कहानी बड़ी सुहानी- कठिनाईयां

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(1) कहानी

कठिनाईयां

एक धनी राजा ने सड़क के बीचों-बीच एक बहुत बड़ा पत्थर रखवा दिया और चुपचाप नजदीक के एक पेड़ के पीछे जाकर छुप गया।

दरअसल वो देखना चाहता था कि कौन व्यक्ति बीच सड़क पर पड़े उस भारी-भरकम पत्थर को हटाने का प्रयास करता है। कुछ देर इंतजार करने के बाद वहां से राजा के दरबारी गुजरते है।

लेकिन वो सब उस पत्थर को देखने के बावजूद नजरअंदाज कर देते है। इसके बाद वहां से करीब बीस से तीस लोग और गुजरे लेकिन किसी ने भी पत्थर को सड़क से हटाने का प्रयास नहीं किया।

करीब डेढ़ घंटे बाद वहां से एक गरीब किसान गुजरा। किसान के हाथों में सब्जियां और उसके कई औजार थे। किसान रुका और उसने पत्थर को हटाने के लिए पूरा दम लगाया।

आखिर वह सड़क से पत्थर हटाने में सफल हो गया। पत्थर हटाने के बाद उसकी नजर नीचे पड़े एक थैले पर गई। इसमें कई सोने के सिक्के और जेवरात जेवरात थे।

उस थैले में एक खत भी था जो राजा ने लिखा था कि ये तुम्हारी ईमानदारी, निष्ठा, मेहनत और अच्छे स्वभाव का इनाम है।

जीवन में भी इसी तरह की कई रुकावटें आती हैं। उनसे बचने की बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए।

कहानी से शिक्षा : मुसीबतों से डर कर भागे नहीं, उनका डटकर सामना करें

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(2) कहानी

सबसे समर्थ और सबसे सच्चा साथी ?

एक छोटे से गाँव मे श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था। स्वभाव से थोड़ा कमजोर और डरपोक किस्म का इंसान था!

एक बार वो एक महात्माजी के दरबार मे गया और उन्हे अपनी कमजोरी बताई और उनसे प्रार्थना करने लगा की हॆ देव मुझे कोई ऐसा साथी मिल जायें जो सबसे शक्तिशाली हो और विश्वासपात्र भी जिस पर मैं आँखे बँद करके विश्वास कर सकु जिससे मैं मित्रता करके अपनी कमजोरी को दुर कर सकु!

हॆ देव भले ही एक ही साथी मिले पर ऐसा मिले की वो मेरा साथ कभी न छोड़े!

तो महात्मा जी ने कहा.. पुर्व दिशा मे जाना और तब तक चलते रहना जब तक तुम्हारी तलाश पुरी न हो जायें! और हाँ तुम्हे ऐसा साथी अवश्य मिलेगा जो तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ कभी नही छोड़ो!

श्रीधर – बस एक बार वो मुझे मिल जायें तो फिर मैं उसका साथ कभी नही छोडूंगा पर हॆ देव मॆरी तलाश तो पुरी होगी ना?

महात्माजी – हॆ वत्स यदि तुम सच्चे दिल से उसे पाना चाहते हो तो वो बहुत सुलभता से तुम्हे मिल जायेगा नही तो वो बहुत दुर्लभ है!

फिर उसने महात्माजी को प्रणाम किया आशीर्वाद लिया और अपनी राह पर चल पड़ा!

सबसे पहले उसे एक व्यक्ति मिला जो शक्तिशाली घोड़े को काबू मे कर रहा था।
उसे लगा यही है वो शक्तिशाली है जिसकी मुझे तलाश थी। वह जैसै ही उसके पास जाने लगा तो…उस व्यक्ति ने एक सैनिक को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया।

श्रीधर ने सोचा सैनिक ज्यादा शक्तिशाली है वो इसके आगे हाथ जोड़ रहा है।

तो वो सैनिक से मित्रता के लिये आगे बड़ा पर इतने मे सैनापति आ गया। सैनिक ने सेनापति को प्रणाम किया और घोड़ा आगे किया। सैनापति घोड़ा लेकर चला गया।

श्रीधर भी सेनापति के पीछे दौड़ा और अन्ततः वो सैनापति तक पहुँचा पर सैनापति ने राजा को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया।

अब श्रीधर ने राजा को मित्रता के लिये चुना और उसने राजा से मित्रता करनी चाही पर राजा घोड़े पर बैठकर शिकार के लिये वन को निकल गया।

श्रीधर भी राजा के पीछे-पीछे भागा लेकिन घनघोर जंगल मे पहुँचने पर श्रीधर को राजा कही नजर नही आया!

