पार्थसारथि थपलियाल
( सभ्यता अध्ययन केंद्र के संयोजन में 6-7 अगस्त 2022 को अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र सभागार दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी का श्रृंखलाबद्ध सार)
विषय- मतांतरियों का डिलिस्टिंग और नक्सलियों पर लगाम
श्री नरेन्द्र मरावी, मध्यप्रदेश में सामाजिक कार्यकर्ता हैं। राजनीति में भी दखल रखते हैं। वनवासी समुदाय में जागृति लाने में उनकी भूमिका की सराहना की जाती है। वे भी आमंत्रित वक्ताओं में शामिल थे। सीधे अपने विषय पर आए और बोलने लगे। जनजाति समाज लड़ाकू समाज है। जंगलों ने उसे बहादुर बनाया है। यह समाज क्षत्रियों के काफी करीब है। वनवासी समाज की संस्कृति हिन्दू समाज से मिलती है न कि ईसाइयों से और न मुसलमानों से। ईसाई मिशनरियों नें वनवासी समुदाय को अपने जाल में फंसाकर मतांतरण करवा दिया और बड़ी संख्या में वनवासियों को ईसाई बना दिया। इन मिशनरियों ने सनातन धर्मी लोगों के जैसे कपड़े पहनना शुरू कर दिया, मंदिरों के जैसे चर्च बना लिए। ऐसा लगता है कि जैसे कोई हिन्दू साधु सन्यासी हों। मिशनरी लोग चालबाजी से वनवासियों का मतांतरण कर देते हैं।
श्री मरावी ने बताया कि हमारे ग्राम देवता, ठाकुर देव जी जब किसी व्यक्ति में जाग्रत होते हैं उस समय वे आग में तपे एकदम लाल सब्बल को हाथों से उठा देते हैं, उनका कुछ भी नही बिगड़ता। बड़ा भगवान (शंकर भगवान), नर्मदा माता, धरती माता, ठाकुरदेव इन सबको सभी मानते हैं। हमारा जनजाति समुदाय सनातनी है। इसे मिशनरियों ने इन्हें धोखा दिया है और इनका मतांतरण किया है। जिनका मतांतरण किया गया है, वे मिशनरियों से से भी लाभ उठाते हैं और अनुसूचित जाति का भी लाभ उठाते हैं। जिन लोगों ने अपना धर्म बदल लिया है उन्हें जिस दिन अनुसूचित जनजाति के आरक्षण दायरे से बाहर कर दिया जाएगा, इनमें से अधिकांश लोग वापस लौट आएंगे। मतांतरण के कारण भेदभाव भी बढ़ गया है। श्री मरावी ने बताया वे लोगों को धरती माता, नर्मदा माता, और अन्य देवी देवताओं के साथ जोड़कर सामाजिक समरसता स्थापित कर रहे हैं। लोग मतांतरण के कुचक्र को समझने लगे हैं। समस्या का समाधान हम सभी हैं। सशक्त समाज ही अपनी संस्कृति को बचा सकता है।
इसी सत्र में जनजाति बहुल बस्तर के रहनेवाले लेखक राजीव रंजन प्रसाद इस विषय को वहाँ तक ले गए जहाँ मतांतरण की माँ बैठी हुई थी। उन्होंने बताया शहरी नक्सलवाद 1970-80 वाले दशक में शुरू हुआ। बस्तर वनवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण आधुनिक विकास से कोसों दूर था। उस समय की सरकार की अकर्मण्यता थी। विदेशी ताकतें इस क्षेत्र में दो तरह से सक्रिय हुई। एक वर्ग मतांतरण करवा रहा था और दूसरा वर्ग वनवासियों में सरकार के विरुद्ध जनता को तैयार करने में लग गया। यह वर्ग था वामपंथ को बढ़ानेवालों का। उससे पहले बस्तर में कोई समस्या नही थी। वामपंथी मार्क्सवादियों ने जो नक्सलबाड़ी से प्रेरित थे, उन्होंने वनवासियों को भड़काया, धीरे धीरे उन्हें प्रशिक्षण देकर सरकारी व्यवस्था के विरुद्ध कर दिया। इन्हें बाह्य देशों से युद्धक समान मिलने लगा। उन दिनों इनका प्रिय गीत होता था-
जाने वाले सिपाही से पूछो वो कहाँ जा रहा है
कौन दुखिया है जो गा रही है, भूखे बच्चों को बहला रही है
लाश जलने की बू आ रही है, ज़िंदगी है कि चिल्ला रही है…
(मोहिउद्दीन मखदूम की इस नज्म की तर्ज़ पर ही गीतकार शैलेंद्र ने फ़िल्म “उसने कहा था” के लिए गीत लिखा था जानेवाले सिपाही से पूछो…) उन्होंने बताया किसान आंदोलन के दौरान एक टूलकिट(महेंद्र कर्मा) ने उस समय का सच बता दिया कि सलवा जुडूम फेल हो गया। जमीन पर हम जीत जाते लेकिन पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में हम हार गए।
राजीव रंजन प्रसाद श्रोताओं को 60 के दशक के विवरण देते हैं कि उस दौर में बस्तर में ब्रह्मदेव शर्मा कलेक्टर थे। उन्होंने बस्तर को एक संग्रहालय की तरह बना दिया था। जिला मुख्यालय से बस्तर के लाके में जाने के लिए 1 से 2 घंटे का पास मिलता था। धीरे धीरे स्थानीय अधिकारी निकलते गए और नक्सलवादी अपना अड्डा बनाते गए।
नक्सलियों ने आंध्र प्रदेश के मुरगु के जंगलों में कई कैडर बनाये। इनका सरगना था कुंडा पल्ली सीता रमैया। सीता रमैया के बेटी-दामाद दिल्ली में थे। उन्हें मलेरिया उन्मूलन के लिए बस्तर भेजा गया। इन लोगों को घर घर जाने का मौका मिला साथ ही इन्होंने नक्सल के बीज भी बोए। उस समय उन्हें बौद्धिक ताकत की आवश्यकता थी। मार्क्सवादी सेकुलर सोच के कई बेताज बादशाह थिंक टैंक के रूप में विद्यमान थे। हिमांशु कुमार, हर्ष मंदर, नंदिशंकर, राहुल पंडिता, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे वामपंथी लोग यहां अपना एजेंडा चलते रहे।
जन जातीय समाज में सर्वाधिक देश विरोधी विचार इस देश के वामपंथियों और संविधान व लोकतंत्र को बेचनेवाले सेकुलरियों ने मजबूत किये। राष्ट्रीय हितों का चिंतन करनेवाला भारत का बुद्धिशील वर्ग यदि सक्रिय न रहे तो यह शहरी नक्सली अपने बौद्धिक आतंकवाद से भारत को जबरदस्त नुकसान पहुंचा देंगे।