25 सितंबर को है सर्वपितृ अमावस्या, जानिए अंतिम दिन श्राद्ध कर्म की विधि

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24सितंबर। हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है और इन 16 दिनों में विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध किया जाता है. पितृपक्ष के आखिरी श्राद्ध को पितृपक्ष अमावस्या कहा जाता है. मान्यता है कि यदि आप किसी कारणवश तिथि के अनुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म नहीं कर पाते तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन जरूर श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वह प्रसन्न होकर धरती लोक से वापस जाते हैं. साथ ही अपनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं. आइए जानते हैं कब है सर्वपितृ अमावस्या और कैसे करें पितरों का तर्पण?

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष की अमावस्या तिथि 25 सितंबर को सुबह 3 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी और यह तिथि 26 सितंबर को सुबह 3 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म 25 सितंबर को किया जाएगा.

सर्वपितृ अमावस्या को हिंदू धर्म शास्त्रों में पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है. यदि आपको अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि न पता हो या किसी कारण से उस तिथि पर श्राद्ध कर्म न कर पाएं हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए. अंतिम दिन का यह श्राद्ध सभी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है.

सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि पीपल के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद देते हैं. ध्यान रखें कि इस दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष की जड़ में जल, दूध, काले तिल, शहद और जौ जरूर अर्पित करें.

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