प्यास से श्रीधर का गला सुख रहा था। थोड़ी दुर गया तो एक नदी बह रही थी वो पानी पीकर आया और एक वृक्ष की छाँव मे गया तो वहाँ एक राहगीर जमीन पे सोया था और उसके मुख से राम राम की ध्वनि सुनाई दे रही थी। और एक काला नाग उस राहगीर के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था।

श्रीधर ने बहुत देर तक उस दृश्य को देखता रहा और फिर अचानक वृक्ष की एक डाल टूटकर नीचे गिरी और साँप वहाँ से चला गया और इतने मे उस राहगीर की नींद टूट गई। राहगीर उठा और राम राम का सुमिरन करते हुये अपनी राह पे चला गया!

श्रीधर पुनः महात्माजी के आश्रम पहुँचा और सारा किस्सा कह सुनाया और उनसे पुछा..हॆ नाथ मुझे तो बस इतना बता दीजिये..की वो कालानाग उस राहगीर के चारों और चक्कर काट रहा था पर वो उस राहगीर को डँस क्यों नही पा रहा था!

लगता है देव की कोई अद्रश्य शक्ति उसकी रक्षा कर रही थी!

महात्माजी ने कहा:- वत्स उसका सबसे सच्चा साथी ही उसकी रक्षा कर रहा था जो उसके साथ था।

श्रीधर ने कहा देव वहाँ तो कोई भी नही था। बस संयोगवश हवा चली वृक्ष से एक डाली टूटकर नाग के पास गिरी और नाग चला गया!

महात्माजी ने कहा नही वत्स उसका जो सबसे अहम साथी था वही उसकी रक्षा कर रहा था जो दिखाई तो नही दे रहा था पर हर पल उसे बचा रहा था और उस साथी का नाम है “धर्म” हॆ वत्स धर्म से समर्थ और सच्चा साथी जगत मे और कोई नही है केवल एक धर्म ही है जो सोने के बाद भी तुम्हारी रक्षा करता है और मरने के बाद भी तुम्हारा साथ देता है!

हॆ वत्स पाप का कोई रखवाला नही हो सकता और धर्म कभी असहाय नही है महाभारत के युध्द मे भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ सिर्फ इसिलिये दिया था क्योंकि “धर्म” उनके पक्ष मे था!

हॆ वत्स तुम भी केवल “धर्म” को ही अपना सच्चा साथी मानना और इसे मजबुत बनाना क्योंकि यदि धर्म तुम्हारे पक्ष मे है तो स्वयं नारायण तुम्हारे साथ है नही तो एक दिन तुम्हारे साथ कोई नही होगा और कोई तुम्हारा साथ नही देगा और यदि धर्म मजबुत है तो वो तुम्हे बचा लेगा इसलिये धर्म को मजबुत बनाओ!

हॆ वत्स एक बात हमेशा याद रखना की इस संसार मे समय बदलने पर अच्छे से अच्छे साथी भी साथ छोड़कर चले जाते है केवल एक धर्म ही है जो घनघोर बीहड़ और गहरे अंधकार मे भी तुम्हारा साथ नही छोडेंगा। कदाचित तुम्हारी परछाई भी तुम्हारा साथ छोड़ दे परन्तु धर्म तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा। बशर्ते की तुम उसका साथ नही छोड़ो इसलिये धर्म को मजबुत बनाना क्योंकि केवल यही है।

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(3) कहानी

एक शिकारी ने जहर से सना तीर चलाया. निशाना चूका और तीर एक वृक्ष में जा लगा. वृक्ष सूखने लगा. रहने वाले पक्षी एक-एक कर वृक्ष छोड़ गए. केवल एक तोता रुका रहा. फल न मिलने से तोता अधमरा होने लगा. बात देवराज इंद्र तक पहुंची. मरते वृक्ष के लिए अपने प्राण दे रहे तोते को देखने के लिए इंद्र आए. इंद्र ने तोते को समझाया- भाई इस पेड़ पर न पत्ते हैं, न फूल, न फल! जंगल मे बड़े-बड़े कोटर पत्ते फूल फल से लदे और भी वृक्ष है. वहां क्यों नहीं चले जाते? तोते ने जवाब दिया- देवराज! मैं यहीं पर जन्मा पला बढ़ा और मीठे फल खाए. इसने मुझे दुश्मनों से बचाया. इसके साथ मैंने सुख भोगे हैं. आज बुरा वक्त आया तो मैं अपने सुख के लिए इसे कैसे त्याग दूं ?
इंद्र प्रसन्न हुए और बोले- मैं तुमसे प्रसन्न हूं. कोई वर मांग लो. तोता बोला- मेरे इस पेड़ को हरा-भरा कर दीजिए. देवराज ने पेड़ को अमृत से सींच दिया. पेड़ पहले की तरह हरा भरा हो गया. तोता जीवन भर वहां रहा और मरने के बाद देवलोक चला गया. युधिष्ठिर को यह कथा सुना कर भीष्म बोले- अपने आश्रयदाता के दुख को जो अपना दुख समझता है. उसके कष्ट मिटाने स्वयं ईश्वर आते हैं. किसी के सुख के साथी बनो न बनो. दुख का साथी जरूर बनो. यही धर्मनीति है.

