छठ पूजा का दूसरा दिन, यहां जानें खरना का महत्व और पूजन विधि

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 29अक्टूबर। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पूजा एक महापर्व है और यह चार दिनों तक चलता है. इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत करती हैं और भगवान सूर्य समेत छठी मैया का भी पूजन किया जाता है. इस महापर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर से हो गई है और 31 अक्टूबर का इसका समापन होगा. आज यानि 29 अक्टूबर को छठ पर्व का दूसरा दिन है और इस दिन को खरना कहा जाता है. आइए जानते हैं खरना और इसके महत्व के बारे में डिटेल से.

दूसरे दिन होता है खरना
खरना के दिन व्रती दिन भर निर्जला व्रत करते हैं और इस दिन छठी मैया का प्रसाद तैयार किया जाता है. इस दिन गुड़ की खीर बनती है और खास बात है कि यह खीर शाम को मिट्टी के चुल्हे पर तैयार की जाती है. शाम को पूजा के बाद गुड़ की खीर का प्रसाद पहले व्रती ग्रहण करते हैं और इसके बाद इसे सभी में बांटा जाता है.

छठ पूजा के दौरान खरना के दिन भी सूर्य भगवान का पूजन किया जाता है और इसके अगले दिन भक्त सूर्योदय से पहले नदी, घाट या तालाब पर पहुंचते हैं और दिन भर पानी में खड़े रहते हैं. इसके बाद सूर्यादय के दौरान भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर शाम को सूर्यास्त के समय भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस व्रत में महिलाएं सूर्य देवता के डूबने के इंतजार में छठी मैया के गीत भी गाती हैं. छठ के पर्व की रौनक हर तरफ देखी जा सकती है. सूर्य डूबने पर व्रती पीतल के कलश में दूध और जल से सूर्य को अर्घ्य देते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं.

छठ पूजा का महत्व
मान्यता है कि छठ पूजा मुख्य तौर पर संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए होती है. साथ ही घर की सुख—शांति और समृद्धि के लिए भी यह पूजा की जाती है. छठ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री और भगवान सूर्य की बहन माना जाता है. छठी मैया की पूजा करने से निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है. यह भी कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध कर दिया था तब उसे बचाने के लिए उत्तरा को भगवान श्रीकृष्ण ने षष्ठी व्रत यानि छठ पूजा करने की सलाह दी थी.

बता दें कि लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार से नहाए खाए से शुरू हो गया है जो चार दिनों तक, खरना-सांध्य अर्घ्य-प्रातः अर्घ्य के साथ संपन्न होगा. छठ पूजा का प्रारंभ आज 28 अक्टूबर 2022 को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है.

तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य
खरना के बाद व्रती का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. खरना के अगले दिन व्रती नदी या तालाब किनारे सपरिवार जाती हैं और नदी में खड़े होकर विधि-विधान से अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन अर्घ्य के सूप को फल, ठेकुआ मौसमी फल और फूल से सजाया जाता है. अर्घ्य के बाद लोग या तो घर लौट आते हैं या घाट पर ही रातभर रहते हैं

चौथे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य
छठ पूजा के चौथे दिन व्रती नदी या तालाब में या कहीं भी जल में खड़े होकर उदीयमान सूर्य को विधि-विधान से सजे हुए सूप के साथ अर्घ्य देती हैं और इसी के साथ लोक आस्था का पर्व छठ संपन्न हो जाता है. व्रती पारण कर छठ पूजा का व्रत तोड़ती हैं और इस तरह से छठ पूजा की समाप्ति होती है.

31 अक्टूबर के दिन उगते हुए सूरज की अर्घ्य दिया जाएगा. फिर पारण करने के बाद छठ पर्व का समापन होगा. इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 27 मिनट पर होगा.

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.