मध्य प्रदेश डायरी : रवीन्द्र जैन
रवीन्द्र जैन
सिंधिया समर्थक मंत्री कैबिनेट बैठक से क्यों गायब हुए!
आजकल मप्र के राजनीतिक गलियारों में यह सवाल पूछा जा रहा है कि सिंधिया समर्थक सभी मंत्री कैबिनेट की बैठक से क्यों गायब हुए? पिछले मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई थी। तीन दिन पहले बैठक की सूचना और एजेंडा मंत्रियों को भेज दिया गया। मुख्यमंत्री तय समय पर मंत्रालय भी पहुंच गये। लेकिन अधिकांश मंत्री नहीं पहुंचे। एक अधिकारी ने मंत्रियों को फोन लगाया तो कुल 7 मंत्री दौड़ते भागते मंत्रालय पहुंचे, लेकिन इनमें एक भी सिंधिया समर्थक मंत्री नहीं था। कैबिनेट की बैठक का समय 4 बार बढ़ाया गया। अंतत: मुख्यमंत्री को कैबिनेट बैठक निरस्त करना पड़ी। इस संबंध में मीडिया को सफाई दी गई कि अधिकांश मंत्री चुनाव प्रचार के लिए गुजरात गये हैं। जबकि सिंधिया समर्थक सभी मंत्री चुनाव प्रचार में नहीं गये हैं। सिंधिया समर्थक सभी मंत्रियों का कैबिनेट से गायब रहना मप्र की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया हैं।
सीआर बिगड़ने से आईएएस अफसरों में हडकंप!
मप्र के इतिहास में पहली बार सीधी भर्ती के लगभग एक दर्जन आईएएस अफसरों की सीआर (गोपनीय चरित्रावली) बिगड़ने की खबर है। प्रदेश में अभी तक सीधी भर्ती के आईएएस अफसर से कितनी भी नाराजगी हो, लेकिन उनकी सीआर नहीं बिगाड़ी जाती थी। वरिष्ठतम अधिकारी उन्हें समझाइश देकर सुधरने का अवसर देते थे। लेकिन इस बार समझाइश के बजाय कार्रवाई हुई है। यह खबर कितनी सही है यह तो नहीं पता, लेकिन मंत्रालय में चर्चा है कि 2009 से 2014 बैच के लगभग एक दर्जन आईएएस अफसरों के काम को सिर्फ औसत माना गया है। इससे उनके कैरियर पर बुरा असर पड़ने की संभावना है। इसके अलावा अन्य राज्यों की तुलना में मप्र के इन आईएएस अफसरों को कमतर भी माना जाएगा। यह भी चर्चा है कि जिनकी सीआर बिगाड़ी गई है, उनमें एक तेजतर्रार महिला आईएएस भी शामिल है।
ई टेंडर घोटाले को दबाना भी बड़ा घोटाला है!
आखिर मप्र के सबसे बड़े ई टेंडर घोटाले को दफन करने में अधिकारी सफल हो गये हैं। इससे सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने भी राहत की सांस ली है। जबकि सच्चाई यह है कि मप्र के ई टेंडर घोटाले को जिस तरह दबाया गया है, वह भी बहुत बड़ा घोटाला है। फरवरी 2019 में ईओडब्ल्यु ने ई टेंडर घोटाले की एफआईआर में बड़ी बड़ी कंपनियों के नाम के साथ तथा विभागीय अधिकारियों, राजनेताओं और ब्यूरोक्रेट को बिना नाम के आरोपी बनाया था। इस घोटाले की पर्तें खुलती तो उसके छीटें आईएएस अफसरों से लेकर मंत्रियों तक पर पड़ते। लगता है कि बड़ी चालाकी से इस घोटाले को दबाने की रणनीति बनी है। जांच एजेंसी ने घोटालेबाज बडी कंपनियों, नौकरशाहों और राजनेताओं को छोड़कर छह छोटे लोगों के खिलाफ जांच शुरु की और चालान भी पेश कर दिया। योजनाबद्ध तरीके से जांच को लचर रखा गया। भोपाल जिला न्यायालय ने सभी छह आरोपियों को बरी करते हुए लिखा है कि भ्रष्टाचार तो हुआ है, लेकिन जांच एजेंसी इसे सिद्ध नहीं कर पाई। मजेदार बात यह है कि कोर्ट के फैसले से कांग्रेस और भाजपा दोनों खुश नजर आ रहे हैं।
3000 करोड़ जुर्माना माफ कराने सरकार पहुंची एनजीटी
