पारदर्शिता, जवाबदारी और नागरिक-अनुकूलता श्री मोदी के शासन मॉडल का प्रतीक बन गयी है- केंद्रीय मंत्री डॉ. जितन्द्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितन्द्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को शासन का “सतत” मॉडल दिया, जिसने हर वर्ष लाभ में बढ़ोतरी करके घटते फायदे के सिद्धांत को रद्द कर दिया
नई दिल्ली, 22नवंबर। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), अर्थ विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को शासन का “सतत” मॉडल दिया, जिसने हर वर्ष लाभ में बढ़ोतरी करके घटते फायदे के सिद्धांत को रद्द कर दिया।
दिल्ली में न्यूज-X टीवी चैनल के “कैपिटल डायलॉग” कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुये डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में श्री मोदी का शासन मॉडल हर नई चुनौती के सामने मजबूत होता गया है
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, उनकी पहली चुनौती भुज में आए विनाशकारी भूकंप से उबरना और नए सिरे से निर्माण करना था। सरकार का नेतृत्व करते हुये 20 साल पूरे करने के बाद, उनके सामने नवीनतम चुनौती कोविड महामारी थी,जिसने देशभर के 140 करोड़ लोगों को प्रभावित किया। डॉ. सिंह ने कहा कि इन चुनौतियों का सामना नये विचारों से किया गया। प्रधानमंत्री ने लंबे समय तक आत्मनिरीक्षण किया कि कैसे नये विचारों को लाया जा सकता है। इसी तरह जमीनी हकीकत के साथ उनके आत्मिक सम्बंध ने भी हर चुनौती को अवसर में बदलने के लिये उन्हें सक्षम बनाया।
उनके शासन मॉडल के बारे में सवालों के जवाब में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जब से श्री मोदी ने मई, 2014 में कार्यभार संभाला है, उनका पहला मंत्र “अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार” रहा है। अब लगभग नौ वर्षों के बाद, यह एकीकरण का माध्यम है, जिसके जरिये “संपूर्ण सरकार” के दृष्टिकोण के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में काम करने के बजाय योजनाओं तथा विचारों को आपस में जोड़कर काम किया जा रहा है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि पारदर्शिता, जवाबदारी और नागरिक-अनुकूलता श्री मोदी के शासन मॉडल का प्रतीक बन गयी है। उन्होंने कहा कि केंद्र में कार्यभार संभालने के तीन महीने के भीतर, पहले बड़े फैसलों में से एक स्व-सत्यापन की शुरूआत करना और राजपत्रित अधिकारी द्वारा दस्तावेजों को प्रमाणित करने की प्रथा को खत्म करना था। इस तरह भारत के युवाओं में विश्वास कायम करने का जतन किया गया; वे युवा, जिनमें से 70 प्रतिशत 40 वर्ष से कम आयु के हैं।