समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 25अगस्त। भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय परिवहन मंत्री परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटाने का आश्चर्यजनक फैसला RSS की सहमति के बाद ही लिया गया था। बताया जाता है कि संघ और पार्टी उनकी ओर से की जा रही टिप्पणियों को लेकर असहज थी। विपक्षी दलों को भी उनके दिए गए बयान के बाद BJP पर निशाना साधने का मौका मिल रहा था। भाजपा सूत्रों के अनुसार, संघ ने नितिन गडकरी को उनकी ऐसी टिप्पणी को लेकर आगाह किया था, जो उन्हें सुर्खियों में लाती थी। माना जा रहा है कि नितिन गडकरी की ओर से इस ओर ध्यान न देने से निराश आरएसएस ने सुझाव दिया कि भाजपा नेतृत्व उचित कार्रवाई करे। संघ के रुख को देखकर भाजपा नेतृत्व को एक्शन लेने में आसानी हुई जो कि पहले से ही गडकरी के बयान को लेकर खफा था।
इतना ही नहीं यह भी संकेत दिए गए हैं कि यदि गडकरी पार्टी का मूड नहीं भाप पाए तो आगे और कार्रवाई हो सकती है। TOI ने नितिन गडकरी का पक्ष इस पूरे मामले में लेने की कोशिश की, लेकिन उनके ऑफिस की ओर से कहा गया कि वो इस टॉपिक पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी को बाहर किए जाने को कई लोग एक कड़े कदम के रूप में देख रहे हैं, हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि मंत्री पार्टी के मूड को सही तरीके से नहीं भांप पाए तो और भी परिणाम सामने आ सकते हैं।
भाजपा और संघ नेतृत्व दोनों इस बात से सहमत थे कि किसी भी नेता का कद कितना भी बड़ा हो उसे पार्टी लाइन से बाहर जाकर बयान देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पार्टी के सूत्र ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा यह केवल सार्वजनिक रूप से उनके बयान ही नहीं हैं वह अक्सर निजी तौर पर भी पार्टी लाइन से बाहर हो जाते थे, जिससे सरकार और पार्टी को असुविधा होती थी।
नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटाए जाने के फैसले को लेकर चर्चा है कि उनके और संघ नेतृत्व के बीच अब रिश्ते वैसे नहीं रहे। कहा जा रहा है कि संघ नेतृत्व को इस बात से अधिक नाराजगी थी कि नितिन गडकरी ने उनकी बातों को अनसुना किया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नितिन गडकरी की ओर से जो बयान दिए गए उसको लेकर ऐसा न करने की सलाह उनको दी गई लेकिन उसके बावजूद वह इस तरह की टिप्पणी करते थे।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में यह कहकर सुर्खियां बटोरीं कि कभी-कभी मन करता है कि राजनीति छोड़ दूं। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के समय में राजनीति देश और समाज के विकास के लिए की जाती थी लेकिन अब समय बदल गया है। अब राजनीति सत्ता में बने रहने के लिए की जाती है। नितिन गडकरी की ओर से जैसे ही यह कहा गया उसके फौरन बाद ही विपक्षी दलों ने अपने-अपने हिसाब से इस टिप्पणी की व्याख्या शुरू कर दी। विरोधी दलों की ओर से कहा गया कि सरकार में किसी की नहीं सुनी जा रही। इसके पहले भी उनकी ओर से कई ऐसे बयान दिए गए जिनका स्वागत विपक्षी दलों की ओर से किया गया।