यह खबर चौंकाने वाली है कि राज्य सरकार भोपाल नगर निगम पर लगे लगभग 3000 करोड़ के जुर्माने को माफ कराने नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) पहुंची है। एनआईटी ने भी छह माह में सुधार की शर्त के साथ इस जुर्माने की राशि माफ कर दी है। जानेमाने पर्यावरणविद सुभाष पांडे पर भरोसा किया जाए तो भोपाल के जल स्त्रोतों में लगतार सीवेज मिलने और राजधानी में कचरे का ठीक निपटान न होने पर एनजीटी के आदेश पर नगर निगम को लगभग 3000 करोड़ का जुर्माना मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल में जमा करना था। राज्य सरकार के वरिष्ठ अफसरों ने एनजीटी को भरोसा दिया है कि अगले 6 महीने में सारी गड़बड़ी सुधार ली जाएगी। यहां बता दें कि लगातार सीवेज मिलने के कारण भोपाल के बड़े तालाब का पानी “सी कैटेगिरी” का हो गया है। यानि इस पानी का उपयोग कपड़े धोने के लिए करना भी हानिकारक है।
खोदा पहाड़, निकले सलूजा
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब उज्जैन और आगर मालवा होते हुए मप्र की सीमा से राजस्थान में प्रवेश कर जाएगी। लेकिन कांग्रेस का कोई भी विधायक या बड़ा नेता भाजपा में शामिल नहीं हुआ। दरअसल यह दावा किया जा रहा था कि राहुल गांधी की यात्रा के मप्र में आते ही कांग्रेस विधायक दल में बड़ी तोड़फोड़ हो सकती है। कई कांग्रेस विधायक भाजपा ज्वाइन कर राहुल गांधी की यात्रा की हवा निकाल सकते हैं। इस दौरान वरिष्ठ भाजपा नेताओं के बयान भी आए कि कई कांग्रेस विधायक उनके सम्पर्क में हैं। लेकिन भाजपा इस दौरान कांग्रेस में बड़ी तोड़फोड़ करने में सफल नहीं हुई। कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा और श्योपुर के पूर्व विधायक बाबूलाल मेवरा ने जरूर भाजपा का दामन थाम लिया है। अब लोग चुटकी ले रहे हैं कि “खोदा पहाड़, निकले सलूजा”।
ईमानदारी व पारदर्शिता देखना हो तो यहां आइए
मप्र के किसी सरकारी विभाग में ईमानदारी, पारदर्शिता और आम आदमी की मदद करते अफसरों को देखना है तो भोपाल के अरेरा हिल्स पर बने मप्र लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन कंपनी के कार्यालय पहुंच जाइये। सरकार ने यह कंपनी शासकीय सम्पत्ति के प्रबंधन और विक्रय के लिये बनाई है। कंपनी की कमान प्रमुख सचिव अनिरुद्ध मुखर्जी के हाथ में है। लगभग प्रतिदिन एक बड़े हाॅल में अनिरुद्ध मुखर्जी सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ लोगों से मिलते हैं और हर समस्या का मौके पर ही समाधान करने का प्रयास करते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार के लिए करोड़ों रुपए की भूमि नीलाम करने वाली इस कंपनी में गजब की पारदर्शिता है। प्रमुख सचिव से लेकर छोटे बड़े अधिकारी कर्मचारी आपस में सीधा संवाद रखते हैं। नीलामी में सरकारी भूमि खरीदने के इच्छुक व्यक्तियों को पूरा सम्मान दिया जाता है। इस कंपनी ने इस वर्ष 600 करोड़ रूपए सरकार के खजाने में जमा कराने का लक्ष्य रखा है।
और अंत में…!
मप्र के नगरीय प्रशासन आयुक्त भरत यादव ने इस सप्ताह एक ऐसा नवाचार किया कि प्रदेश की सभी नगरीय निकाय संस्थाओं के अफसरों की नींद उड़ गई है। दरअसल यादव ने भोपाल में बैठे बैठे पूरे ग्वालियर शहर में सफाई व्यवस्था का निरीक्षण वीडियो काॅल के जरिए किया। ग्वालियर नगर निगम आयुक्त किशोर कन्याल ने भरत यादव को वीडियो काॅल पर जोड़ा था। निरीक्षण के दौरान ग्वालियर में तैनात 25 क्षेत्रीय सफाई अधिकारियों में से 21 गायब मिले। सभी लापता अफसरों की एक एक वेतनवृद्धि रोकते हुए उन्हें शोकॉज नोटिस थमा दिए गये हैं। ग्वालियर के बाद अब ऐसा निरीक्षण अन्य नगरीय निकायों में भी हो सकता है।