीरता) प्रदान किया
फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव (35147) फ्लाइंग (पायलट) एक फाइटर स्क्वाड्रन में तैनात हैं।
06 नवंबर 21 को, फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव एक डिटैचमेंट के हिस्से के रूप में जगुआर लड़ाकू विमान को दूसरे बेस पर ले जा रहे थे। जमीन पर उतरने के बाद, अपने विमान का उड़ान के बाद निरीक्षण करते समय, उन्होंने एक जोरदार विस्फोट सुना और देखा कि एक दूसरा जगुआर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और फिसलकर रनवे से बाहर निकल गया। वह, जो अभी भी अपने उड़ान में पहले जाने वाले सभी कपड़ों उपकरणों के साथ थे, तुरंत दुर्घटना स्थल की ओर दौड़े और देखा कि दुर्घटनाग्रस्त विमान उलटा हो गया है, जिसमें काकपिट की छत का एक हिस्सा टूटा हुआ था, दोनों इंजन अभी भी चल रहे थे और पायलट घायल था और इजेक्शन सीट से बंधा हुआ था। इस समय तक, एक क्रैश फायर टेंडर (सीएफटी) पहले ही दुर्घटनास्थल पर पहुंच चुका था और दुर्घटनाग्रस्त विमान की आग बुझाने की कोशिश कर रहा था। इस बीच, दूसरा सीएफटी भी दुर्घटनास्थल पर पहुंच गया और फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव द्वारा उसे सही जगह पर आग बुझाने वाले फोम को फेंकने के लिए निर्देशित किया गया। उन्होंने देखा कि इंजन अभी भी चल रहे थे और पायलट की इजेक्शन सीट एक्टिव थी, जिससे आग और विस्फोट का गंभीर खतरा बना हुआ था। इसके अलावा, पायलट उल्टे हो चुके विमान से निकलने में सक्षम नहीं था। बिना समय बर्बाद किए और अपने जीवन के लिए किसी भी खतरे के बारे में बिना सोचते हुए, फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव उल्टे हो चुके कॉकपिट में रेंग कर गए, क्रैश गैंग बार का इस्तेमाल किया और इंजन को बंद करने का प्रयास किया। इसी बीच इंजन पर छिड़का पानी गर्म हो गया और कॉकपिट के अंदर उनपर और पायलट पर गिरने लगा। सीएफटी द्वारा बड़ी मात्रा में छिड़काव किए गए सीओटू फोम ने उस सीमित स्थान में सांस लेना मुश्किल बना दिया; लेकिन उन्होंने सभी खतरों की परवाह किए बिना बचाव अभियान जारी रखा। उन्हें फंसे हुए पायलट के पैरों तक पहुंचना पड़ा और आधी बेहोशी में पहुंच चुके पायलट को मुक्त करने के लिए लेग-रिस्ट्रेनर और जी-सूट के खुले हिस्से को हटाना पड़ा। उन्होंने पायलट को विमान से निकालने में मदद की, पायलट के उड़ान के दौरान पहने जाने वाले कपड़ों को हटाने में मेडिकल टीम की मदद की, उन्हें प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने और पायलट को क्रैश स्ट्रेचर पर बांधने में भी मदद की।
फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव ने अपने जीवन के लिए प्रत्यक्ष खतरे का सामना करने के लिए असाधारण साहस और वीरता दिखाई। वह अपनी सामान्य ड्यूटी की जिम्मेदारियों से बहुत आगे निकल गए, आधे बेहोश हो चुके पायलट के बचाव में व्यक्तिगत रूप से खुद को शामिल किया और बचाव अभियान को प्रभावी ढंग से पूरा करने में बचाव दल की सहायता की और मार्गदर्शन किया।
असाधारण साहस के इस कार्य के लिए फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी रवींद्र राव को वायु सेना पदक (वीरता) से सम्मानित किया जाता है।