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(4) कहानी

दुआ

मेरी फैक्ट्री के पास एक Breakfast point है. हम वहां अक्सर जाते है वहां बहुत भीड़ होती है।

वहां मैंने कई बार नोटिस किया कि एक आदमी आता है जी भर के खाता है और खाने के बाद भीड़ का फायदा उठाते हुए चुपचाप बिना पैसा दिए हुए निकल जाता है।

एक दिन जब वो आदमी खा रहा था मैंने रेस्तरां के मालिक को चुपचाप मोबाइल किया कि ये भाई, जो खा रहा है, खा पी के चुपचाप भीड़ का फायदा उठाते हुए बिना बिल का पेमेंट किये निकल जायेगा।

पर Breakfast point का मालिक मेरी बात पर मुस्कराया और बोला कि उस भाई को खाने दीजिये और बिना एक शब्द कहे जाने दीजिए ….फिर मैं आपसे बात करता हूँ

हमेशा की तरह, खाने पीने के बाद उस भाई ने आसपास देखा और चुपचाप बिना पैसे दिए भीड़ के बीच मे फिर रफू चक्कर हो गया

जब वो चला गया तो मैंने मालिक से पूछा कि जानने के बाद भी की वो पेमेंट किये वगैर जाएगा, आपने उसे बिना पेमेंट किये क्यों जाने दिया??

ढाबे मालिक के जवाब ने मेरे होश उड़ा दिए।

Breakfast Point का मालिक बोला आप अकेले नही हैं मुझे बहुत से भाइयों ने ये बात बताई की ये आदमी ऐसा करता है

उसने कहा कि ये आदमी मेरे से दूर शॉप के front में बैठता है और जब वो देखता है कि भीड़ है तो वो चुपचाप निकल जाता है

मैंने हमेशा उसको नज़रअंदाज़ किया और बिना पैसे दिए जाने के लिए कभी नही पकड़ा, कभी नही रोका, और कभी उसकी बेइज़्ज़ती भी नही कीI

कयुंकि मैं मानता हूं कि वो ईश्वर का एक ऐसा बन्दा है जो मेरी शॉप में भीड़ होने के लिए दुआ करता है और मेरे रेस्तरां में जो भीड़ है वो इस ईश्वर के बन्दे की दुआ की बजह से है

वो मेरी शॉप के सामने बैठेगा, दुआ करेगा कि भीड़ आये और जब भी वो आता है मेरे रेस्तरां में बहुत भीड़ होती भी है।

मैं उसकी दुआ की रेस्तरां में भीड़ हो और ईश्वर की स्वीकारोक्ति के बीच मे रोड़ा डालकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार कर अपनी किस्मत खराब नही करना चाहता।

मैं उसे कभी नही रोकूंगा, दुआ में बहुत असर है

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(5) कहानी

. जीवन की सच्चाई….

“सुनो..कल मम्मी पापा आ रहे हैं दस दिन रूकेंगे..
एडजस्ट कर लेना..

“मयंक ने स्वाति को बैड पर लेटते हुए कहा।
“..कोई बात नही आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा..”
स्वाति ने भी प्रति उत्तर में कहा और स्वाति ने लाइट बन्द कर दी और दोनो सो गए।

सुबह जब मयंक की आंख खुली तो स्वाति बिस्तर छोड़ चुकी थी। “चाय ले लो..स्वाति ने मयंक की तरफ चाय की प्याली को बढाते हुए कहा..अरे तुम आज इतनी जल्दी नहा ली..हां तुमने रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को कुछ व्यवस्थित कर लूं..स्वाति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा..वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग..”दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे..मयंक ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया..”स्वाति..देखना कभी पिछली बार की तरह..”नही नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..स्वाति ने भी कप खत्म करते हुए मयंक को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई। मयंक भी आफिस जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ गया। नाश्ता करने के बाद मयंक ने स्वाति से पूछा “..तुम तैयार नही हुई..क्या बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??..” नही..आज तुम निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट निकलूंगी..स्वाति ने लंच बाक्स थमाते हुए मयंक को कहा। “..बाय बाय..कहकर मयंक बाइक से आफिस के लिए निकल गया। और स्वाति घर के काम में लग गई..

“..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से वहां चल तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से जिस तरह खटपट हुई थी मेरा तो मन ही भर गया था। ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं..मयंक के पिताजी मयंक की मम्मी से कह रहे थे।”..अजी..भूल भी जाइये..बच्ची है..
कुछ हमारी भी तो गलती थी। हम भी तो उससे कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगाए बैठे थे। उन बातों को सालभर बीत गया है..क्या पता कुछ बदलाव आ गया हो। इंसान हर पल कुछ नया सीखता है..क्या पता कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे..मयंक की मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा..
मयंक की मां यह कहकर चुप हो गई और याद करने लगी..दो भाइयों में मयंक बड़ा था और विवेक छोटा। मयंक गांव से दसवीं करके शहर आ गया..आगे पढने और विवेक पढाई में कमजोर था इसलिए गांव में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने लगा। मयंक बी टेक करके शहर में ही बीस हजार रू की नौकरी करने लगा। स्वाति से कोचिंग सेन्टर में ही मयंक की जान पहचान हुई थी यह बात मयंक ने स्वाति से शादी के कुछ दिन पहले बताई। पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस रिश्ते के लिए..वो तो मैने ही समझा बुझाकर रिश्ते के लिए मनाया था वरना ये तो पड़ौस के गांव के अपने दोस्त की बेटी माला से ही रिश्ता करने की जिद लगाए बैठे थे। गांव आकर स्वाति के घर वालों ने शादी की थी..दो साल होने को आए उस दिन को भी। शादी करके दोनो शहर में ही रहने लगे। स्वाति भी प्राइवेट स्कूल में टीचर की जाॅब करने लगी। पिछली बार जब गांव से आए थे तो मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही बहू के तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ हो लिए। कई बार मयंक को फोन करकर बोला भी की बेटा गांव आ जा..पर वो हर बार कह देता..मां छुट्टी ही नही मिलती कैसे आऊं..लेकिन मैं ठहरी एक मां..आखिर मां का तो मन करता है ना अपने बच्चे से मिलने का..बहू चाहे कैसा भी बर्ताव करे..काट लेंगे किसी तरह ये दस दिन..पर बच्चे को जी भरकर देख तो लेंगे..”अरे भागवान..उठ जाओ..स्टेशन आ गया उतरना नही है क्या..मयंक के पिताजी की आवाज मयंक की मां को यादों की दुनियां से वापस खींच लाई.. सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ गए और आटो में बैठकर दोनो मयंक के घर के लिए रवाना हो गए..

घर पहुंचे तो बहू घर पर ही थी। जाते ही बहू ने दोनो के पैर छुए..हम दोनो को ड्राइंगरूम में बिठाकर हम दोनो के लिए ठण्डा ठण्डा शरबत लाई हम लोगों ने जैसे ही शरबत खत्म किया बहू ने कहा “पिता जी…आप सफर से थक गए होंगे..नहा लिजिए..सफर की थकान उतर जाएगी फिर मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं। पिताजी नहाने चले गए। बहू रसोई में घुसकर खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में मयंक भी आ गया। फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और फिर सबने खाना खाया। मयंक और बहू सोने चले गए और हम भी सो गए। सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो तो बहू उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही गरम पानी पीने की आदत थी बहू ने पहले से ही पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी..बहू ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया..नाश्ता भी पिताजी की पसंद का तैयार था..सबको नाश्ता करवाकर बहू मयंक के साथ चली गई पिताजी ने भी चैन की सांस ली..चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे। दिन के खाने की तैयारी बहू करकर गई थी सो मैने चार पांच रोटियां हम दोनो की बनाई और खा ली। स्कूल से आते ही बहू फिर से रसोई में घुस गई और हम दोनों के लिए चाय बना लाई..शाम को हम दोनों को लेकर बहू पास के पार्क में गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से करवाया..वो अपनी सहेलियों से बात करने लगी और हम अपने नए परिचितों से परिचय में व्यस्त हो गए।शाम के सात बज चुके थे..हम घर वापस आ गए। मयंक भी थोड़ी देर में घर आ गया। बैठकर खूब सारी बातें हुई। बहू भी हमारी बातों में खूब दिलचस्पी ले रही थी थोड़ी देर बाद सब सोने चले गए। अगले दिन सण्डे था बहू, मयंक और हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए.. हमारे लिए ताज्जुब की बात ये थी की प्रोग्राम बहू ने बनाया था..बहू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई..खाना पीना भी हम सबने बाहर ही किया..फिर हम सब घर आ गए और सो गए..इस खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब पंख लगाकर उड़ गया..कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे। आखिर कल जब विवेक का फोन आया कि फसल तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना पड़ा। रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए तो बहू हमारे कमरे में आ गई बहू की आंखों से आंसू बह रहे थे। मैने पूछा..”क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो..तो बहू ने पूछा “..पिताजी, मां जी..पहले आप लोग एक बात बताइये..पिछले पन्द्रह दिनों में कभी आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है या बेटी के पास..”नही बेटा सच कहूं तो तुमने हमारा मन जीत लिया.. हमें किसी भी पल यह नही लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ बेटा..”तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..??

“पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी। उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे। मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे…बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया..”हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा…ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए..

बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे……..

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